# रिक्शावाला की अजीब कहानी #…15

DCF 1.0

वक़्त से लड़ कर जो

अपना नसीब बदल दे ,

इंसान वही जो अपनी

तकदीर बदल दे ,

क्या होगा कल

कभी मत सोचो

क्या पता कल वक़्त खुद

अपनी लकीर बदल दे…

बड़े भाई की हकीकत सुनकर मैं भी अंदर से काँप गया | मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि  इंसान की ज़िन्दगी क्या इतनी सस्ती हो गयी है |

मुझे तो महसूस होता है कि सस्ती तो है ही अनिश्चित भी हो गयी है |

तभी तो आजकल लोग स्वाभाविक मौत कहाँ मर रहे है | या तो प्राकृतिक आपदा के कारण या फिर कोई ना कोई बीमारी के करना ज़िन्दगी समाप्त हो रही है |

अभी अभी ट्रेन ने पंद्रह मजदूरों को पलक झपकते ही  छोटे छोटे मांस के लोथड़ो में बदल दिया,  जब वो सो रहे थे | उसके साथ साथ और कितनी जिंदगियां भी बर्बाद हो गई, उसके परिवार का अब क्या होगा ?

सच, गरीबी एक श्राप ही है | आदमी दो जून की रोटी के लिए कितनी परेशानियों से गुज़रता है |  आज तो हम से अच्छे ये पशु – पक्षी है जो जितने दिन भी जीते है, मस्त जीवन जीवन जीते है |

मैं इन सब बातों को सोच कर भावुक होने लगा था, तभी ध्यान आया कि इसी तरह हम यहाँ बैठे रहे तो रास्ते की दुरी कैसे तय कर पाएंगे | मैं उठ खड़ा हुआ और चलने को तैयार |

मैंने बड़े भाई से पूछा …आप का सफ़र कहाँ तक है ?

बस एक दिन का सफ़र बचा है | यहाँ से २० किलोमीटर दूर बिहार का बॉर्डर है वही पर मेरा गाँव है, कर्मनाशा | कर्मनाशा नदी का नाम तो सुना ही होगा ?, हमारे गाँव में ही पड़ता है ..बड़े भाई ने कहा |

अरे हाँ, वही नदी ना, जिसके बारे में सुना है कि उसके पानी छूने मात्र से बने काम भी बिगड़ जाते है …मैंने उत्सुकता से कहा |

तुमने ठीक ही सुना है |..हमारे गाँव के लोग इस में ना तो नहाते है और ना इसके पानी का उपयोग करते है, | लोगों का मानना है कि इसके पानी  में नहाने  से शरीर में कोढ फुट जाता है  ….बड़े भाई ने बताया |

आप ठीक कहते है,  हमने भी सुना है कि इस नदी में नहाना तो दूर इसका पानी छूने से भी लोग डरते है | इसे भारत की शापित नदी कहते है ..मैंने अपनी जानकारी के हिसाब से बोला |

इस तरह बात करते करते शाम हो चली थी और गर्मी का प्रकोप कुछ कम हो गया था |

मैंने कहा …अब चलना चाहिए, बैठे बैठे तो रास्ता कटेगा नहीं  |

हाँ भाई, तुम ठीक कहते हो, और वे भी उठ कर चलने को तैयार हो गए |

तभी देखा उनके पैर के तलवे, चलते रहने से फट गए है और उस जगह से खून बह रहा है |

एक तो बुढ़ापे का शरीर  और उस पर नंगे पांव चलना ….मुझे उनकी हालत देख कर दया  आ गई |  

मैंने पूछा ….बड़े भाई, आप नंगे पांव क्यों सफ़र कर रहे हो ? आपके पैर तो जख्मी हो गए है |

क्या कहे भाई, इस पक्की सड़क पर चलते चलते मेरी चप्पल ही घिस गई और टूट कर पैर में पहनने लायक नहीं बची ….वो अपने नंगे पैरो को देख कर बोले |

आप इतनी कष्ट में चल कैसे रहे हो ?….मैंने  अपनी चप्पलें  उनके पैरों में पहना दी |

वो बोल उठे …तुम अपने चप्पल मुझे क्यों दे रहे हो ?, फिर तुम नंगे पैर कैसे चल पाओगे |

अरे  बड़े भाई,  आप गाँव के पास पहुँच कर हमें वापस  दे देना | मुझे कहाँ पैदल चलना है | मैं तो रिक्शे पर बैठ कर चलूँगा |

तभी उनकी पत्नी ने कहा …, रिक्शा तो खाली ही है , मुझे भी बच्चे के साथ बैठने देते तो बड़ी कृपा होती |

