# मैं बिहारी हूँ # 

वैसे तो कल ही शिवगंज शाखा में अपनी जोइनिंग दे दी थी, परन्तु सच कहे तो आज से शिवगंज शाखा में कार्य करने का अवसर मिला |

आज का दिन मेरे लिए कुछ ख़ास है , क्योकि आज इस शाखा में पहला दिन था और आज हमारा जन्मदिन भी |

  मैं चपरासी कालू राम को बुला कर कुछ पैसे दिए और   मिठाई लाकर सभी स्टाफ को खिलाने को कहा |

लंच का समय था, मेनेजर साहेब मुझे अपने चैम्बर में बुलाए और  सभी लोगों ने मिल कर मेरे जन्मदिन की मुझे बधाइयाँ दी और  इस तरह माहौल कुछ सामान्य लगा |

उस समय बैंक का सारा कार्य manual होता था | बड़ी बड़ी रजिस्टर और  प्रपोजल फॉर्म हुआ करते थे, लेकिन अच्छी बात थी कि सभी स्टाफ बहुत मिहनती और सब आपस में बहुत सहयोग करते थे |

ब्रांच में काम ज्यादा होने के बावजूद सब कुछ systematic और  बिलकुल smooth था |

source: google.com

हमारा मुख्य कार्य किसानो के बीच ऋण बांटना और क़िस्त की उगाही करना था | यह दुर्भाग्य था कि पिछले तीन साल से लगातार वर्षा नहीं होने के कारण अकाल की स्थिति बनी हुई थी ,जिससे ऋण की recovery करने हेतु हेड -ऑफिस से काफी दबाब था |

एक दिन, मेनेजर साहेब मेरे चैम्बर में आए और कहा कि “तखतगढ़” गाँव के ठाकुर भैरो सिंह पिछले एक साल से ट्रेक्टर ऋण की एक भी क़िस्त जमा नहीं किया है | कितनी बार नोटिस दिया गया लेकिन कोई जबाब ही नहीं देता है, बहुत ही notorious  किस्म का ऋणी  है |

शायद, मेनेजर साहेब हमारी परीक्षा लेना चाहते थे | मैंने उनको  भरोसा दिलाया कि वो ठाकुर क़िस्त ज़रूर जमा करा देगा |

मैंने तो बड़ी आसानी से यह बात  बोल दिया लेकिन मुझे पता था कि यह काम इतना आसान नहीं है |, फिर भी अपनी ख़राब इमेज को सुधारने के लिए एक मौका तो मिला |

मैं अपने ड्राईवर बाबु लाल जी  से उस गाँव और उस ठाकुर के बारे में जानकारी ली और अगले दिन का पूरा प्रोग्राम अपने दिमाग में बना डाला |

दुसरे दिन शाखा में सुबह १०.०० बजे पहुँचा तो बाबू लाल जी  हाथ में खैनी रगड़ रहे थे | मैं उसे आवाज़ लगाया और कहा कि अभी इसी वक़्त तखतगढ़ प्रस्थान करना है |

वह खैनी को मुँह में दबाये दौड़ते हुए आया और मेरा बैग लेकर जीप की ओर बढ़ चला |

यहाँ से तख़्तगढ़ की दुरी लगभग २५ किलोमीटर थी, जैसा कि बाबूलाल जी ने बताया था | जीप अपने गति से मंजिल की ओर भाग रहा था और  मैं उस ठाकुर को घेरने की योजना मन ही मन बना रहा था |

दिन के करीब एक बजे उस गाँव में दाखिल हुआ और सीधे ठाकुर की  हवेली के सामने मेरी जीप रुकी |

संयोगवश, ठाकुर ही घर से बाहर निकला और  मेरी ओर प्रश्न भरी निगाह से देखा | पहले शायद शाखा से कोई भी यहाँ recovery में नहीं आया था | तब तक हमारे लाल बाबु जी ने ठाकुर की ओर  मुखातिब होकर बोल पड़े … हमलोग शिवगंज शाखा से आएं है |

इतना सुनते ही वो  नाराजगी भरी लहजे में बोला, आप को तगादा के लिए यहाँ नहीं आना चाहिए था | गाँव में हमारी बदनामी  होती है |

