
आज डॉ साहब के क्लिनिक पर बहुत भीड़ थी | दशरथ जब कम्पाउण्डर के पास पहुँचा तो उसने बताया कि उसका नंबर सातवां है | करीब आधा घंटे बाद उसका नंबर आएगा |
लेकिन दशरथ ने कम्पाउण्डर से विनती किया कि उसे डॉ से तत्काल मिलने दिया जाये | जब कम्पाउण्डर ने मना कर दिया तो उससे उलझ गए और जोर जोर से बार बार यही दुहराने लगे कि डॉ से अभी तुरंत मिलना है |
बाहर शोर गुल सुन कर डॉक्टर साहब अपने चैम्बर से बाहर निकले ……तो सामने दशरथ को देख कर आश्चर्य से बोल पड़े … दशरथ बाबु आप ?…….फिर उन्होंने झुक कर प्रणाम किया | तो उन्होंने आशीर्वाद दिया और कहा …देखिये ना, आप के कम्पाउण्डर आप से मिलने ही नहीं दे रहे है |
डॉ साहब ने कम्पाउण्डर को समझाया …ये दशरथ बाबू है, और जब भी ये यहाँ आये इनको मुझसे मिलने के लिए किसी के आदेश की ज़रुरत नहीं है …आप इन्हें तुरंत मेरे पास भेज देना |
डॉ साहब वहाँ उपस्थित लोगों से कहा …मैं आप लोगों से माफ़ी चाहता हूँ, ये काफी बुजुर्ग है और हमारे करीबी है, इसलिए मैं पहले इनको देखने की इज़ाज़त चाहता हूँ | फिर डॉक्टर साहब बोलते हुए दशरथ जी को अपने साथ चैम्बर में लेते गए |

डॉ साहब ने पूछा…हाँ तो, दशरथ जी .आप बोलिए, आप इतनी जल्दी में क्यों है ?..
आप तो जानते ही है मेरी उम्र अब ८५ साल हो चूकी है और बुढ़ापे की कोई न कोई बीमारी लगी ही रहती है | आप के अलावा मैं किसी दुसरे डॉक्टर के पास नहीं जाता हूँ …दशरथ उनको देखते हुए बोल रहे थे |
दरअसल बात यह है कि पंद्रह मिनट बाद मुझे पास के अपोलो हॉस्पिटल में जाना है जहाँ मेरी पत्नी भर्ती है और इस समय दोनों साथ साथ नास्ता करते है और चाय पीते है |
आप की पत्नी को हुआ क्या है ?..डॉक्टर साहब आश्चर्य से पूछा |
उनको अल्जाइमर नामक बीमारी है ..दशरथ जी ने कहा |
यह तो बहुत रेयर बीमारी है, उनकी तो याददाश्त ही चली गई होगी | वो आपको तो पहचानती भी नहीं होगी शायद ?…डॉक्टर ने जिज्ञासा से पूछा |
आप ठीक बोल रहे है, वो सामने तो होती है लेकिन मुझे पहचान नहीं पाती है कि मैं कौन हूँ ..वे बोले |
तो फिर उन्ही के साथ आप का नास्ता और साथ में चाय पीना ?,,डॉक्टर ने फिर आश्चर्य से पूछा |
ये परंपरा तो पिछले पचास सालों से निभा रहा हूँ, आज कैसे तोड़ दूँ ?
वो मुझे नहीं पहचानती तो क्या हुआ, मैं तो उसे जानता हूँ ..दशरथ जी की आँखे छलक आई |

आप ठीक कहते है दशरथ जी … रिश्ते निभाने के लिए बहुत कुछ सहना पड़ता है |
लेकिन आप तो बहुत दिन बाद दिखाई पड़े है, कही पटना से बाहर तो नहीं चले गए है ? आप अभी कहाँ रहते है ..डॉक्टर साहब पर्ची लिखते हुए पूछ बैठे |
मैं पटना में ही हूँ और अनाथ आश्रम में रहता हूँ …दशरथ जी ने उदास स्वर में कहा |
लेकिन आप के घर का क्या हुआ ?. …डॉक्टर साहब आश्चर्य से बोला |
यह एक लम्बी कहानी है डॉक्टर साहब, कभी फुर्सत से सुनाऊंगा …दशरथ लम्बी सांस खीचते हुए कहा |
ठीक है, मैं अब आप को देर नहीं करूँगा | आप पर्ची पर लिखे दवा लेते रहिये और समय समय पर आ कर चेक -अप कराते रहिएगा …डॉक्टर साहब ने कहा |
धन्यवाद डॉक्टर साहब ..दशरथ उठते हुए बोला और तेज़ कदमो से हॉस्पिटल की ओर चल पड़ा | थोड़ी ही देर में अपनी कौशल्या के सामने था | दशरथ के वहाँ पहुचते ही नास्ता और थर्मस में चाय लाकर वहाँ के वार्ड- बॉय टेबल पर रख कर चला गया |
रोज़ की तरह दशरथ नास्ता प्लेट में लगा कर उसके सामने बैठ गए और दोनों खाना खा रहे थे | अचानक कौशल्या उनको देख कर मुस्कुरा दी |
उनको लगा कि कौशल्या की यादाश्त वापस आ गई है | वह खुश होते हुए उसकी तरफ देख कर पूछा..कौशल्या, तुम मुझे पहचान रही हो ?
लेकिन अगले पल कौशल्या उनकी बातों पर ध्यान ना देते हुए पहले की तरह ही व्यवहार करने लगी |

