
क्या कभी लौट पाओगे तुम,
हर दिन तुम्हारा इंतेज़ार करता हूँ
कि तुम लौट आओगे
मगर जानता हूँ कि
लौटना आसान नहीं है तुम्हारे लिये
मैं हर दिन इक कोशिश करता हूँ
घडी की समय को पीछे कर जाऊँ
एक एहसास जो तुम्हे फिर पा जाऊँ..
घर के बाहर हल्ला – हंगामा की आवाज़ सुन कर मेरी नींद खुल गयी | हालाँकि सुबह के आठ बज रहे थे और धुप भी चढ़ चुकी थी |
मैं हडबडाते हुए बिस्तर से उठा और झोपडी से बाहर निकल कर देखा तो सामने चाय की दुकान पर भीड़ लगी हुई थी और चाय पीने वालों के हाथ में समाचार पत्र था |
मैं जिज्ञासा वश उनके पास जाकर हंगामा का कारण जानना चाहा |
अरे विनोद जी ,किस बात का हंगामा हो रहा है भाई …मैंने उत्सुकता से पूछा |
आप को पता नहीं है राजू भाई ? …जो चाइना वाली बीमारी “करोना” है ना, वो अब दिल्ली तक पहुँच गया है और सभी जगह काफी तेज़ी से फ़ैल रहा है | आज मोदी जी का शाम में देश के नाम सन्देश प्रसारित होने वाला है …लगता है इस पर कोई बड़ा फैसला होने वाला है |
हमारे प्रदेश की सरकार भी हमलोगों को सतर्क रहने को बोला है और कुछ दिशा निर्देश भी जारी हुआ है …वही सब पेपर में पढ़ रहे है |
चाइना और दुसरे देश में तो इस महामारी से बड़ा बुरा हाल है | वहाँ के सभी संस्थानों को बंद कर दिया गया है | अगर यहाँ पर वैसा हाल हुआ तो यहाँ भी सारे संस्थान बंद हो जायेंगे और हमलोग काम के बिना भूख से ऐसे ही मर जायेंगे |
मुझे यह सोच कर तसल्ली हुई कि चलो यहाँ उस बीमारी प्रकोप नहीं है | मैं जल्दी जल्दी वापस आकर अपने काम में लग गया, क्योकि मैडम आज थोड़ी जल्दी आने को कहा था |
रघु काका भी उठ चुके थे | उन्होंने बिस्तर पर बैठे बैठे अपनी बीडी सुलगाई और एक लम्बा कश लेते हुए पूछा …राजू बेटा, बाहर किस बात का हंगामा हो रहा है |
कुछ नहीं काका, वो जो मैडम कल बताई थी ना, चाइना वाली बीमारी के बारे में | वो अब हमारे देश में भी तेज़ी से फ़ैल रहा है …मैंने उनको समझाते हुए कहा |
आपके लिए भी मैडम ने मास्क और सैनिटाइजर खरीद कर दिया है, आपको भी इसका उपयोग करना है ….मैंने ने हिदायत देते हुए कहा |
अरे बेटा, मुझे अभी कहाँ बाहर निकलना है | भगवान् ने तो पहले ही अपाहिज कर रखा है |

मैं ज़ल्दी ज़ल्दी खाना तैयार किया और काका को खाना खिला कर खुद भी खा लिया |
सभी काम फुर्ती से निपटा रहा था ताकि मैडम के पास समय पर पहुँच सकूँ | आज पुरे पाँच दिन हो चुके है उसको देखे हुए |
आज तो उसका दिया हुआ सबसे अच्छा पेंट – शर्ट पहन कर एकदम स्मार्ट बन कर जा रहा हूँ | मुझे इन कपड़ों में देख कर वो बहुत खुश होगी |
मैं काका से इज़ाज़त लेकर रिक्शा पर बैठ कर एक देशी गाना गुनगुनाता हुआ चल पड़ा | वहाँ होटल पहुँच कर रिसेप्शन (reception) में गया और बोला …मुझे अंजिला मैडम के पास जाना है |
वह स्टाफ मुझे हैरत से देखा और पूछा …आप को पता नहीं है क्या ? …मैडम तो आज सुबह में ही होटल छोड़ कर चली गई |
उसकी बात सुन कर ऐसा लगा …जैसे 440 वाल्ट का कर्रेंट लग गया हो |
मैं अपने को सँभालने की कोशिश कर रहा था, तभी मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी | मैंने देखा तो वो अंजिला का फ़ोन था |
मैंने फ़ोन उठाया और ज़ल्दी से पूछा …आप कहाँ है मैडम ? मैं अभी अभी होटल आया तो पता चला कि आपने होटल छोड़ दिया है |
क्या राजू ! …मैं तो सुबह से ही तुहारा फ़ोन ट्राई ( try) कर रही हूँ लेकिन वो हर बार स्विच ऑफ बता रहा था | अभी जाकर तुम्हारा फ़ोन कनेक्ट हो पाया है …अंजिला ने दुखी स्वर में कहा |
हाँ मैडम, सुबह फ़ोन चार्ज करते हुए ऑफ हो गया था | लेकिन आप है कहाँ ?
