
धारावी मुंबई शहर का जाना माना और एशिया का सबसे बड़ा स्लम बस्ती, जिसमे करीब १० लाख लोग चाल और खोली में रहते है | रघु बिस्तर पर लेटा सोच रहा था कि आज की रात पता नहीं कैसे कटेगी ?..एक तरफ करोना के कहर से परेशानी, तो दूसरी तरफ पैसे की तंगी हो चुके है ..जिंदा कैसे रहूँ ?..
ये “चाइना वाली बीमारी” जब शुरू में यहाँ फैला था तो मुझे ज्यादा चिंता नहीं हुई थी और उन मजदूर भाइयों पर हँसता था जो ईंट भट्टा साईट पर मुंबई से वापस घर जाने की बातें करते थे | अगर यहाँ से जाऊंगा तो वहाँ खाऊंगा क्या ? और यहाँ से बिना साधन के गाँव जाने की कोशिश करूँगा तो पता नहीं घर पहुँच पाउँगा या नहीं |
अपना ठेकेदार राम लाल “हरामजादा: कह रहा था कि पेमेंट में देरी होगी क्योंकि बैंक का कुछ लफड़ा हो गया है |
लेकिन मुझे सब समझ में आ रहा है ..अभी ईट भट्टा का काम तो बंद ही रहेगा और हमलोग को बैठा कर तो खिलायागा नहीं |
वैसे भी धारावी कोरोना के कारण काफी बदनाम हो गया है, यहाँ के लोगों को तो काम भी नहीं मिल सकता और पुलिस भी इस एरिया से बाहर जाने नहीं देती | कहती है पूरा इलाका सील हो गया है |
घर से रामवती का बार बार फ़ोन आ रहा है | कह रही थी, तुम जल्दी वापस आ जाओ | मेरा छोटा सा बेटा तो रो रो कर बोल रहा था ..मैं कोरोना से मुंबई में मर जाऊंगा | अब बिहार यहाँ से नजदीक है क्या, जो पैदल ही मार्च कर जाऊँ ?
और मैं जाने की सोच कैसे सकता हूँ | अगर मैं गया तो यहाँ सुमन का क्या होगा ? उस बेचारी का तो यहाँ और कोई नहीं है /
कुछ दिनों पहले ही दोस्ती हुई थी, उससे | हालाँकि उसका ठेकेदार दूसरा है लेकिन हम दोनों का साईट एक ही है. मैं उस दिन को नहीं भूल सकता.. जब सुमन को औरतों वाली मासिक तकलीफ के कारण उसकी तबियत ठीक नहीं लग रही थी | मिटटी को सांचे में डालते हुए उसकी साँसे तेज हो रही थी, इसलिए वही पास में रखे पुआल पर लेट कर आराम करने लगी .और उसकी आँख लग गई |
मैंने देखा, इतने में घूमता हुआ ठेकेदार उधर आया और उसे सोता देख कर अपने जूते की ठोकर से लात मारी और जब तुरंत सुमन नहीं उठ सकी तो ठेकेदार ने उसके बाल पकड़ कर खीचते हुए अपने चेहरे को उसके मुखड़े के पास ले जा कर गुस्से में कहने लगा ….क्या तुझे यहाँ आराम फरमाने के लिए पैसे देता हूँ, सोने का इतना ही शौक है तो मेरी खोली में आ जाना |
इतना सुनना था कि मुझे बहुत जोर का गुस्सा आ गया | लोग शायद ठीक ही कहते हैं, मैं बचपन से गुस्सैल स्वभाव का हूँ और अब तो मेरे हृष्ट – पुष्ट बदन को देख कर लोग मुझे “मतवाला सांड” कहने लगे है |
उस ठेकेदार को मैं तो पहले से जानता हूँ ..,एक नंबर का अय्याश है और उसकी गन्दी नज़र भी सुमन पर रहती है, …मैं तो बस गुस्से में उसके कॉलर पकड़ कर दो घूंसा मुँह पर दे मारा |
फिर क्या था …चेहरे पर काला निशान बन चूका था | उसे इस तरह की आक्रमण की उम्मीद नहीं थी | तब तक सभी मजदूर दौड़ कर आ गए और सिक्यूरिटी गार्ड उसको सहारा देकर ऑफिस में ले गया |
इस लफड़े के कारण मैं गुस्से में गेट की तरफ चल दिया ..थोड़ी देर में देखा तो सुमन भी तेज़ कदमो से भागते हुए हमारे पास पहुँची और मुझे देख कर कहा ..तुम नहीं होते तो आज भी ठेकेदार हमारे साथ गन्दी हरकत करता |
मुझे उस पर दया आ गई और जोश में बोल पड़ा ..रघु के होते हुए किसी से डरने की ज़रुरत नहीं है | वैसे उसकी सुन्दरता और जवानी पर सभी लोग मरते थे, मुझे भी वो अच्छी लगती थी |

