
हिन्दी दिवस पर विशेष
आज जब मैं ब्लॉग लिख रहा था तो एक अजीब वाकया हुआ | मैं अपनी लेखन के बीच बीच में फेस बुक भी ट्रैक कर रहा था | उसी में से एक मित्र की पोस्ट की हुई एक कहानी पढने लगा | मुझे शुरू में लगा कि यह तो मेरी लिखी कहानी के जैसा प्रतीत हो रहा था |
जब पूरा पढ़ गया तो मुझे महसूस हुआ कि यह तो मेरी ही लिखी हुई कहानी की चोरी की गई थी | बिलकुल हु ब हु नक़ल की गयी थी सिर्फ कुछ पात्र के नाम और घटना की जगह बदल दिए गए थे |
मुझे जिज्ञासा हुई तो उनके पेज को जब स्क्रॉल किया तो पाया कि एक नहीं अनेक मेरी रचना की चोरी कर वो महाशय अपने फेसबुक पेज पर डाल रखे है और बड़े मज़े की बात यह कि मेरे ब्लॉग में जितने अच्छे कमेंट्स नहीं मिले उससे भी अच्छे और ज्यादा कमेंट्स उनके पेज में पढने को मिले |
वैसे बड़े साहित्यकार की प्रति छापते है तो उनकी नाम भी बताने की ज़रुरत पड़ती है लेकिन छोटे लोगों को कौन आभार प्रकट करता है ?
मुझे अपनी इस कहानी की चोरी पर उस महाशय के ऊपर गुस्सा नहीं आया बल्कि मुझे अपने पुराने दिनों की एक घटना याद आ गयी | उस समय मैं भी इसी तरह साहित्य की चोरी किया करता था | मुझे वह वाक्या अभी भी याद है जिसे महसूस कर आज भी मेरे चेहरे पर मुस्कराहट बिखर जाती है | वो घटना कुछ इस तरह थी…..

बात उन दिनों की जब मैं स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर एंड जयपुर की क्षेत्रीय कार्यालय, पटना में पदस्थापित था | यह बात सन २००४ की है | उन दिनों बैंक से सम्बंधित सभी कार्य मैन्युअल हुआ करता था और computerization नहीं हो पाया था |
मुझे जबरदस्ती हिंदी ऑफिसर बना दिया गया था | मुझे अपनी सीट के कार्य के आलावा हिंदी विभाग भी संभालना था | दरअसल किसी काम को मैं मना नहीं करता था और क्षेत्रीय प्रबंधक महोदय मुझे बहुत मानते थे | इस लिए उनके निर्देश का पालन करते हुए मैं हिंदी ऑफिसर का पद संभाल लिया और धीरे धीरे हिंदी भी सिखने लगा | हिंदी अधिकारी होने के कारण सभी पत्रों के ज़बाब हिंदी में लिखने पड़ते थे |
इस सिलसिले में कुछ साहित्यिक लेखन की नक़ल भी करने लगा ताकि हिंदी कार्य को ठीक से कर सकूँ.|. उन्ही दिनों हमारे प्रधान कार्यालय में लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसके प्रभारी श्री रमा कान्त शर्मा जी थे | और “हिंदी दिवस” के अवसर पर उन्होंने मुझे निर्देश दिया कि अपने क्षेत्र की शाखाओ से प्रतियोगी की भागीदारी सुनिश्चित की जाये |
और सब प्रतिभागी से निबंध की एक प्रति उनसे एकत्र कर मुख्य कार्यालय को भेजना है | ताकि उतीर्ण प्रतिभागी को उचित पुरस्कार दी जा सके | निबंध का शीर्षक था “वायु प्रदुषण और उसके दुष्परिणाम” | बहुत प्रतियोगी ने अपनी लेख मेरे पास जमा किये जिसे प्रधान कार्यालय भेजने थे |
इस बीच शर्मा जी का फ़ोन आया कि आप को भी इसमें भाग लेना है क्योंकि आप हिंदी विभाग के मुखिया है | मुझे तो अपने डेस्क के काम से ही फुर्सत मिलती नहीं थी और हिंदी में मैं ज्यादा सहज भी नहीं था | मैं कैसे इस विषय पर निबंध लिख सकूँगा | तब मेरे एक दोस्त ने बहुत अच्छा उपाय बताया. |
उसके सुझाये उपाय के तहत मैं तीन लेख जो मुझे अच्छे लग रहे थे, उसे सेलेक्ट कर लिया और तीनो को मिलाकर एक नया लेख तैयार कर लिया | और लेखक में अपना नाम डाल दिया | मैं तो बस शर्मा जी के निर्देश का पालन करने हेतु बेमन से दूसरों की लेख की चोरी कर एक नया लेख तैयार कर लिया था |
मुझे उस दिन बहुत आश्चर्य हुआ जब उतीर्ण प्रतिभागी में मेरा भी नाम था | मुझे द्वितीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और मैंने जिनकी निबंध की नक़ल की थी वे लोग पहला और तीसरा स्थान पर थे और एक तो चौथे स्थान पर खिसक गए थे | मुझे पुरस्कार मिलने की एक तरफ तो ख़ुशी महसूस हो रही थी लेकिन दूसरी तरफ लेखन की नक़ल करने पर आत्मग्लानी भी….

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मन की कलम से
दर्द की स्याही बिखरता रहा
दिल बेचैन था
रात भर मैं लिखता रहा ..
छू रहे थे लोग
बुलंदिया आसमान की
मैं पानी की बूंद
बादलों में छिपता रहा |
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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Categories: मेरे संस्मरण
Finally apne Hindi Diwas vishesh likh hi dia!!
Bhut khoob
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Your words should be honored… 😂😂
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Even I get honored I want mind.
Let’s start petition to declare me as the best health blogger here.
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Yes, dear,
Undoubtedly, you are the best health blogger.
Keep writing and enjoy your beautiful life.
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It was an honour to read your post
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Thank you so much, dear.
I am happy for your time and support.
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My pleasure 😇
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Stay happy and stay blessed.
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