
वफ़ा की तलाश… करते रहे हम
शहर दर शहर.. भटकते रहे हम
नहीं मिला दिल से चाहने वाला
बेवफाई में अकेले.. मरते रहे हम |
वफा की तलाश
मैं हॉस्पिटल के बेड पर आँखे बंद किये मन ही मन सोच रहा था कि अगर सुमन समय पर घटनास्थल पर नहीं पहुँचती और तुरंत हॉस्पिटल नहीं लाती तो शायद मैं बच भी नहीं पाता | इसे भगवान् की कृपा कहें या संयोग मात्र कि सुमन उस समय मुझे मिल गई |
डॉक्टर साहब भी कह रहे थे कि सुमन दो दिनों तक मेरे कारण काफी परेशान रही और बहुत सेवा की | मुझे होश आने के बाद ही अपनी ड्यूटी ज्वाइन की थी | यह मेरे प्रति उसका अपनापन है जो उसने अपने दम पर सारा इंतज़ाम किया और मुझे मौत के मुँह से निकाल लाई |
लेकिन मेरे दिमाग में अब भी एक प्रश्न बार बार आ रहा था कि सुमन अपना खोली क्यों छोड़ दी और दुसरे जगह क्यों रहने चली गई |
मन में यह शंका घर कर गयी कि शायद उसने शादी तो नहीं कर ली है | वैसे वो थी भी ख़ूबसूरत , कोई भी उससे शादी के लिए तैयार हो सकता था |
लेकिन यह सब बात तो अभी पूछ भी नहीं सकता था | उसके शादी शुदा होने के ख्याल से ही मेरा दिल बैठने लगता था | शायद मुझे उससे प्यार हो गया है |
मैं आँखे मूंदे इन्ही ख्यालों में खोया था | तभी डॉक्टर साहब आये और मुस्कुराते हुए बोले …अब कैसा महसूस कर रहे है ?
अब मैं ठीक महसूस कर रहा हूँ डॉक्टर साहब …मैंने कहा |
फिर वो मेरी जांच करने लगे | और बेड पर रखे फाइल में कुछ नोट किया और चले गए |
उनके जाते ही सुमन भी तेज कदमो से आती दिखाई दी |
मैंने पूछा … आज, इतनी जल्दी कैसे आ गई ?
मैं आज छुट्टी लेकर जल्दी आई हूँ, क्योंकि डॉक्टर साहब ने बुलाया था …..कहते हुई सामने कुर्सी खीच कर बैठ गई |
अब तुम्हारी तबियत कैसी है …सुमन ने पूछा |

डॉक्टर साहब आये थे और चेक कर के चले गए …मैंने कहा |
सुमन मेरी ओर देखते हुई पूछ बैठी…डॉक्टर ने क्या कहा ?
मुझे तो बस इतना कहा कि हालत में काफी सुधार है …मैं हँसते हुए जबाब दिया |
ठीक है, मैं उनसे मिल कर आती हूँ ….बोल कर डॉक्टर से मिलने चली गई |
सुमन के जाते ही हरिया भी आ गया और पूछने लगा …अब कैसी तबियत है रघु भैया ?
अब बेहतर है … मैंने जबाब दिया |
सच कहूँ भैया तो मैडम जी नहीं होती तो तुम्हारा बचना मुश्किल था | वो बेचारी दो दिन बिना आराम किए तुम्हारी सेवा करती रही | सचमुच सुमन मैडम बहुत अच्छी और समझदार है |
और बताओ तुम लोग कैसे हो ? ….मैंने हरिया को देखते हुए पूछा |
हरिया खुश होते हुए बोल पड़ा …. जानते है रघु भैया, मुझे भी नौकरी मिल गई है | इसीलिए कल आप के पास नहीं आ सका था |
विकास को भी फैक्ट्री से आने में काफी लेट हो जाता है | कल रविवार है, इसीलिए कल हमलोग सब हाज़िर रहेंगे यहाँ |
चेहरा देख के लग रहा है कि आप की तबियत में काफी सुधार है | सब भगवान् की कृपा है ..हरिया खुश दिख रहा था |
हमलोग बात कर ही रहे थे कि सुमन भी आ गई | उसके हाथ में एक थर्मस में चाय था | हमलोग चाय पिने लगे तभी मैंने पूछ लिया …क्या कहा डॉक्टर ने ?