हाँ – हाँ क्यों नहीं, आप तीनो रिक्शा पर बैठ जाइये | मैं आपलोगों को आपके गाँव तक छोड़ दूंगा | वैसे भी आप को ऐसी हालत में रास्ते में छोड़ नहीं सकता …मैंने बड़े भाई को देखते हुए कहा |

मुझे  तो भूख लगी है | यात्रा शुरू करने से पहले आओ कुछ खा लेते है | तुम्हारे भौजी के पास चुरा और गुड़ है | उसी को खाकर भूख मिटाते है …बड़े भाई ने पैर में चप्पल डाल कर खुश होते हुए कहा |

चुडा और गुड़ खा कर पानी पी लिया और सभी लोग चलने को तैयार हो गए |

नन्हा बच्चा रिक्शे पर बैठ कर खूब खुश हो रहा था | उसे हमलोगों की तरह कोई चिंता फिक्र नहीं थी , वो तो बस अपनी दुनिया में मस्त था |

जबकि हमलोग हर पल डर के साए में जी रहे है | चिंता फिक्र से ग्रसित रहते है | इसीलिए तो कहते है कि  बचपन वाला पल ज़िन्दगी का सबसे हसीन  पल होता है |

हमलोग रिक्शे में बैठ कर यात्रा की शुरुआत  कर दी | बड़े भाई अपनी लुगाई और बच्चे के साथ रिक्शे पर बैठ कर , पैदल की कष्ट प्रद यात्रा से छुटकारा पा लिया था |

मेरे कारण अब उनकी यात्रा आसान लग रही थी जबकि मुझे भी उनलोगों का साथ मिल जाने से रास्ता आसान लगने लगा था |

करीब दस किलोमीटर का फासला पार कर चूका था | अँधेरी रात थी जिसमे रिक्शा चलाना खतरनाक लग रहा था | एक तो ट्रक की हेड लाइट में आँखे चकाचौंध हो जाती और दूसरा ट्रक से धक्का लगने खतरा भी बना रहता |

बड़े भाई ने कहा …कही कोई सुरक्षित जगह देख के रात गुजार लेते है | अँधेरी रात और सुनसान रास्ते में सफ़र करने का खतरा नहीं उठाना चाहिए |

आप ठीक कह रहे है,  मैं भी यही सोच रहा था |

हमलोग आगे चलते हुए ढाबा की तलाश में थे जहाँ रात गुज़ारना सुरक्षित हो | लेकिन काफी दूर चलने पर भी कोई ढाबा नज़र नहीं आ रहा था |

तभी सड़क से थोड़ी दूर पर एक छोटा सा झोपडी दिखा | जिससे  हल्की – हल्की रोशनी आ रही थी |

शायद खेत की रखवाली करने के लिए इस झोपडी को किसी किसान ने बनाया था | हमलोग रिक्शा को किसी तरह खेत में घुसा दिए और झोपडी तक पहुँच कर देखा तो एक लालटेन जल रही है और अन्दर एक बुढा व्यक्ति सो रहा है |

मैं उस बूढ़े बाबा को नींद से उठाया और यहाँ रात गुज़ारने की इच्छा व्यक्त की |

वो भला और दयालु किसान था | वो हमलोग की हालात जानकार तुरंत ही मदद को तैयार हो गया | वह उतनी रात को भी बिना आलस किये हमलोगों के लिए वहाँ रखे पुआल को बिछा कर झोपडी में ही सोने की जगह बना दी |

चलो रात गुज़ारने  की व्यवस्था हो गई ….मैंने बड़े भाई से कहा |

हाँ भाई , सोने का इंतज़ाम तो हो गया , लेकिन भूख बहुत जोर की लगी है | उसका हल तो निकालो…बड़े भाई ने कहा |

तभी मुझे ध्यान आया कि अपने पास चावल है और स्टोव भी है, तो नमक – भात खाकर पेट की आग बुझाई जा सकती है |

मैं रिक्शे में बंधा सामान को खोला और स्टोव और  चावल निकाल कर ले आया | भौजी ने बड़े प्रेम से भात बनाई | हमलोग गरम गरम नमक भात खा रहे थे, तभी बड़े भाई ने कहा ….ऐसे वक़्त में नमक भात भी स्वादिस्ट लग रहा है |

खाना खा कर मज़ा आ गया और उस वृद्ध किसान ने अपने पास रखे घड़े से पानी निकाल हमलोग को पानी पिलायी | हमलोग खाना खाने के बाद वही पुआल की बिस्तर पर सो गए |

थके होने के कारण रात में खूब अच्छी नींद आयी और जब सुबह नींद खुली तो मन बिलकुल प्रसन्न लग रहा था |

