
मैं तेरी दीवानी
अनजान राहों में मिले थे हम, अजनबी कहानी थी,
दरमियाँ अपने खामोश निगाहें थी, मंजिल अनजानी थी
मैं जान लूँ कुछ तुमको .. ये तो बस बहाना था
मैं तेरी दीवानी थी …. तू मेरा दीवाना था |
मुझे आजकल मैनेजर साहेब की नियत कुछ ठीक नहीं लग रही हैं उनकी यह बराबर कोशिश रहती है कि सुमन को ज्यादा से ज्यादा मुझसे दूर रखा जाये और वो खुद हमेशा कोई ना कोई काम में उलझा कर उसे अपने आस पास रखे |..
वो तो भला हो सेठ जी का कि सुमन को इतना मानते है और भरोसा करते है कि उसे लगातार आगे बढ़ने का मौका देते रहते है और उसे कंपनी का मार्केटिंग हेड बना दिया |
सुमन हाथ में फाइल लिए मैनेजर साहेब के चैम्बर में पहुँची | शायद उस पर कुछ ज़रूरी वार्तालाप करनी थी |
उसी समय सेठ जी ने मुझे आवाज़ लगा कर बुलाया |
मैं दौड़ते हुए सेठ जी के चैम्बर में घुसा और उनके आदेश का इंतज़ार करने लगा |
सेठ जी मुझे देखते ही एक फाइल दे कर कहा… देखो, जल्दी में मैडम ने तो फाइल लिया ही नहीं तो वार्तालाप क्या करेगी | इसे जल्दी से मैडम को पहुँचा दो ताकि इसी के अनुसार मैडम को उचित निर्देश मिले |
मैं फाइल लेकर जल्दी से मेनेजर साहेब के चैम्बर में घुस गया और तभी मैंने देखा … विशाल बाबू (मैनेजर साहेब) सामने बैठी सुमन का हाथ पकड़ कर उसकी ओर देखते हुए बोल रहे थे…सुमन, मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ | मैं तो सुन कर स्तब्ध रह गया |
अचानक मुझे इस तरह कमरे में देख कर वो भड़क गए और गुस्से में बोले …तुम देख नहीं रहे हो,…हमलोग ज़रूरी बातें कर रहे है | तुम इस समय बिना इज़ाज़त के कैसे अंदर आ गए ?
तुम तो जाहिल के जाहिल ही रहोगे | जाओ यहाँ से और थोड़ी देर बाद आना |
मैं तो बोल भी नहीं सका …कि सेठ जी का आदेश मान कर वह फाइल पहुँचाने आया हूँ |

लेकिन यहाँ तो दुसरे ही प्रोजेक्ट पर चर्चा रही थी | उसके हाथ में सुमन का हाथ देख कर मुझे भी जोर का गुस्सा आया और सोचा कि कुर्सी उठा कर उसके सिर पर दे मारूं , लेकिन सुमन की इज्जत का ख्याल कर के मैनेजर साहेब से उलझना ठीक नहीं समझा और चुपचाप उनके चैम्बर से बाहर चला आया |
लेकिन गुस्से को मैं कण्ट्रोल नहीं कर पा रहा था, इसीलिए सीधा कैंटीन में जा कर बैठ गया और गिलास में रखे पानी को पीकर अपने को सँभालने की कोशिश करने लगा |
उधर, अचानक मैनेजर साहेब की बाते सुनकर सुमन भौचक रह गई | उसने कभी सोचा भी ना था कि मैनेजर साहेब के दिल में ऐसी बातें चल रही थी | ऊपर से सुमन का गुस्सा इसीलिए और भड़क गया , क्योकि मैनेजर ने मुझको नीचा दिखाने की कोशिश की |
इसी गुस्से में सुमन तुरंत अपना हाथ छुड़ाते हुए बोल पड़ी ,… इस तरह की बातें करना आप को शोभा नहीं देती | आप को शर्म आनी चाहिए | आप को इस बात के लिए भी शर्म आनी चाहिए कि रघु को इस तरह बेइज्जत किया |
मैं जानता हूँ कि तुम्हारे मन में क्या चल रहा है | मैनेजर साहेब नाराज़ होते हुए बोले . …वो एक मजदूर है और शादी शुदा भी है | और तुम एक पढ़ी लिखी, सुंदर और उच्च पोजीशन पर हो | लोग और समाज क्या कहेंगे ?
