# एक अधूरी प्रेम कहानी #..9 

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तेरी मेरी कहानी

अब सूरज पूरी तरह निकल चुका था और खोली के अंदर उजाला हो गया था, तभी मेरी नज़र सुमन के चेहरे पर पड़ी..

आँखे सूजी हुई, बाल बिखरे हुए, पागलों जैसी हालत  बना रखी थी | शायद रात भर सो नही सकी थी |

सुमन की ऐसी हालत देख कर मुझे आंतरिक पीड़ा हो रही थी ..मैं उसे बाहों से पकड़ कर चारपाई पर अपने पास बैठाया और नाराज़गी से बोला..ये तुमने अपनी क्या हाल बना रखी है।

तुम पर पहले से ही इतना काम का बोझ है और फिर भी तुम हम सब का कितना ख्याल रखती हो |  लेकिन तुम खुद पर ध्यान क्यों नहीं देती हो |

अगर तुम्हें किसी बात की कमी है तो मुझे  बताओ । उसे पूरा करने के लिए मुझे जान भी देना पड़े तो मैं पीछे नही हटूंगा।

सुमन उसके मुंह पर हाथ रखते हुए बोली ..तुम ऐसी बातें मत करो । तुम्हे कुछ हो गया, तो मैं भी जीवन समाप्त कर लुंगी ।

यह सच है कि मुझ से कल बहुत बड़ी  भूल हुई थी जो मैंने  तुम्हे थप्पड़ मार दी….इसी के पछतावा में रात भर सो ना सकी और खाना खाने की भी इच्छा नहीं हुई |.

मैं तुम्हे फिर से पहले वाला रघु देखना चाहती हूँ …एक दम मस्त मौला, और खुश । तुम मर्द हो और तुम्हे मर्द  की तरह  देखना चाहती हूँ ।

तुमने आज मुझे माफ कर दिया,  अब  मेरा मन का बोझ हल्का हो गया …..सुमन प्यार भरी नजरो से देख रही थी |  

तभी मैं खोली में रखे  टिन के बक्से से एक साड़ी और  कुछ अन्य वस्त्र देते हुए कहा .. तुम जा कर नहा – धो लो | तुम्हारी ऐसी सूरत हमें अच्छी नहीं लगती है |

सुमन साड़ी को हाथ में लेकर आश्चर्य से पूछी ..क्या यह मेरे लिए है ?

तो यहाँ कोई और औरत रहती है क्या ?..मैंने उसे देखते हुए जबाब दिया |

वो साडी को लिए हुए मुझसे लिपट गई और कहा..तुम मेरा कितना ख्याल रखते हो |

तभी हरिया चाय लेकर अंदर आया और बोला..लगता है अब शिकवा – शिकायत खत्म हो गया है |  आज रविवार है, आज तो रघु भैया के तरफ से पार्टी होना चाहिए |

आज मैडम अपने हाथों से खाना बनाएगी । मैं बाज़ार से जाकर चिकन लाता  हूँ | हमलोग आज फूल एन्जॉय करेंगे ।

तभी वहाँ विकास आ गया और चाय का गिलास हाथ में लेते हुए बोला ..बहुत दिन हो गए सुमन मैडम के हाथ का खाना खाए हुए |

सुमन झट से बोली …हाँ – हाँ, .. आज हमलोग ज़रूर पार्टी करेंगे,  आज मेरी भी छुट्टी है |

सब लोग जल्दी जल्दी नहा धो कर खाना बनाने की तैयारी में लग गए |  

हरिया अपना काम कर दिया …चिकन ले कर आ गया |

तभी सुमन विकास को प्याज़ लहसुन छिलने का काम सौप दिया और

रघु को चिकन को पानी से धोना, और मसाला तैयार करने  का कार्य मिला |

सुमन खुद बर्तन धो कर खाना बनाने में लग गई और हरिया सुमन का सहायक बन खाना बनाने में मदद करने लगा |

सचमुच पार्टी जैसा माहौल था और सब लोग फुल एन्जॉय कर रहे थे |

अच्छी खुशबु आ रही  है ..मैंने कहा, तो हरिया पलट कर ज़बाब दिया …बना कौन रहा है, …सुमन मैडम, खुशबु तो आनी ही है |

हमलोग ज़मीन पर चटाई बिछा कर एक साथ बैठ गए और सुमन सबके थाली में बारी बारी से भोजन परोसने लगी

तभी, विकास बोल पड़ा ..आप भी अपनी थाली ले कर आइये, मैडम |  हमलोग सब साथ साथ खाना को एन्जॉय करेंगे /

मैंने कहा….सुमन के हाथ में तो जादू है,  इसका हाथ लगते ही भोजन स्वादिस्ट हो जाता है | सचमुच मज़ा आ गया |

सुमन मुझे  देख कर बोली … तब तुम मेरी फरमाईस पूरी करो |

जी बिलकुल ..आप अपनी  इच्छा बताएं ..मैंने हँसते हुए बोला |

आज तुमको मूवी दिखाना होगा | पहले हमलोग कैसे छुप छुप के जाते थे,  याद है ना…सुमन खुश होकर याद दिला रही थी |