मैं झोपडी के बाहर आकर देखा तो सुबह का खुशनुमा एहसास था,  चारो तरफ खेतो की हरियाली बहुत ही ख़ूबसूरत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे | मुझे लगा कि अगर यहाँ कुछ काम धंधा मिल जाए तो यहाँ रुक जाने में कोई बुराई नहीं है |

मैं मन में ख्याली पुलाव पका ही रहा था, तभी बड़े भाई की आवाज़ कानों में पड़ी | वे बोल रहे थे….जल्दी से अपना सामान रिक्शा में बांध लो, क्योकि ज़ल्द निक्लेंगे तो ही सही समय पर गाँव पहुँच पाएंगे | तुम वहाँ पहुँच कर जितना चाहो आराम करते रहना |

ठीक है, बस यहाँ से निकलने की तैयारी  करता हूँ … मैंने कहा | और समान को रिक्शे में बांधते हुए मन ही मन सोच रहा था, कि  काश अभी  कही से चाय मिल जाता तो शरीर में स्फूर्ति आ जाती |

तभी भगवान् ने मेरे मन की बात सुन ली और देखा तो वो बुढा किसान एक प्लास्टिक के बोतल में चाय और मिटटी का भाड़ ले कर आ रहे है |

मैं दौड़ कर बाबा के पास पहुँच गया और पूछा….आपको कैसे पता चला कि मुझे चाय की तलब हो रही है |

हमलोग का यह संस्कार है कि किसी को भी बिना चाय पानी पिए यहाँ से विदा नहीं होने देते है …उन्होंने हँसते हुए कहा |

मैं अभी घर जाकर गाय का दूध निकाला फिर चाय बनवा कर ला रहा हूँ |

उनकी बात  सुन कर मैं आश्चर्य से पूछा …आप इस उम्र में इतना सब काम कैसे कर लेते है | शहर में तो आपकी उम्र के लोग खाना से ज्यादा टेबलेट खाते है और ज्यादा समय बिस्तर पर ही पड़े पड़े दिन गिनते रहते है |

गाँव और शहर में यही तो अंतर है बेटा …उन्होंने अपनी मूंछ पर हाथ फेरते हुए कहा |

सचमुच उनको देख कर लगा कि लोग उम्र से बुढा नहीं होते है, बल्कि चिंता और फिक्र से बूढ़े होते हैं |

उनके चेहरे की चमक और स्फूर्ति को देख कर यही एहसास हो रहा था |

हमलोग चाय पीकर बाबा को धन्यवाद् दिया और रिक्शा पर बैठ कर यात्रा की शुरुवात की | मन आज बहुत खुश लग रहा था , इसलिए पुरे मन से रिक्शा चला रहा था और बड़े भाई से बाते भी हो रही  थी | .

आगे की यात्रा आसान लग रही थी तभी कुछ दूर जाने के बाद देखा कि ट्रक और गाड़ी की लम्बी लाइन लगी हुई है | शायद हमलोग बिहार बॉर्डर के पास आ चुके थे |

मैं रिक्शे से उतर कर जाम लगने का कारण पता करने के लिए पास खड़े ट्रक ड्राईवर से पूछा …यह जाम क्यों लगा है भाई |

यह जाम बहुत लम्बी है | यहाँ तीन दिन से गाड़ी या किसी को भी आगे जाने नहीं दे रही है पुलिस …उसके बताया |

लेकिन क्यों नहीं जाने दे रही है ? …हमने आश्चर्य से पूछा |

यहाँ से बिहार की सीमा शुरू होती है और वहाँ के अधिकारी का कहना है कि जो भी दुसरे राज्य से बिहार राज्य की सीमा के अन्दर आएगा उसे  यहाँ 15 दिनों के लिए quarantine  सेंटर में रहना होगा उसके बाद ही आगे जाने देंगे | ऐसा सरकार का आदेश है |

यह तो बिलकुल गलत बात है | लोग हजारो किलोमीटर दूर से पैदल और गाड़ियों में चल कर  घर जाने को आ रहे है उसे इस तरह से रास्ते में रोकना ठीक नहीं है ….हमने कहा |

तुम ठीक कहते हो भाई …. इसीलिए तो आगे सब लोग हंगामा किये हुए है और धरना प्रदर्शन पर बैठे हुए है…ड्राईवर भाई ने कहा |

मैं  उनकी बातों को सुन चिंतित हो गया । और अपने रिक्शे के पास वापस आकर बड़े भाई को सारी स्थिति से अवगत कराया और हम सब लोग माथा पकड़ कर बैठ गए | पता नहीं अब आगे क्या होने वाला है… ………….    (क्रमशः )

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4 replies

  1. जितनी तारीफ, उतनी ही कम

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