मुझे तो समझ में नहीं आ रहा है कि मुझ मे क्या कमी है और उस एक मजदूर रघु में ऐसा क्या है कि उसके लिए मुझे ठुकरा रही हो | वो तो दो वक़्त की रोटी भी ठीक से नहीं खिला सकता है |
दूसरी तरफ, मुझे देखो… मेरे पास में क्या नहीं है …धन दौलत और रुतबा सभी कुछ है जो एक सम्मान पूर्ण ज़िन्दगी जीने के लिए चाहिए |
मैं तुम्हे वो सारी सुख सुविधा और समाज में प्रतिष्ठा से सिर उठा कर जीने के अवसर प्रदान कर सकता हूँ | आगे हम दोनो मिल कर अपना कोई नया व्यवसाय भी शुरू कर सकते है और एक शानदार जीवन जी सकते है | मैं तुम्हे टॉप की मॉडल बनाऊंगा | अब फैसला तुम्हे करना है कि तुम्हे कैसी ज़िन्दगी चाहिए |
मैंने तो पहले ही कह दिया कि आगे से इस तरह की बातें हमसे ना करें | और सुमन उठ कर चली गई |
मैनेजर साहेब मन ही मन सुमन के इस व्यवहार से जल भुन गया…..और मन में ठान लिया कि इस दोनों के बीच सम्बन्ध विच्छेद करा कर ही रहूँगा और अंत में मैं ही सुमन से शादी करूँगा | देखता हूँ वो कैसे नहीं राज़ी होती है |
मैं कैंटीन में बैठा सोचने लगा ..कल से तो मुझे नए ऑफिस में जाना है और मेरा यहाँ आना भी बंद हो जायेगा | मेरे पीछे में सुमन को मेरे विरूद्ध खूब भड़कायेगा और सुमन को शादी के लिए मजबूर कर देगा |
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ | नौकरी छोड़ने से भी समस्या का समाधान नहीं मिलने वाला है |तभी देखा सुमन भी अपना टिफिन लिए हुए कैंटीन की ओर आ रही है | वो थोडा उदास दिख रही थी,
लेकिन आते ही टिफिन खोल कर फीकी हंसी हँसते हुए बोली…देखो आज तुम्हारे मन पसंद का सत्तूवाली रोटी ले कर आयी हूँ |

मैं अपने गुस्से पर काबू किया और मुस्कराते हुए उसकी टिफिन से रोटी लेकर खाने लगा | तभी सुमन बोली…अरे हाँ, तुम सेठ जी के पास गए थे ?
मैंने सेठ जी का फरमान सुना दिया तो वो चौक कर बोली …लगता है यह मैनेजर का किया कराया साजिश है | तुमने क्या कहा सेठ जी को ?
मैं जबाब देने के बजाये सुमन से ही प्रश्न कर बैठा …तुमने मैनेजर साहेब को क्या ज़बाब दिया ?
सुमन को यह सवाल अच्छा नहीं लगा फिर भी वो मेरी ओर गौर से देखने लगी और कहा …तुम्ही बताओ, मैंने क्या ज़बाब दिया होगा ?