मैंने तुरंत उस समय को याद कर बोला ..मुझे सब याद है सुमन | लेकिन तुम वो सुमन अब नहीं हो,  अब तुम मेरी बॉस बन गई हो |

सुमन तुरंत हस्तक्षेप की …ऑफिस की बात घर में नहीं |

अच्छा तो ऐसी बात है,  मुझे तो पता ही नहीं था कि आप लोग छुप – छुप कर मूवी देखते थे ….हरिया बीच में बोल पड़ा |

उस समय तो तुम मुंबई आये भी नहीं थे ..मैंने सफाई दी |

सुमन मूवी जाने के लिए तैयार होकर मेरे पास आयी और  कहा..आज तुम्हारा दिया हुआ ही साड़ी  पहन कर चलूँगी तुम्हारे साथ |

अगर मैनेजर  साहेब ऐसी साधारण साड़ी में तुम्हे देख लिए तो मुझे कल ही नौकरी से निकाल देंगे ..मैंने  मजाक से कहा |

सुमन  मेरी ओर देखते हुए बोली …फिर मुझे गुस्सा ना दिलाओ और जल्दी से चलो | मुझे शुरू से मूवी देखनी है |

हम और सुमन  एक टैक्सी लेकर निकल पड़े सिनेमा हॉल की ओर |

लेकिन रास्ता जाम होने के कारण वहाँ पहुँचने में देरी हो गई और पिक्चर शुरू हो चुकी थी |

टिकट लेकर जल्दी से हॉल में प्रवेश किया | वहाँ अंदर में भीड़ हो गई थी और सभी लोग सीट ढूंढने में परेशान थे | मैं भी टिकट – चेकर से सीट के बारे में पूछने लगा | तभी सुमन का हाथ छुट गया और गलती से किसी दुसरे औरत का हाथ पकड़ा गया |

अँधेरा होने के कारण कुछ भी नहीं दिख रहा था | मैं उसी औरत को सुमन समझ कर हाथ पकडे सीट तक ले गया और हम दोनों साथ बैठ गए | मैं चुप चाप पिक्चर  देखता रहा और सोचता रहा कि सुमन इतना  शांत क्यों बैठी है |

मैं उसका हाथ पकड़ कर दबाना चाहा, तभी हॉल में रौशनी हो गई, शायद इंटरवल हो गई थी |  मैं बगल में जैसे ही देखा तो होश उड़ गए | सुमन की जगह मैं किसी दूसरी औरत को ले आया था अँधेरे में |

वो औरत भी मुझे देख कर शरमा गई और वो भी अपने मरद को ढूंढने लगी |

मैंने उनको कहा …मुझे माफ़ कीजिये | गलती हो गई |

वो औरत ज़बाब देने के बजाए अपने आदमी को ढूंढने आगे चली गई |

मैं माथा पकड़ कर वहीँ बैठ गया और सोचने लगा कि सुमन को अब कहाँ ढूँढू |

मैं हडबडाहट में उसे इधर उधर देखता रहा पर वह कही दिखाई नहीं दी |

मैंने सोचा… वो  नाराज़ होकर कहीं वापस तो नहीं चली गई ? अब मैं अकेला कैसे मूवी देख सकता था |..

मुझे तो बहुत पछतावा हो रहा था, कितने दिनों के बाद दूसरी बार हमलोग मूवी देखने आये थे | वो भी सुमन की इच्छा आज पूरी नहीं कर सका |

मैं  उदास कदमो से हॉल से बाहर जाने लगा |

जैसे ही हाल से निकल कर चाय स्टाल पर आया तो देखा सुमन वहाँ अकेली बैठी है |

मैं जल्दी से उसके पास जाकर बोला..मुझे माफ़ कर दो सुमन |

माफ़ क्यों कर दूँ ? तुम तो उस औरत के साथ मूवी के मज़े लिए ना |

मैंने तो आवाज़ भी दी थी लेकिन तुम नहीं सुने | वो औरत मुझसे ज्यादा सुंदर थी, शायद |

मैंने तो माफ़ी मांग लिया ना ..मैंने बोला |

तुम कहो तो कान पकड़ कर उठक- बैठक करूँ |लेकिन लोग देखेंगे तो तुम्हे ही दोष देंगे |

तुम सारे मर्द एक जैसे ही होते हो | चिकनी – चुपड़ी बातो में औरत को तुरुन्त पटा लेते हो….सुमन मेरी ओर देखते हुए बोले जा रही थी |

अच्छ ठीक है बाबा,  अब तो माफ़ कर दो |

ठीक है, एक शर्त पर माफ़  करुँगी कि तुम मुझे चौपाटी लेकर चलोगे जहाँ हमलोग पहली बार सबसे छुप कर गए थे |

