
राधिका का अनुमान बिलकुल सही निकला | वैसे उसे यह आभास नहीं था कि सोफ़िया उसके संदीप को इतनी जल्दी अपने मोह माया के जाल में फांस लेगी | उसने राधिका के बारे में भी नहीं सोचा जो उसकी बचपन की सहेली है, कि उसके दिल पर क्या बीतेगी ?
इन सब बातों को सोच कर राधिका के आँखों में आँसू आ गए और वह जैसे ही सोफ़िया के कंपाउंड का गेट पर पहुँची तो देखा … सामने दरवाजे पर ही संदीप और सोफ़िया खड़े है |
सोफिया अपने घर के दरवाजे पर ताला लगा रही थी, शायद वो लोग कही बाहर निकल रहे थे |
राधिका अभी उनलोगों को टोकना उचित नहीं समझा, बल्कि उसका पीछा करके यह पता लगाने का निश्चय किया कि इतना बन – ठन कर संदीप को साथ लेकर वह जादूगरनी कहाँ जा रही है …??
राधिका छुपते छुपाते उनलोगों का पीछा करने लगी | छोटा शहर होने की वजह से वो लोग ज्यादा दूर तक नहीं जा सके थे और पास में ही एक मॉल में प्रवेश कर गए |
राधिका भी उनलोगों के पीछे पीछे मॉल में घुस गयी और कुछ अपने लिए सामान देखने का एक्टिंग करने लगी, लेकिन उसकी नज़र बराबर उनलोगों पर ही टिकी रही |
थोड़ी देर यूँही लूका – छिपी का खेल चलता रहा, लेकिन अचानक संदीप की नज़र दूर से ही राधिका पर पड़ी तो वो समझ गया कि राधिका के यहाँ आने का मकसद क्या है ?
उसे इस तरह राधिका के सामने अपने चोरी पकडे जाने का एहसास होने लगा |
फिर अचानक उसके दिमाग में आया कि राधिका से मिलकर उसके मन में पल रहे वहम को दूर कर देना चाहिए |
संदीप अचानक आ कर चुप चाप राधिका के सामने खड़ा तो गया | उसके मन में तो चोर था ही, अतः उसने धीरे से कहा …हेल्लो राधिका, यहाँ कैसे आना हुआ ?
मैं बहुत दिनों से मिलना चाह रहा था, लेकिन…….
राधिका बीच में ही उसकी बात को काट कर पूछी बैठी …..क्या मेरा मेसेज फ़ोन पर तुम्हे नहीं मिला था ?
उसके आँखों से गुस्सा फुट पड़ा और गुस्से के कारण वह कुछ भी बोल नहीं पा रही थी |
उसके आँखों से आँसू बह निकले और वो सोफ़िया को अपने पास आने से पहले वहाँ से निकल जाना चाहती थी | शायद उसके प्रति राधिका के मन में बहुत ज्यादा नफरत पैदा हो गई थी |
संदीप उसके हाथ को पकड़ कर कुछ समझाने की कोशिश करना चाहा, लेकिन राधिका अपना हाथ झटक कर बिना कुछ बोले अपने आँखों में आँसू लिए वहाँ से चली गयी |
संदीप ने बहुत कोशिश किया कि राधिका रुक कर उसकी बात सुने, लेकिन कोशिश बेकार हो गया और राधिका वहाँ से चली गई |

