# कलयुग का दशरथ #….6 

जो माँ -बाप बच्चों को दुनिया में लाते है ,

जो ऊँगली पकड़ उन्हें चलना सिखाते है ,

वही माँ बाप बुढ़ापे में बच्चों को लगते है बोझ,

वे बड़ी वेशर्मी से उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आते है …

कौशल्या के चारो ओर सभी लोग खड़े थे और सभी के आँखों में आँसू थे …”ख़ुशी के आँसू” | आज डॉ साहब के अथक प्रयास के कारण कौशल्या की याददाश्त वापस आ गई थी |

डॉ साहब ने अपनी आँखों के आँसू पोछते हुए कहा …दशरथ जी, जल्दी से चाय ले कर आइये और अपनी पत्नी कौशल्या जी को अपनी हाथो से पिलाइए |

वैसे तो आप रोज़ उन्हें चाय पिलाते है, लेकिन आज चाय में …एक दुसरे का एहसास होगा,  सचमुच का प्यार होगा |

और हाँ,  हमलोग के लिए भी तो चाय बनता ही है…..डॉ साहब हँसते हुए बोले |

बहुत ही खुशनुमा माहौल था | सभी लोग ख़ुश होकर डॉ साहब को और भगवान् को  धन्यवाद दे रहे थे |     कौशल्या के आँखों के आँसू पोछते  हुए दशरथ मुस्कुरा रहा था |

उसे ऐसा लग रहा था कि उसके बेजान शरीर में फिर से जान आ गई है | उसने दोनों डॉ को दिल से धन्यवाद दिया और चाय के लिए वहाँ खड़े स्टाफ को इशारा किया |

चाय पीकर डॉ साहब अपने चैम्बर में लौट आये | पीछे पीछे दशरथ भी उनके  चैम्बर में आ गया |

डॉ प्रसन्ना ने दशरथ  की ओर देखते हुए बोले …अभी कुछ दवा लिख रहा हूँ | उन्हें समय समय पर देते रहिये और उनसे अभी ज्यादा बात नहीं करे |  उन्हें अभी  आराम की ज़रुरत है |

अब मैं चलता हूँ और कल फिर visit करूँगा |  वैसे आप के डॉ साहब तो है ही यहाँ, इनकी देख – भाल करने के लिए |

इस तरह, एक सप्ताह बाद कौशल्या काफी स्वस्थ हो गई | दशरथ उसका खूब ख्याल रखते एवम समय पर दवा, समय पर खाना और नास्ता देते | सुबह में उसे वरामदे में थोडा टहलाते भी थे |

शाम को दशरथ डॉ  साहब के पास पहुँचे | मरीजो के देखने के बाद, ….डॉ साहब ने दशरथ को अपने चैम्बर में बुलाए और अपने स्टाफ को चाय लाने  का आर्डर दिया |

चाय पीते हुए डॉ साहब ने पूछा ..आप कुछ बात करना चाह रहे है मुझसे ?

जी हाँ, सोच रहा था कि कौशल्या तो अब ठीक हो गई है, तो क्यों ना आप उसे छुट्टी दे दे |

डॉ साहब कुछ सोचते हुए बोले…हां, अब उन्हें हॉस्पिटल से छुट्टी दी जा सकती है | पर बुरा ना माने तो एक बात पूछूँ ?

हाँ हाँ…पूछिये…दशरथ ने कहा | आप तो वृद्धाश्रम  में रहते है, पर कौशल्या जी को कहाँ रखेंगे ?

उसे भी वृद्धाश्रम में जहाँ मैं रहता हूँ….दशरथ बोला | मैंने तो आश्रम के संचालक से बात भी कर ली है |

तभी दशरथ के मोबाइल की घंटी बज उठी …दशरथ फ़ोन करने वाले का नाम पढ़ कर फ़ोन को रिसीव करने से झिझक रहा था | क्योकि यह उनके बेटे अभिराम का फ़ोन था |

तभी डॉ साहब ने इशारा किया कॉल रिसीव करने का |  दशरथ ने कॉल रिसीव किया और साथ ही साथ स्पीकर को ऑन कर दिया |

उधर से अभिराम बोल रहा था ….क्या हुआ पापा ? … आप ने  मेरे प्रस्ताव का कोई ज़बाब नहीं दिया ?     आप चाहते ही नहीं है कि माँ ठीक हो, तभी तो घर का मोह पाल कर बैठे है |