मैं फिर से उन दिनों के मस्ती को महसूस करना चाहती हूँ |

सुन कर मैं तुरंत तैयार हो गया | इसी बहाने सुमन के साथ कुछ पल बिताने का मौका मिलेगा | वो जब साथ होती है तो मुझे ऐसा लगता है कि  सारे जहाँ की खुशियाँ मिल गई है | पता नहीं, ये कैसा बंधन है उसके साथ |

मैं उसका हाथ थामे निकल पड़ा और कहा ..अब तुम्हारा हाथ कभी नहीं छोड़ूगा |

मैं छुड़ाने भी नहीं दूंगी ..वो प्यार भरी नजरो से देख रही थी और टैक्सी अपनी रफ़्तार से सड़क पर दौड़ रही थी |

थोड़ी ही देर में हमलोग उस जगह पहुँच गए जहाँ से अपनी प्यार की शुरुआत हुई थी |

आज सुमन खुश थी, उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था कि उसे उसके सपनो का राजकुमार मिल गया हो और अपना सारा प्यार उस पर खर्च कर देना चाहती हो |

वो  सी -बिच पर खुश होकर दौड़ रही थी और मेरा हाथ खीच कर मुझे भी दौड़ाते  हुए पानी में लिए जा रही थी | हमलोग पूरी तरह भींग चुके थे | लेकिन इसकी परवाह किये बिना, वो बच्चो जैसी हरकतें  कर रही थी | अचानक  बालू पर बैठ हाथ और पैर के सहारे बच्चो की तरह वो  घरोंदा बनाने लगी |

तभी मैंने पूछ डाला…..ये क्या कर रही हो ?.

अपने सपनो का घर बना रही हूँ | जिसमे हम तुम रहेंगे और मेरे बच्चो खेलेंगे इसके आँगन में ….वो खुश खुश हो कर बोल रही थी |

सपना देखना आसान है सुमन | सपने तो सपने होते है, अगर किसी की नज़र लग गई तो ?

दुःख के बाद सुख आता है, यह प्रकृति का नियम है रघु |

देखना, हमलोगों की खुशिओं को किसी की नज़र नहीं लगेगी |

मुझे भगवान् पर पूरा भरोसा है |

उसी समय चाट वाला आ गया और सुमन चाट खाने की जिद करने लगी | मैं भी उसकी ख़ुशी में शरीक हो गया |

फिर गुब्बारा देख कर उसकी जिद करने लगी, और गुब्बारा को आकाश में जाते हुए देख कर खुश हो रही थी |

मैं भी आज उसकी सभी इच्छाओं को पूरी करना चाहता था |

उसने वहाँ कभी चूड़ी तो कभी कुछ और श्रृंगार की चीजो की फरमाईस करती रही | और मैं पूरी करता रहा |

वो आज अपनी  ज़िन्दगी अपने शर्तो पर जीना चाहती थी ..बिंदास और बेख़ौफ़ |

इसी का तो मुझ पर भरोसा था उसे | वो जानती थी मेरे साथ जीने का एक अलग रंग है |

बातों बातों में सुमन से पूछ ही लिया …हमलोग तो अच्छे दोस्त है, वो तो ठीक है | लेकिन, मुझ जैसा गरीब आदमी के लिए अपना जीवन दांव  पर क्यों  लगा रही हो | तुम तो मेरे बारे में सब कुछ जानती हो |

प्यार का मतलब समझते तो ऐसा नहीं बोलते ….वो भावुक होकर बोली…

मेरी बातों से अचानक वो  भावुक हो गई और उसके आँखों से आँसू छलक आए |

मैं उसे सीने से लगा कर कहा …मैं फिर तुम्हारा दिल दुखा  दिया, सुमन | मुझे माफ़ कर दो |

नहीं ,आज मुझे मेरे दिल की बात कहने दो |

तुम जो बार बार सोचते हो कि मैं तुम पर एहसान करती हूँ | ऐसी बात नहीं है |

तुम मुझे उस समय मिले थे जब मैं बेसहारा मुंबई में अकेली  जिस्म के भेडियो से बचने की कोशिश कर रही थीं | तुम उस समय मुझे उन समाज के दुश्मनों से ही नहीं बचाया, बल्कि  मुझे हर कदम आगे बढ़ने में मदद करते रहे हो |

और उसी का परिणाम है कि  मैं एक अच्छी स्थिति में हूँ | मेरा शरीर पर अगर किसी का अधिकार है तो सिर्फ तुम हो |

तुम गरीब  हो,  शादी – शुदा हो या चाहे जो भी हो …मैं तो दिल के हाथो मजबूर हूँ | मैं तुमसे अलग नहीं रह सकती रघु |

तभी उसके मोबाइल की घंटी बज उठी …फ़ोन पर बात कर कुछ परेशान सा हो गया था |

तभी सुमन पूछ बैठी …किसका फ़ोन था ?

रामवती का …मैंने कहा | ….. (क्रमशः)

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7 replies

  1. Hello sir, Have you ever published your solo book or book with Co-authors before? I am asking because I am compiling an Anthology and I would like to invite as co-author for my ongoing Anthology.

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