
एक प्रवासी का दर्द
मैं धारावी से मुंबई स्टेशन पर पहुँचा तो गाँव के कुछ और साथी पहले से ही इंतज़ार कर रहे थे | हम सभी मुँह पर मास्क लगाए थे और हिदायत दी गई नियमो का पालन कर रहे थे |
क्योकि हमें पता था कि अगर “चाइना वाली बीमारी” की चपेट में आये तो अपने लाश का भी पता नहीं चलेगा |
सभी साथी लोग सरकार की ओर से घर जाने की व्यवस्था होने पर आज बहुत खुश दिखाई पड़ रहे थे | और हो भी क्यों नहीं..बाल बच्चे और खास कर घरवाली से इतने दिनों बाद जो मिलना होगा |
ट्रेन में बैठ कर खूब धमाल मचा रहे थे | आपस में बिरहा के गीत गा रहे थे और थाली को पिट कर संगीत का मजा ले रहे थे | यह तो स्पेशल ट्रेन खास कर मजदूरों को बिहार ले जाने के लिए मुंबई से जा रही थी |
हमलोग तो कितने भाग्यशाली है इस मामले में, वर्ना कितने ही मजदूर भाई जो पैदल घर तक जाने की हिम्मत कर निकल पड़े थे, रास्ते में ही जान गवां बैठे, चाहे ट्रेन से कट कर या फिर एक्सीडेंट के कारण | ज़िन्दगी भी कैसे – कैसे रंग दिखाती है…. बगल मैं बैठा विकास बकर – बकर किये जा रहा था |
लेकिन मुझे ज़रा सी भी ख़ुशी नहीं हो रही थी घर जाने की | इसका कारण सिर्फ सुमन थी | उसे ऐसी हालत में छोड़ कर नहीं आना चाहिए था | सुमन खुद को संभालेगी या अपने बाप को ?
अगर घर ना जाता तो ये गाँव वाले मेरी घरवाली को चुगली कर देते और मेरा जीना हराम हो जाता | वैसे भी जीना तो हराम होने ही वाला है |
गाँव में ना तो काम मिलेगा और ना ही भोजन | और तो और, वहाँ भीख भी नहीं मांग सकते है, मुम्बईया वाले जो ठहरे | हे भगवान्, तू ही मेरी रक्षा करना | यही सब सोचता ना जाने कब आँख लग गई |
अचानक हल्ला – गुल्ला सुनकर मेरी नींद खुल गई | कोई कह रहा था पटना आने वाला है ,अपना अपना सामान को संभालो |

स्टेशन से बाहर निकल कर सबसे पहले महावीर मंदिर की ओर मुँह करके बजरंगबली को प्रणाम किया | फिर देखा तो सामने सरकारी बस खड़ी थी | पता चला कि यह हमलोगों को लेकर वेटनरी कॉलेज में बने क्वारंटाइन सेंटर में ले जाएगी और वहाँ दो सप्ताह रखा जायेगा |
अब हम अपने घर से मात्र ६० किलोमीटर ही दूर है, फिर भी किसी से मिलने की इज़ाज़त नहीं है |
चलो, देखते देखते दो सप्ताह गुजर ही जायेंगे | ऐसा सोच कर मन को तसल्ली दिया | हमलोग करीब ९० लोग इस सेंटर मे थे और सभी का बारी बारी से करोना टेस्ट किया गया था |
भगवान् का शुक्र है कि हमलोग अब तक इस बीमारी से बच रहे है, आगे भगवान् की मर्जी | एक – एक दिन बडी मुश्किल से गुजर रहे थे | हालाँकि, यहाँ तो दोनों टाइम फ्री का खाना मिल रहा था , लेकिन यहाँ से निकलने के बाद क्या होगा ?
क्या मेरे गाँव में काम मिल सकता है ? और नहीं तो परिवार को कहाँ से खिला पाएंगे | यही सब चिंता के बीच दो सप्ताह गुज़र गए |
सुबह उठ कर दातुन कर ही रहा था कि विकास मेरे पास आया और खुश होते हुए बोला …रघु भैया , देखते देखते दो सप्ताह कट ही गया और हमलोग बीमारी से सुरक्षित है | इसीलिए तो यहाँ आने से पहले बजरंगबली को प्रणाम किये थे,,कि वो हमलोगों का ख्याल रखेंगे | आज तो हमलोग शाम तक अपने परिवार का मुँह देख सकेंगे |
शादी के एक साल बाद ही तो मुंबई जाना पड़ा था | हमारा सेठ धमकी दे के बुला लिया था | अब तो जाने की कोनो जल्दी नहीं है | रामवती तो हमको देखते ही ख़ुशी के मारे पागल हो जाएगी |
रघु भी मन ही मन सोच रहा था …..भगवान् का शुक्र है कि कोरनटाइन सेंटर से सही सलामत घर तक तो पहुँच गए | लेकिन घर आते ही पता चला कि राजू बेटा को दो दिन से बुखार लग रह है |
पत्नी कहने लगी कि जो सोने के चूड़ी बनवा कर दिए थे , उसी को बेच कर राजू का इलाज करवा रही हूँ और किसी तरह दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम कर पा रही हूँ | एक ही बेटा है, राजू तीन साल का |
अब तुम आ गए हो तो सब ठीक हो जायेगा | रामवती को बस इतना ही कह पाया कि पॉकेट में एक ”अधेला” भी नहीं बचा है और अभी भी ठेकेदार से पांच हज़ार रूपये लेने है | लेकिन कब, पता नहीं, या फिर देगा भी या नहीं | ईट भट्टा का कम तो बंद ही हो गया है |
सुबह सरपंच के पास जाता हूँ | मनरेगा का काम तो चल ही रहा होगा |
सरपंच साहब कुछ परेशान सा दिख रहे थे | पूछने पर पता चला कि बहुत सारे मजदूर का पेमेंट नहीं हो पा रहा क्योंकि नया फण्ड सरकारी विभाग से नहीं आ रहा है |
मैं अपने बारे में बात की तो कहने लगे अभी सप्ताह दस दिन ठहर जाओ तो फिर तुम्हे काम पर लगाता हूँ | और इसी तरह एक सप्ताह गुजर गए लेकिन काम का कुछ पता नहीं चला |
तभी …रामवती बोल पड़ी | कब तक घर में बैठ रहोगे ..कोई दूसरा काम देखना होगा |
हाँ, हाजीपुर में एक मुर्गी फार्म है, जहाँ मेरा भाई काम करता है, तुम वहीँ चले जाओ | शायद वहाँ कुछ काम मिल जाये |ठीक है, कल जाऊंगा ..उसने कहा /
सुबह तडके उठ गया , चिंता के मारे नींद कहा आती है | गमछा ले कर नहाने चला गया और फिर रात का बचा रोटी ही खा कर हाजीपुर के लिए निकल पड़ा | साला से मिला तो उसने अपने मालिक से मिलाया . |
मालिक तो बात चित से अच्छा ही दिख रहा था, लेकिन काम मांगने पर बोला …कोरोना के कारण हमारा काम तो अभी मंदा चल रहा है, किसी तरह इस बिज़नस को जिंदा रखे है | अब इसका तुम जीजा हो तो काम पर तुमको अडजस्ट कर लेंगे लेकिन हम १०० रुपया रोज से ज्यादा नहीं दे पाएंगे |
साला तुरंत मुझसे बोला…. जब तक काम दूसरा नहीं मिलता तब तक यहीं काम कीजिये |
आज कल काम कम है और काम करने वाले मजदूर ज्यादा है …तो इसी रेट पर काम करना होगा | मैं मन ही मन सोच रहा था .. ८०० रुपया रोज़ कमाता था मुंबई में | अपना खर्चा के अलावा दस हज़ार रुपया महिना घर भेज देता था और रामवती इतना में ही मस्त रहती थी |
चाइना वाली बीमारी ने सबसे ज्यादा मुझे ही नुक्सान किया है | पता नहीं कितने दिन ऐसे ही काटने पड़ेंगे | वह मन ही मन अपने भाग्य को कोसता रहा |