सुमन बोली ….कल तुम्हारा हॉस्पिटल से पुरे सात दिनों के बाद छुट्टी हो रही है | अब तुम खतरे से बाहर हो लेकिन अभी कुछ दिन कमजोरी रहेगी | खाना पीना ठीक करना पड़ेगा |
हरिया बोल पड़ा … यह तो बहुत अच्छी खबर है | अब हम लोग साथ रहेंगे उसी विकास की खोली में |
लेकिन इतनी छोटी खोली में चार लोग कैसे रह पाओगे | काफी तकलीफ होगी ….सुमन ने चिंतित होकर कहा |
लेकिन एक उपाय है, मेरी खोली अभी भी मेरे कब्ज़े में है | छह महिना का एडवांस किराया दिया हुआ है और अभी दो महिना ही हुआ है |
इसलिए तुम लोग उसी में शिफ्ट कर जाओ | वहाँ बिस्तर और खाट भी है | और तुमलोग आस – पास भी रह पाओगे … ..सुमन ने उपाए सुझाए |

हरिया एकदम से उछल पड़ा और कहा…. इससे अच्छा और कुछ हो ही नहीं सकता और कभी कभी छुट्टियों में मैडम के हाथ का खाना भी खा सकेंगे | सुन कर तीनो एक साथ हंस पड़े |
रघु सुमन की ओर देखा और कहा…बहुत बहुत धन्यवाद सुमन …….अगर तुन नहीं होती, तो मेरा ना जाने क्या होता | तुमको भी मेरे कारण काफी कष्ट उठाना पड़ा |.
मुझे देख कर वो खुश होते हुए बोली … अब चिंता की कोई बात नहीं है | सब भगवान् की कृपा है और हाँ .. दोस्तों में एहसान और धन्यवाद शब्द कहाँ से आ गए |
अच्छा छोड़ो ..मेरी तरफ देखते हुए सुमन हँस कर बोली ….., घर का हाल समाचार नहीं बताओगे | तुम्हारी रामवती कैसी है ?..
अचानक इस तरह की बात सुन कर वह चौक कर सुमन की ओर देखा और पूछा… तुम रामवती के बारे में कैसे जानती ही ?
मुझे सब पता है और राजू के बारे में भी जानती हूँ ,…. बोल कर सुमन हंसने लगी | ..सुना है वो बड़ा नटखट है |
मैं गाँव का और रामवती का क्या हाल बताऊँ, सुमन |
राजू को बार बार बुखार आ रहा था और मुझे वहाँ काम नहीं मिल रहा था | रामवती काफी तकलीफ में है और मुझे यहाँ भी अभी तक काम नहीं मिल पाया है | मुझे बहुत चिंता हो रही है |
अच्छा ठीक है अब तुम्हे ज्यादा चिंता करने की कोई ज़रुरत नहीं है …सुमन उसकी ओर प्यार भरी नजरो से देखी और कहा…. मैं परसों दस हज़ार रूपये रामवती को भेज दी हूँ | अब तक मिल गया होगा |
सुमन की बात सुन कर आश्चर्य से मेरा मुँह खुला का खुला रह गया |
मैं उत्सुकता से पूछ लिया… तुम्हे वहाँ का पता कैसे मिला ?
