
कंपनी की गाडी एयरपोर्ट जाने को तैयार खड़ी थी और सभी लोग अपनी नयी नौकरी पाकर खुश थे और गाड़ी में बैठे गप्पे मारते एयरपोर्ट पहुँचने का इंतज़ार कर रहे थे |
थोड़े ही देर में गाड़ी अपनी तेज़ गति से सड़क पर दौड़ रही थी और उस गाड़ी में बैठा संदीप के दिल की धड़कन किसी अंजान डर से बढ़ रही थी |
संदीप प्लेन से पहली बार सफ़र कर रहा था और जब प्लेन दूर आकाश में जायेगा तो डर लगेगा ही |
फिर उसे घर की याद आने लगी और वह सोचने लगा कि घर से और खास कर राधिका से दूर इतने दिनों तक कैसे रह पाउँगा |
संदीप अपनी आँखे बंद कर अपने ख्यालो में खोया था तभी उसके दोस्त ने उसे झकझोरते हुए उठाया और कहा …कहाँ खो गए दोस्त, अभी तो मंजिल दूर है |
ठीक कहते हो प्यारे, मेरी तो मंजिल सचमुच बहुत दूर है …संदीप आंहे भरते हुए कहा | और खिड़की के बाहर देखा तो गाड़ी एयरपोर्ट पर पहुँच चुकी थी |
सभी लोग अपने सामान लेकर गाड़ी से उतर रहे थे, तभी कंपनी का एक स्टाफ गाड़ी के समीप आया और सभी के हाथों में उसका एयर टिकट देते हुए बताया कि मुंबई एयरपोर्ट से सीधा आप सब लोगों को कंपनी के गेस्ट हाउस में ले जाया जायेगा |
सभी लोग सिक्यूरिटी को अपना टिकट दिखा कर गेट के अन्दर दाखिल हुए तभी वहाँ के स्टाफ ने उन लोगों से निवेदन किया कि जल्दी से बोर्डिंग पास इशु करवा लें | प्लेन के जाने का समय हो गया है |

हमलोग अपने लगेज का सिक्यूरिटी चेक करा कर बोर्डिंग पास हेतु लाइन में खड़े हो गए |
यहाँ तो सभी कुछ व्यवस्थित तरीके से हो रहा था,| कही भी शोर शराबा और धक्का मुक्की नहीं था, जैसा कि रेलवे स्टेशन में देखने को मिलता है.|..
संदीप मन ही मन सोचता हुआ उत्सुकता से सभी कुछ देख रहा था | आज तो संदीप का यह पहला अनुभव जो था |
तभी काउंटर पर बोर्डिंग पास देने वाली स्मार्ट सी लड़की अपनी सुरीली आवाज़ में उसका स्वागत किया और पूछा ..मिस्टर संदीप, आप विंडो वाली सीट लेना पसंद करेंगे ?