सुबह सुबह, जब काम के लिए घर से निकल रहा था तो रास्ते में हरिया मिल गया था |
अरे हरिया, इधर कहाँ जा रहे है ?….मैंने पूछा |
अरे रघु भैया, हम तो तुम्हारे पास ही आ रहे थे |
पता है ?… कल से लॉकडाउन खुल रहा है और मुंबई में मजदूर लोगों का बहुत डिमांड है, इसलिए हम भी इस बार वहाँ जाना चाहते है |
आप वहाँ किसी का परिचय दे दीजिये तो काम मिलने और रहने में सुविधा हो जाएगी, यहाँ तो कोई काम का जुगाड़ ही नहीं बैठ रहा है, घर कैसे चलेगा ?
अभी कुछ दिन रुक जाओ , जब स्थिति सामान्य हो जाये तब ही जाने का प्लान बनाना / हम अपने लोगों का पता दे देंगे, वहाँ तुमको मदद मिल जायेगा |
अच्छा ठीक है, रघु भैया |
आप भी चलिए ना वहाँ | आप का वहाँ जमा जमाया काम और लोग है | चार पैसे हाथ में आयेगे तो परिवार को बड़ा सहारा रहेगा और बीमारी का क्या है, कही भी उसके चपेट में आ सकते है |
यह तो हर जगह फ़ैल रहा है | बस भगवान् भरोसे इसी तरह चलता रहेगा, क्योकि सुने है इसका कोनो दवा भी नहीं बना है….हरिया लगभग विनती भरे लहजे में बोले जा रहा था |
ठीक है मैं भी अपनी पत्नी रामवती से बात करता हूँ और सहमती हुआ तो हम भी चलेंगे तुम्हारे साथ |
इसी तरह से तीन महिना कट गए औए दिन ब दिन पैसो की तंगी बढती जा रही थी |
इधर बार बार बच्चे की बीमारी से परेशानी और घर की ऐसी हालत देखी नहीं जा रही है |
रामवती का साड़ी तो इतने जगह से फट चूका है कि वो अर्ध नग्न ही नज़र आती है | राजू भी खाने बिना कितना कमज़ोर हो गया है |
सोचता हूँ कि मैं फिर से मुंबई चला जाऊं ..उसने रामवती का मन टटोला | अब तो स्थिति लगभग सामान्य हो चली है | तीन महिना से घर में बैठ कर और १०० रूपये रोज की आमदनी से गुज़ारा भी नहीं हो पा रहा है |
यह सच है कि पेट की आग के सामने दुसरे सभी आग ठंडा पड़ जाता है | रामवती दिल पर पत्थर रख कर रघु की बातों पर सहमती जताई…..(क्रमशः )

देह से परे था वो सुख.. जो मेरी रूह को दे गया
वो मेरा ना होकर भी… मुझ में ही रह गया …
BE HAPPY… BE ACTIVE … BE FOCUSED ….. BE ALIVE,,
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कोरोना त्रासदी पर बहुत मार्मिक चित्रण सर जी ।बहुत अच्छा।
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बहुत बहुत धन्यवाद सर जी |
पूरी कहानी पढे, मुझे खुशी होगी |
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हकीकत को दर्शाती कहानी ❤ बेहतरीन 💚
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बहुत बहुत धन्यवाद , प्रिय |
पूरी कहानी पढ़ें , मुझे खुशी होगी |
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