मुझे क्या ? मैं तो इंतजार कर लूँगा कुछ दिन और | आप लोगों के मरने के बाद तो सब मेरा होगा ही |            

हाँ, .आप के इस जिद में माँ पागल होकर अभी  ही मर जाएगी |

उसकी बातें सुन कर दशरथ गुस्से में कांपने लगे | और उन्होंने मोबाइल बंद कर दिया |

कुछ देर तक तो  ख़ामोशी रही | लेकिन थोड़ी बाद दशरथ डॉ साहब की तरफ देख कर बोला …….मैं  आप से कुछ विशेष बात  करना चाह रहा हूँ ,…क्या आप के पास समय है ?

इस पर डॉ साहब बोले ……हाँ – हाँ बोलिए …मैं सुन रहा हूँ |

अभिराम जो कुछ भी हमारे साथ कर रहा है …..उसकी जितनी भी निंदा की जाये कम ही है | इसलिए मैं चाहता हूँ कि उसके साथ कुछ ऐसा करूँ कि उसे एक सबक मिले |

आज कल तो समाज में बूढ़े माता – पिता को प्रताड़ित करना,  उनका अपमान करना, उनका धन – दौलत छीन कर घर से निकाल देना, उन्हें दर -दर की ठोकरे खाने के लोए छोड़ देना ….यह सब आम बात है |

मैं अभिराम के माध्यम से उन सारे कपूतों को और नई पीढ़ी को सन्देश देना चाहता हूँ कि या तो सुधर जाओ ..या फिर बूढ़े माँ – बाप का इंतकाम  झेलने के लिए तैयार हो जाओ |

चूँकि हम लोग के मरने के बाद खुद ब खुद मेरी संपत्ति और घर पर उसका अधिकार हो जायेगा … अतः जिंदा रहते ही मैं … अपने घर का .. सम्पति का वसीहत करना चाहता हूँ या फिर उसे बेच देना चाहता हूँ ताकि उसे एक फूटी – कौड़ी भी हाथ ना लगे |

कुछ देर खामोश रहने के बाद दशरथ फिर बोले…. दबंग आदमी जिसने मेरे मकान पर कब्ज़ा कर रखा है वह कई बार कह चूका है कि बाकी के पैसे मैं ले लूँ और मकान उसके नाम से रजिस्ट्री कर दूँ |

अब सोचता हूँ कि मैं उससे पैसे लेकर उसका यह काम कर देता हूँ ..आप का क्या विचार है ? …….दशरथ  डॉ साहब से पूछा |

इसपर डॉ साहब ने कहा … आपका विचार तो ठीक है, ….परन्तु हमलोग उससे मोल -मोलाई करे तो कुछ ज्यादा पैसे मिल सकते है |

लेकिन आप इन पैसो का करेंगे क्या ?  …क्योकि यह पैसा अन्ततः तो अभिराम को ही मिलेगा |

नहीं डॉ साहब …अभिराम को एक पैसा भी नहीं दूंगा | मैं इस पैसे को कुछ संस्थाओं को दान कर दूंगा जो हमारे जैसे वृद्ध और अनाथ लोगों की सेवा में लगे हुए है |

डॉ साहब ने बोला ..यह तो बहुत अच्छा विचार है आप का |

और इसके बाद की कहानी  तो छोटी है | दशरथ ने अपने घर को एक करोड़ रूपये में उसी  दबंग आदमी को बेच दिया और जो पैसे मिले…  उसकी  आधी राशी यानि ५० लाख  रूपये वृद्धाश्रम, जिसमे वह रहा है उसमे दान कर दिया ताकि  सभी सुविधा से युक्त एक अच्छा वृद्ध आश्रम का निर्माण हो सके |

और बाकी के ५० लाख की राशी डॉ साहब के हॉस्पिटल को दान कर दिया ताकि डॉ साहब कौशल्या के नाम पर लोगों का मुफ्त इलाज करने के लिए एक हॉस्पिटल का निर्माण कर सके  |

और अभिराम देखता रह गया , उसके किये की सजा मिल गई थी शायद ..|

दोस्तों …आप को यह कहानी कैसी लगी …अपने विचार और सुझाव हमें ज़रूर कमेंट के माध्यम से बताएं …

“ज़िंदगी इम्तिहान लेती है” , कहानी हेतु नीचे दिये लिंक को click करें

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