तुम्हारा वो विकास है ना, वही मेरा खबरी है.. .सुमन हँसते हुए बोली |
अच्छा ,अब मैं समझा कि इतना सब कुछ तुम्हे कैसे पता है …मैं कृतज्ञता से उसकी ओर देखा |
इसीलिए कहती हूँ कि दोस्तों के बीच कुछ ना छुपाओ |

लेकिन सुमन, मेरे अचानक जाने के बाद तुम अपने आप को कैसे संभल पायी .. .मैंने उत्सुकतावश पूछा लिया |
सुमन एक ठंडी साँस ली और भावुक होकर बताने लगी …. आज पुरे दो महिना हुए मेरे पिता जी को गुजरे हुए | तुम को तो पता है कि अभी कुछ दिन पहले चाइना वाली बीमारी से बच कर घर आ गए थे |
धारावी में तो इस बीमारी का सबसे ज्यादा खतरा था | पिता जी शरीर से कमजोर थे और बूढ़े भी | इसलिए उन पर खतरा तो बना ही रहता था | मैंने पिता जी की खूब सेवा की थी और उन्हें हर हाल में इससे बचाने की कोशिश की थी |
लेकिन अचानक एक दिन बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा तो तुरंत एम्बुलेंस से पास के हॉस्पिटल ले गयी | फल वाले नज़ीर भाई बहुत मदद की थी | लेकिन कोरोना के कारण वहाँ डॉक्टर ने कहा कि कोई बेड खाली नहीं है |
इसी तरह मैं और नज़ीर भाई, पिता जी को लेकर एक हॉस्पिटल से दुसरे और दुसरे से तीसरे का चक्कर काटते रहे | बहुत मुश्किल से एक हॉस्पिटल में डॉक्टर मिला भी, लेकिन ऊसने चेक करके बताया कि अब पिता जी नहीं रहे…. कहते कहते वो रोने लगी |
मैं उसके सर पर हाथ रख कर संतावना देता रहा |
फिर उसने आगे बताया की मैंने घर खबर भेजा और क्रिया कर्म करने के लिए गाँव से भाई को बुलाया | लेकिन गाड़ी ना चलने की वजह से और महामारी के डर से यहाँ कोई नहीं आया और पिता जी का क्रिया – कर्म बेटा के रहते, हमें ही करना पड़ा था |
यह तो भगवान् की कृपा हुई कि मैं पढ़ी लिखी थी | ईट भट्टा वाली नौकरी जाने के बाद .. ,एक दिन पेपर में विज्ञापन देखी जिसमे फैक्ट्री में एक जॉब का ऑफर था | मैं इंटरव्यू के लिए वहाँ पहुँच गई |
सेठ जी को गारमेंट फैक्ट्री में एक लेडीज स्टाफ की ज़रुरत थी | वे हमारी निजी ज़िन्दगी की कहानी सुन कर काफी प्रभावित हुए कि अकेला मैं जीवन में संघर्ष कर आगे बढ़ रही हूँ |
उन्होंने फिर पूछा कि ..स्कूटी चलाना जानती हूँ या नहीं |
मैंने कहा …. मुझे नहीं आती |
तो उन्होंने कहा कि .. तब तो धारावी से हमारी फैक्ट्री काफी दूर पड़ेगा और ऑटो से आना जाना संभव नहीं होगा | उन्होंने मेरी बहुत मदद की और अपने परिचय से यहाँ रहने के लिए एक छोटा फ्लैट भाड़े पर दिलवा दिया था, जिससे फैक्ट्री बिलकुल नजदीक हो गई और मुझे आने जाने में सुविधा भी |
मैं पूरी मेहनत और लगन से काम करने लगी और मुझे मेरे अच्छे कामों की तारीफ करते हुए कुछ ही दिनों में ही प्रमोशन दे दिया और मुझे सुपरवाइजर बना दिया |
इस विकट परिस्थिति में बाबु जी के बीमा के पैसे भी मुझे मिले थे और वो पैसे मेरे लिए बहुत बड़ा सहारा बना | यह तो बाबु जी की ही आशीर्वाद है कि ऐसी परिस्थिति में हम अकेले ही जीवन की गाड़ी को खीच पा रहे है … |(क्रमशः )

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