मैंने भी सख्त लहजे में कहा कि बदनामी का इतना ही डर है तो क़िस्त समय पर जमा करा देना चाहिए था |

जैसे टालते हुए  उसने कहा कि अभी हाथ में पैसे नहीं है | जब होगा तो जमा करा देंगे | उसके ऐसे रूखे  व्यवहार से मुझे गुस्सा आ गया |

फिर भी अपने को सँभालते हुआ कहा …जब हम यहाँ आ ही गए है तो कुछ पैसे जमा करा दो, मैं रसीद दे देता हूँ |

वो फिर थोडा अकड़ के बोला …कहा ना कि पैसे अभी नहीं हैं | जब होगा तब  जमा करा देंगे |

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बस, इतना बात सुन कर मैं अपने आपे से बाहर हो गया | मैंने छुटते ही कहा ……भैरो सिंह तुम अपनी ट्रेक्टर की चाभी मुझे दे दो  | जब क़िस्त जमा करोगे तो ट्रेक्टर वापस ले जाना |

शायद ऐसे जबाब की उम्मीद उसने नहीं की थी |

वह गुस्सा  व्यक्त करते हुए  कहा …..साहब, यह मेरा गाँव है / ट्रेक्टर खीच कर ले जाओगे तो मेरी बदनामी हो जाएगी | इतना कह कर वो अपनी खेतो की ओर  पेदल ही चला गया | शायद उसने सोचा होगा कि हम डर कर  वहाँ से खाली हाथ चले जाएंगे |

लेकिन, तब तक गाँव के कुछ किसान जमा हो चुके थे और  ट्रेक्टर भी वही खड़ी थी | मैं भी गुस्से में अपनी बैग से डुप्लीकेट चाभी निकाल कर बाबु लाल जी को देते हुए कहा कि आप ट्रेक्टर पर बैठ जाओ और  मैं जीप लेकर आप के पीछे चलता हूँ | मुझे ट्रेक्टर अपने कब्ज़े में लेना है |

इस तरह के फैसले की मेरे ड्राईवर को भी उम्मीद न थी, | इसलिए  अशंकित नजरो से मुझे देखने लगे |

मैं दृढ निश्चय के साथ अपनी बात को दुहराया और  उसे ट्रेक्टर पर बैठा दिया | देखते ही देखते उनलोगों के सामने से ही ट्रेक्टर लेकर चल पड़ा |

मैं मन ही मन सोच भी रहा था कि अगर ठाकुर कुछ भी गड़बड़ करेगा तो पास के पुलिस थाने में ट्रेक्टर लगा दूँगा |

लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ ..और  हमलोग करीब २२ किलोमीटर की दुरी तय करके करीब 5.०० बजे शाम में अपनी शाखा पहुँच गए |

दयालु साहेब (मेनेजर साहेब) हमारी तरफ आश्चर्य चकित होकर देख रहे थे | उनको जैसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि ठाकुर का ट्रेक्टर उसके इलाका से बिना उसके इज़ाज़त के कोई कैसे ला सकता है | ..

मैंने उनको देखते हुए मन ही मन कहा …...एक बिहारी सब पे भारी   .. ( क्रमशः)

आगे की घटना के लिए नीचे दिये लिंक को क्लिक करें ..

आज किसी ने पूछा,

कि कैसे हो तुम..

चेहरे पर मुस्कान था

क्योंकि पूछने वाले इंसान नहीं 

मेरा खुद का वजूद  था ,

अचानक कौंध गई बिताए लम्हो की यादे..

कुछ लम्हे टूटे फूटे मिले

कुछ आधे अधूरे मिले

कुछ में अफसोस की झलक

कुछ पर रोना आया

पर कुछ सही सलामत भी मिले

गौड़ से देखा तो पाया

वो पल बचपन के मिले..

बचपना ..आज भी जिंदा है शायद | 

BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,

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http://www.retiredkalam.com



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14 replies

  1. Good morning g
    Duty is duty
    Done well

    Liked by 1 person

  2. Mr.Verma! Your story has rejuvenating effect on our minds . Such enthusiasm in young age might be possible . But today it may be counterproductive . Thanks !

    Liked by 1 person

  3. अच्छी कहानी।

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  4. बिना उंगली टेढ़ी किए धी नही निकलता 🤗🤗

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