जी, मुझे विंडो वाली सीट दीजिये ..संदीप ने सहमती जताई |
थोड़ी देर के बाद सिक्यूरिटी चेक की घोषणा हुई और संदीप लाइन में खड़े होकर सिक्यूरिटी चेक कराया और दूसरी तरफ गेट नम्बर 5 की ओर चल दिया जहाँ से प्लेन जाने के लिए मैकेनिकल सीढ़ी की व्यवस्था थी |
यह सब देख कर संदीप को बड़ा कौतुहल हो रहा था और वह हर क्षण को एन्जॉय कर रहा था |
गेट नम्बर -5 के पास ही गद्देदार सोफे पर बैठ कर सब लोग गेट खुलने का इंतज़ार कर रहे थे तभी रनवे की तरफ नज़र गयी तो संदीप चौक गया |
वहाँ बड़ी बड़ी और विदेशी प्लेन भी खड़े थे और बारी बारी से रनवे से टेक ऑफ कर रहे थे |
संदीप प्लेन को टेक ऑफ होता देख कर रोमांचित हो रहा था | तभी घोषणा हुई कि गेट खुल चूका है आप सभी यात्री अपने हैण्ड बैगेज के साथ प्लेन की ओर प्रस्थान करे |

प्लेन तो उसके अनुमान से बहुत बड़ा था | और खिड़की वाली सीट पाकर संदीप काफी रोमांचित हो उठा | प्लेन जब टेक ऑफ कर रहा था तो खिड़की से बाहर का दृश्य देख कर उसे काफी डर लग रहा था |
और जब प्लेन धरती को छोड़ कर हवा में पहुँची तो उसे खिड़की से बाहर देखते हुए डर और रोमांच का अनुभव हो रहा था |
प्लेन के खिड़की से उसने बाहर देखा तो पाया कि आकाश में बादल रुई की सफ़ेद चादर के समान बहुत सुंदर दिख रहे हैं | संदीप अपने को रोक नहीं सका और उस सुंदर दृश्य को अपने मोबाइल में कैद करने के लिए आतुर हो उठा |
संदीप एक एक क्षण को एन्जॉय कर रहा था | कुछ ही देर में एक सुन्दर सी एयर होस्टेस प्रकट हुई और उन्होंने घोषणा किया कि अब प्लेन में खाना सर्व किया जायेगा |
थोड़ी देर में एक ट्रे में बहुत सारा छोटा छोटा पैकेट में खाने की सामग्री सजा कर दिया गया | संदीप को इस तरह के खाने का अनुबव नया था | आकाश में उड़ता प्लेन के अन्दर बैठ कर खाने का मज़ा ही कुछ और है |
वह ट्रे में रखे सभी खाने की सामग्री को खोल कर ट्रे में सजा लिया और आराम से मजे ले कर खाने लगा |
कुछ देर बाद ट्रे को वापस दिया तभी खिड़की से बाहर उसकी नज़र पड़ी तो देखा नीचे समुद्र दिखाई पड़ रहा था और चारो तरफ पानी ही पानी |
समुद्र के किनारे बसा मुंबई शहर भी साफ़ दिखाई पड़ने लगा था | वहाँ ऊँची ऊँची खड़ी बिलडिंग प्लेन के खिड़की से देखने पर छोटे छोटे खिलोने के सामान नज़र आ रहे थे |
संदीप उन दृश्यों को भी अपने कमरे में कैद करने लगा, तभी विमान के कप्तान ने घोषणा सुनाई …अब कुछ ही समय के पश्चात हम मुंबई एयरपोर्ट पर लैंडिंग करने वाले है |
लैंडिंग के समय का दृश्य भी काफी रोमांच भरा था | अब संदीप को डर नहीं लग रहा था बल्कि इतनी उचाई से मुंबई शहर को अपने कैमरे में कैद करने में खूब मज़ा आ रहा था |
और कुछ ही देर में प्लेन हिचकोले खाते हुए लैंड कर गया | अंतत संदीप की हवाई जहाज़ की पहली यात्रा पूरी हुई |
और वहाँ से उनलोगों को सीधे गेस्ट हाउस लाकर छोड़ दिया गया | लंच का टाइम हो रहा था अतः सब लोग कपड़ा बदल कर डाइनिंग हॉल में इकठ्ठा हो गए |
यहाँ भी पहले की तरह खाने की व्यवस्था थी और खाने में vege और नान vege दोनों तरह के आइटम थे | सब लोगों के साथ संदीप भी खाने का भरपूर मज़ा ले रहा था |
दूसरी तरफ राधिका का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था | दुखी होकर उसने कल रात से ही खाना पीना त्याग रखा था | घर वाले उस पर शादी का दबाब बना रहे थे और संदीप भी ऐसे मौके पर कोई खोज खबर नहीं ले रहा था |
एक माँ ही है जिससे राधिका अपने मन की बात कह पाती थी, लेकिन पिता के आगे माँ का कुछ चलता ही नहीं था | फिर भी वो माँ से जिद करने लगी कि पापा को बोल कर उसकी शादी रुकवा दी जाए |
लेकिन माँ ने राधिका को समझाते हुए कहा …ठीक है मैं तुम्हारे पापा से बात कर सकती हूँ , परन्तु संदीप आकर कहे तो सही कि उसे यह रिश्ता मंज़ूर है |
माँ की बात सुन कर राधिका निरुत्तर हो गई | वो मन ही मन सोचने लगी कि आखिर क्यों, संदीप ना आया और ना ही कोई खबर दिया | पता नहीं वह कहाँ है और उसके मन में क्या चल रहा है ?