संदीप स्तब्ध सा खड़ा राधिका को जाता देखता रहा लेकिन कुछ नहीं कर सका | तभी वहाँ सोफ़िया भी आ गयी |
वो राधिका को नहीं देख पाई थी, इसलिए उसने संदीप की ओर देखते हुए पूछी…तुम अचानक इधर क्यों चले आये ? यह जेंट्स सेक्शन तो नहीं है ?
वह हडबडा कर बोला …ऐसे ही टहलते हुए इधर आ गया था | वह राधिका वाली बात सोफ़िया को नहीं बताना चाहता था, लेकिन उसका मन तो परेशान हो उठा था और उसे अब शौपिंग करने का बिलकुल दिल नहीं कर रहा था |
लेकिन सोफ़िया को साथ लेकर जब आया था तो उसे यहाँ छोड़ कर जा भी नहीं सकता है | इसलिए उसके साथ चुप चाप शौपिंग करना ही ठीक समझा |
एक तरफ सोफ़िया उसके साथ मॉल में आ कर बहुत खुश थी और खूब ढेरो सारी खरीदारी अपने और संदीप के लिए किये जा रही थी जैसे वह पूरा मॉल ही खरीद लेना चाहती हो |
और ऐसा हो भी क्यों नहीं… उसे पैसो की कोई कमी थी नहीं, चाहे जितना पैसा खर्च कर ले |
संदीप सिर्फ सोफ़िया की हर पसंद को अनमने ढंग से हाँ में हाँ मिला रहा था , परन्तु उसका मन तो कही और था | राधिका के आँखों में आँसू उसने पहली बार देखा था, इसीलिए मन का दुखी होना स्वाभिक ही था |
बहुत सारा शौपिंग करने के बाद पेमेंट काउंटर पर खड़ी उसकी नज़र घडी पर पड़ी और उसके मुँह से निकल पड़ा ….अरे, सात बज गए और अब तो मूवी भी शुरू होने वाला होगा |
सोफ़िया ख़रीदा हुआ सारा सामान बाहर खड़ी गाडी में रखने के लिए संदीप को दिया और कहा …तुम जल्दी से सामान और प्रणव को लेकर गाड़ी में जाओ, मैं पेमेंट कर के अभी आती हूँ |
किसी तरह ज़ल्दिबाज़ी में सोफ़िया खुद ही गाडी को ड्राइव करते हुए सिमेमा हॉल पहुँच गयी और पहले से कटा चुकी टिकट को लेकर सीधे गेट पर पहुँच गयी |
मूवी शुरू हो चुकी थी और हॉल के अंदर पूरा अँधेरा था / सोफ़िया को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था | अतः वो ज़ल्दी से संदीप का हाथ पकड़ लिया और धीरे धीरे अपनी सीट की ओर बढ़ने लगी |
काफी भीड़ हो गई थी और सभी अपनी – अपनी सीट को खोज रहे थे | सोफ़िया अँधेरा और फिर भीड़ होने से घबरा गई और वो संदीप से बिलकुल चिपक गयी |
फिर किसी तरह टिकट चेकर की मदद से अपने सीट तक पहुँच पाई |
इस आपा – धापी में उसकी सांस फुल गई और वह संदीप को पकड़ कर बिलकुल चिपक कर बैठ गई | आजकल हॉल में स्पेशल क्लास में सोफे ही लगा होता है ताकि आराम से बैठ कर मूवी देखी जा सके |
आज सोफ़िया को खूब मज़ा आ रहा था | एक तो इतने दिनों के बाद घर से बाहर निकलने का मौका मिला था और दूसरी उसका प्यारा संदीप उसके साथ था |

सोफ़िया तो मूवी क्या देखेगी , सिर्फ संदीप के साथ ही चिपक कर बैठी रही जैसे वही उसका पति हो | संदीप उसे नाराज़ नहीं करना चाहता था क्योकि इस गरीबी में वही एक आशा की किरण थी , जिससे वह अपने और घर की ज़रूरतों को पूरा कर पा रहा था |
इसलिए उसके सभी नखरे और खुद से लिपटने और चिपटने का खुल कर विरोध नहीं कर पा रहा था |
लेकिन आज संदीप आत्मग्लानि से भरा चुप चाप बैठा था,| उसे न तो मूवी देखने में मज़ा आ रहा था और ना सोफ़िया के शरीर से निकल रही कीमती सेंट की खुशबु |
वो तो बस भगवान से यही मना रहा था कि कब यह मूवी समाप्त हो और वह घर जाकर रूठ गई राधिका को मनाने का उपाय सोचे |
मूवी बहुत ही रोमांटिक थी और हॉल के सोफे में बैठ कर अपने चहेते संदीप के साथ इस मूवी को देख कर वो भी काफी रोमांटिक हो रही थी |
इंटरवल में तो एक ही आइसक्रीम से संदीप को भी खाने पर मजबूर कर दिया जैसे वो प्यार का इज़हार करना चाहती हो |
सोफ़िया को इस बात का आभास नहीं था कि संदीप का मूड खराब है और वह अंदर ही अंदर परेशान है | सोफ़िया तो आज की घटना से बिलकुल अनभिज्ञ थी |
वह तो समझती थी कि संदीप शर्मीला स्वभाव के कारण शांत है |
खैर. मूवी किसी तरह समाप्त हुई और संदीप को घर जाने की ज़ल्दी थी |
सोफ़िया ने हॉल से निलकते हुए संदीप से बोली कि आज हमलोग किसी अच्छे रेस्तरां में डिनर करेंगे, फिर घर चलेंगे , लेकिन संदीप ने साफ़ मना कर दिया |
मुझे आज घर पर कुछ ज़रूरी काम है इसलिए अभी मुझे जाना होगा …संदीप ने बहाना बनाया |
ठीक है, होटल का मज़ा किसी दुसरे दिन लेंगे, सोफ़िया अपनी गाड़ी में बैठते हुए बोली और घर की ओर रवाना हो गई |
दूसरी तरफ, राधिका संदीप से नाराज़ हो कर तो चली आयी, लेकिन घर आकर काफी परेशान हो रही थी | उसके मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे |
कहीं ऐसा तो नहीं कि संदीप पैसों की खातिर, सोफ़िया के लिए मुझे छोड़ दे |
फिर वो अपने मन को समझाती ….पगली, तू तो संदीप को बचपन से जानती है | तू तो जितना अपने माँ बाप पर भरोसा नहीं करती है, उससे ज्यादा भरोसा संदीप पर करती है |
पर आज इस छोटी सी घटना को देख कर कुछ भी गलत अनुमान लगाना ज़ल्दबाज़ी होगी .|.,(क्रमशः )….

इससे बाद की घटना जानने के लिए नीचे दिए link को click करें….
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अच्छी कहानी।
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर।
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बहुत बहुत धन्यवाद डियर |
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