थी तो वो विधवा, लेकिन अभी उम्र सिर्फ २० – २२ साल की थी और जवानी से ओत प्रोत | आज पहली बार वो मुझे वैसी नज़र से देखी थी और मुस्काई भी थी | वो भी धारावी में ही पास की खोली में अपने बाप के साथ रहती थी |
धीरे धीरे वो मेरे करीब आने लगी थी, कभी सब्जी देने के बहाने, तो कभी सत्तू वाली रोटी खिलाने के बहाने | हमारी प्रेम के किस्से लोग दबी जुवान से करने भी लगे थे | लेकिन मेरे गुस्सैल स्वभाव के कारण डर से कोई कुछ नहीं बोलता था |
हमलोग तो लोगों से छुप कर एक दिन सिनेमा भी देखने गए थे और शाम के वक़्त चौपाटी बीच पर बैठ कर घंटो बातें करते रहे थे | वहाँ पर लपटते – चिपटते प्रेमी जोड़ो को देख कर वो कभी कभी शरमा जाती थी | अब तो उसको देखे बिना चैन ही नहीं मिलता है |
लेकिन कल ही उसके बूढ़े बाप की अचानक तबियत बिगड़ गई और करोना के शक में उसे पुलिस वाले उठा ले गए और हम लोगों से मिलने भी नहीं दिए | उसे पता नहीं, कहाँ छुपा कर रखा है |
ऐसी स्थिति में उसे क्या छोड़ कर जाना ठीक होगा ? अगर सुमन का ख्याल ना होता तो मैं कब का और मजदूर भाइयों के साथ गाँव निकल लिया होता |
इधर रामवती रोज़ ही फ़ोन करके परेशान किये जा रही थी कि अगर मैं यह इलाका नहीं छोड़ा तो कैरोना से मेरी यहाँ मौत हो जाएगी | मेरे मन में भी ऐसा डर बैठ गया है कि यहाँ तो सरकारी अस्पताल में इतने लोगों के लिए पर्याप्त इंतज़ाम भी नहीं है | और मुझ जैसे मजदूर को रोड पर ही मरता हुआ छोड़ देंगे | मरने के बाद, सुमन अगर मेरी लाश यह कह कर मांगेगी कि “मेरा मरद” है तो उसे भी नहीं सौपेंगे उससे तरह तरह के प्रूफ और डॉक्यूमेंट मांगेगे |
सोचते सोचते एक सप्ताह बीत गया और घर वाले फ़ोन कर के काफी परेशान कर रहे है | कुछ समझ नहीं आता कि अपनी जान बचाऊँ या सुमन की | इन्ही बातों में उलझा था कि रामदीन दौड़ता हुआ मेरी खोली में आया और कहा …रघु भाई , एक गुड न्यूज़ है | मैं आश्चर्य से उसको देखते हुए पूछा …क्या है भाई ?
अभी अभी खबर मिली है कि एक स्पेशल ट्रेन यहाँ से बिहार के मजदूरों के लिए जा रही है | इतना सुनना था कि सभी मेरे यार वापस गाँव चलने की जिद करने लगे | लेकिन गाँव जाने की बात सुमन को कैसे बताऊँ | मेरे पीछे उसकी रक्षा कौन करेगा ?
मुझे पता है, ठेकेदार से लेकर भट्टा मालिक तक की सुमन पर बुरी नज़र है | मेरे साथ रहने से वो अपने को सुरक्षित और पूर्ण समझती थी |
तभी नज़ीर भाई “फल वाला” आता दिखा | उसके हाथ में सुंदर सुंदर रसीले आम थे, वो हमें पकडाता हुआ बोला.. अब हम से यह फल कौन खरीदेगा भाई ?, इससे अच्छा है कि इसे अपने दोस्तों में इसे बाँट दूँ. |

शाम का वक़्त और सुमन रोज़ की तरह मेरी खोली में आयी ..और वो खुश दिख रही थी क्योंकि उसके बूढ़े बाप को पुलिस वापिस छोड़ गई थी ..शायद “चाइना वाली” बीमारी उसे नहीं हुई थी |
वो आते ही मेरे साथ बिस्तर पर बैठ गई | मैं वह मीठे रसीले आम उसे खाने को दिए | रसीले आम को देखते ही वो खुश हो गई और अपने मुहँ में दबा कर चूसने लगी | तभी मैं शांत भाव से बोला … आज मैं वापस बिहार जा रहा हूँ, अपने मजदूर भाइयों के साथ |
सुनकर वो अवाक् रह गई वो | उसके मुहँ से आम के रस बाहर गिरने लगे और उसके आँखों से आँसू भी | रघु को ऐसा महसूस हुआ जैसे सुमन के आँसू उसके दिल को भिगो रहे हो |… .(क्रमशः )
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सिलसिला ये चाहत का दोनों तरफ से था …
वो मेरी जान चाहती थी और मैं जान से ज्यादा उसे
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