ऐसा तो नहीं कि अब उसका मन बदल गया है ? इन सब बातों को सोच कर उसका दिल बैठने लगा और वह व्याकुल हो कर घर में बिना किसी को बताये पागलों की तरह भागती हुई संदीप के घर पहुँच गई |
राधिका को बहुत घबराहट हो रही थी और आँखों से आँसू भी निकल रहे थे, वो दरवाजे पर लगी कॉल बेल को बजा दी |
रेनू घर के अन्दर से पूछी …कौन है ?
थोड़ी देर तक जब ज़बाब नहीं मिला तो रेनू ने दरवाज़ा खोल कर बाहर की ओर देखा |
अचानक राधिका को सामने पाकर वो घबरा कर पूछी….क्या बात है राधिका ? तुमने अपना यह क्या हाल बना रखा है | बाल बिखरे हुए और तुम्हारे आँखों में आँसू ? सब ठीक तो है ना ?
कुछ भी ठीक नहीं है रेनू | मेरे घर वाले मेरी शादी कहीं और ठीक कर रहे है और इधर संदीप कोई खोज खबर नहीं ले रहा है | ऐसे में मैं कैसे ठीक रह पाउंगी |
दरवाज़े पर दोनों की काना – फूसी की बातें सुन कर माँ भी आ गई और राधिका की ऐसी हालत देख कर वह बहुत चिंतित हो गई |
उन्होंने राशिका का हाथ पकड़ कर उसे घर के अंदर ले आयी और अपने साडी के आँचल से उसके आंसूं पोछे और प्यार से कहा ….तुम्हारी सभी बातें मैं सुन चुकी हूँ | तुम अपना दिल छोटा मत करो , मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है |
राधिका के मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकल पायी, बस उस माँ की गोद में सिर रख कर वह रोती रही |
तभी माँ ने रेनू से कहा ….इसे पहले खाना खिलाओ, इसके मुँह से तो आवाज़ ही नहीं निकल रही है | राधिका के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुआ कहा | तुम तो मेरी हिम्मत वाली बेटी हो | इतनी ज़ल्दी हिम्मत हार गई ?
दोपहर का समय था और लंच का वक़्त भी | रेनू गरम गरम खाना थाली में लेकर आयी और राधिका के पास बैठ कर हँसते हुए बोली… माँ के हुकम का पालन करो मेरी होने वाली भाभी जी…
राधिका को सुन कर बहुत अच्छा लगा | इतना प्यार और स्नेह है इस घर में | भला मैं इस घर को छोड़ कर दुसरे के घर क्यों जाऊं | …वो मन ही मन सोचने लगी |
तभी रेनू गिलास में पानी लेकर आ गई तो राधिका उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ खाने के लिए बैठा लिया |
रेनू के साथ खाना खाते हुए राधिका ने पूछा ….संदीप का नंबर शायद बदल गया है, तुम उसका नया वाला नंबर दे सकती हो ?
रेनू उसकी बात को सुन कर असमंजस में पड़ गयी क्योकि भैया ने नौकरी वाली बात गुप्त रखने को कहा था |
लेकिन राधिका की ऐसी दयनीय हालत को देख कर उसने अपना इरादा बदल लिया और उसने संदीप के नए नंबर को राधिका को बता दिया …..(क्रमशः)

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