तुम्हारे अंदर की बात मुझे क्या पता …मैंने कहा |
शायद तुम्हे उनकी बात ठीक लगी हो | और तुम इसे स्वीकार कर लो |
अचानक गुस्से में उसका एक जोर का तमाचा मेरे गाल पर लगा और वो वहाँ से बिना खाए उठ कर चली गई |
मुझे महसूस हुआ कि उसका दिल इस तरह नहीं दुखाना चाहिए था |
तभी चपरासी रामू काका आये और बोले..आप को मैनेजर साहेब ने बुलाया है |
उसका नाम सुनते ही मैं गुस्से से भर गया …तभी मेरी मनःस्थिति को देखते हुए रामू काका को लगा
कि मैं मैनेजर साहेब से मारपीट ना कर लूँ | इसलिए समझाने के ख्याल से बोला …….तुम्हे सोच
विचार कर कोई कदम उठाना चाहिए | वो मैनेजर साहेब मालिक का दूर का रिशेदार है |
सारी बातें रामू काका को पता थी शायद , इतने दिनों से हमलोगों साथ जो काम कर रहे थे |
मुझे भी लगा कि रामू काका ठीक ही कह रहे है और मैं अपने को सहज कर मैनेजर के चैम्बर में चला गया |
उन्होंने मुझे घृणा भरी नज़रों से देखा और मेरे लाये हुए फाइल को मेरे सामने फेंकते हुए कहा …इसे सेठ जी के पास पहुँचा दो |
मैं फाइल लेकर चुप चाप उनके चैम्बर से निकल गया और सेठ जी के हवाले कर दिया | और फिर अपने दुसरे कामों में लग गया |
शाम हो चली थी और काम समाप्त कर घर जाने का वक़्त हो चला था, लेकिन सुमन कही दिख नहीं रही थी |
मैं रामू काका से पूछ बैठा ..सुमन मैडम कहाँ है ?
रामू काका बोले ..वो तो सेठ जी के साथ कही बाहर गयी है |

सुन कर मेरा मन दुखी हो गया ..कल से तो भेट भी नहीं हो पायेगी, क्योंकि दुसरे ऑफिस जो जाना होगा |
मैं यूँ ही सुमन का इंतज़ार करता रहा और सोच रहा था कि अगर अभी सुमन मिल जाती तो अपने किये की माफ़ी मांग कर दिल का बोझ हल्का कर लेता |
वैसे भी मेरी छोटी छोटी गलतियों को सुमन ने कितनी ही बार माफ़ किया है, उसका दिल जो बहुत बड़ा है |
लेकिन तभी दरवान मेन – गेट बंद करने आ गया तो मुझे अब घर जाना ही उचित लगा |
लोग ठीक ही कहते है कि वही होता है जो खुदा चाहता है | हमारे चाहने से क्या होगा |
घर पहुँचते ही हरिया पूंछ बैठा ….क्या बात है रघु भैया, मुँह क्यों उदास है |
मैं मैडम वाली घटना बता दी तो वो बोला..इतना टेंशन मत लीजिये, प्यार में यह सब तो होते ही रहता है |
आप देखना ..मैडम ज़रूर आप से मिलने आएगी…. वह बोला और खाना लाने चला गया |
हमलोग सब साथ खाना खाने बैठ तो गए लेकिन मुझ से खाया नहीं गया और पानी पीकर चुप चाप
सोने चला गया | मैं बस यही सोचता रहा ..,मैं जाहिल, अनपढ़ गवार, सुमन को हमेशा दुःख ही देता
रहा | फिर भी वो बेचारी मेरे से ही चिपकी रहती है | उसके दिल में मेरे लिए बहुत स्नेह है | इन्ही बांतो
में उलझा कब नींद आयी पता ही नहीं चला |
सुबह लगा जैसे कोई कोमल हाथ मुझे जगा रही हो | कमरे में हल्का अँधेरा था, मैं समझा कोई सपना
देख रहा हूँ और फिर सोने की कोशिश करने लगा |
इस बार सचमुच कोई मुझे पकड़ कर जगा रहा था | मैं आँख खोला तो चौक गया ..सुमन मुझे जोड़ से
पकड़ रखी थी और उसके आँसू के गरम गरम बूंदों को मैं. अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था | मेरी
नींद पूरी तरह गायब हो चुकी थी और मैं हडबडा कर उठ बैठा |
उसकी सिसकियों से मेरे भी आँख गिले हो गये और हमलोग एक दसरे को थामे कुछ देर यूँ ही आँसू
बहाते रहे ताकि मन में बैठे शक का मैल आँसुओं से धुल जाये |
अब दिल पर पड़ा बोझ हट चूका था और मन हल्का लग रहा था |
मैंने बाहर देखा तो सूरज अपनी लालिमा लिए उग रहा था …जैसे अब हमारे जीवन में भी उजाला होने वाला हो ..
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