दशरथ को ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि डॉक्टर ठीक से इलाज करे तो उसकी याददाश्त वापस आ सकती है | और उसकी ज़िन्दगी में फिर से खुशियाँ प्राप्त हो सकती है |
उसने मन ही मन सोचा कि क्यों ना अपने वाले डॉक्टर साहब से इस पर उनकी राय ली जाये |
दुसरे ही दिन, सुबह – सुबह दशरथ डॉक्टर के क्लिनिक आया तो कम्पाउण्डर उन्हें देख कर रोका नहीं बल्कि खुद उन्हें डॉक्टर साहब के पास ले कर गए |
कहिये दशरथ जी , आज फिर कैसे आना हुआ ? कोई तकलीफ है क्या ? …डॉक्टर साहब ने पूंछा |
नहीं डॉक्टर साहब, मुझे तो कोई तकलीफ नहीं है, लेकिन अपनी पत्नी के बारे में कुछ ज़रूरी बात करना चाहता हूँ ..दशरथ आशा भरी नज़रों से डॉक्टर की तरफ देख कर बोला |
हाँ हाँ, बताइए न, क्या पूछना चाहते है ?..डॉक्टर साहब ने पूछा |
कल जब मैं पत्नी के पास बैठा हुआ था तो कुछ समय के लिए वो नार्मल लगी और मुझे देख कर मुस्कुराई भी | मैंने समझा, उसकी याददाश्त वापस अ गई है | लेकिन अगले पल फिर वही पुरानी स्थिति में आ गई |
मेरा दिल कहता है कि वह बिलकुल ठीक हो सकती अगर आप उसका इलाज करें ..दशरथ ने अपने मन की बात कही |
देखिये दशरथ जी, मैं एक फिसियन हूँ | हालाँकि इस रोग के बारे में मुझे जानकारी है, लेकिन इस का स्पेशलिस्ट नहीं हूँ | अगर आप चाहते है तो मेरा एक मित्र है जो इसका स्पेशलिस्ट है, उसके साथ टीम बनाकर उनका इलाज शुरू कर सकता हूँ ..डॉक्टर साहब ने दशरथ को अपनी हकीकत बता दी |

कितना पैसा खर्च होगा इस इलाज़ में …दशरथ उत्सुकता से उनके पूछा |
आप पैसे की चिंता मत करे..डॉ साहब ने कहा |
फिर भी, दशरथ खर्चे का अनुमान लगाना चाहता था, क्योंकि उसे उतने पैसों का इंतज़ाम भी तो करना होगा |
पैसो की बात सुन कर डॉ साहब सीरियस हो गए और कहा ……आप कैसी बातें करते है दशरथ बाबू ?
मैं तो पैसे लेने के बारे में सोच भी नहीं सकता | मैं तो आपका ज़िन्दगी भर ऋणी रहूँगा | मैं यह कैसे भूल सकता हूँ कि ..आप के कारण ही आज मैं डॉक्टर बन पाया हूँ |
मुझे आज भी याद है.. मेरी माँ आप के यहाँ घर का काम करती थी | आप के दिए पैसों से ही हम लोगों का गुज़ारा होता था | पिता जी तो बहुत पहले गुज़र गए थे ..आपने मेरी पढाई की पूरी जिम्मेवारी उठाई थी और डॉक्टर की पढाई में भी आप ने मदद की है ..डॉक्टर साहब उन दिनों को याद कर भावुक हो गए |
कैसे भी हो, मैं उनका इलाज़ करूँगा | वो मेरी माँ के सामान है, उनके हाथों का बना खाना मैंने बहुत खाया है | अब मुझे उनके लिए कुछ करने का अवसर मिल रहा है तो मैं पीछे नहीं हटूँगा
मैं हर संभव प्रयास करूँगा कि वो बिलकुल ठीक हो जाएँ …बाकि तो सब ईश्वर के हाथ में होता है | परन्तु मुझे विश्वास है कि इस बार भी ईश्वर हमारी मदद करेगा |
आप कल उनका मेडिकल रिपोर्ट लेकर आइये और उसके बाद स्पेशलिस्ट डॉक्टर से इस पर विचार- विमर्श करता हूँ | और ज़रुरत पड़ी तो हॉस्पिटल जाकर उनकी स्थिति का मुआयना भी कर आऊँगा …डॉक्टर साहब समझा कर बोल रहे थे |
ठीक है डॉ साहब, लेकिन एक विनती और है कि आप उन्हें अपनी हॉस्पिटल में ही एडमिट कर लें..दशरथ हाथ जोड़ कर बोला |
आप निश्चिन्त रहें , आप जैसा चाहते है वैसा ही होगा ..डॉ साहब उनको आश्वस्त कर देना चाहते थे |
दशरथ पहले भगवान् का और फिर डॉ साहब को शुक्रिया अदा किया क्योंकि आशा की एक नयी किरण नज़र आने लगी थी …. ( क्रमशः)
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अच्छी कहानी।
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बहुत बहुत धन्यवाद डियर |
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Acchi Kahani.
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Thank you so much, dear.
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