उसकी आवाज़ भर्रा गई और रोते हुए बोली….राजू , अब मैं वापस जा रही हूँ | हमारे सभी स्टूडेंट दोस्त के लिए एक चार्टर प्लेन आया है और हम सब को वापस लौटने का निर्देश मिला है |
उसके आँखों से आँसू निकल रहे थे ….. ऐसा महसूस हो रहा था |
मेरा दिल बिलकुल बैठ गया | ऐसा लगा जैसे मेरे शरीर से जान ही निकल गई है |
मैं अपने को सँभालते हुए फिर पूछा …आप अभी कहाँ है ?
एअरपोर्ट पर हूँ | प्लेन बस आने ही वाली है …बहुत मुश्किल से उसकी मुँह से आवाज़ निकल पा रही थी |
मैं ज़ल्दी से कहा …मैं अभी आ जाता हूँ , मुझे आप को देखने की बहुत इच्छा हो रही है |
मुझे भी …..उसने बस इतना कहा |

मैं और समय गंवाना उचित नहीं समझा और अपना फ़ोन बंद कर पॉकेट में रखा | रिक्शा पर बैठ कर फुल स्पीड से एअरपोर्ट की तरफ चल दिया |
आज मेरा रिक्शा बखूबी साथ दे रहा था और अपनी पूरी क्षमता से भाग रहा था | शायद इसे भी मैडम से मिलने की ज़ल्दी थी |
मैं करीब आधे घंटे के सफ़र के बाद एअरपोर्ट में दाखिल हो गया और चैन की सांस ली |
मैं एअरपोर्ट के बाहर से ही मैडम को फ़ोन लगाया ताकि बता सकूँ कि मैं आपसे मिलने आ गया हूँ |
बहुत ट्राई (try) करता रहा उसके फ़ोन का , लेकिन हर बार एक ही आवाज़ आ रही थी …फ़ोन स्विच ऑफ है |
फिर थक हार कर मैं वहाँ काउंटर से पूछा ….विदेश जाने वाली मेरी मैडम का प्लेन आ गया ?
उन्होंने बताया …अभी अभी एक चार्टर प्लेन ब्रिटिश स्टूडेंट्स को लेकर उड़ा है | शायद उसी में आपकी वो मैडम होगी |
मैं आकाश में नज़रे उठा कर देखा …एक प्लेन दूर आकाश में जाता दिख रहा था |
मैं अपना सिर पकड़ कर वही बैठ गया | मैं सिर्फ मैडम को एक नज़र देखना चाहता था |
कुछ देर यूँ ही बैठा रहा | समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करूँ |
मैं अपने को सँभालने की कोशिश करने लगा | ..मन को ढाढस बंधाया और बुझे मन से अपने रिक्शे के पास के वापस आ गया |
फिर उदास मन से रिक्शा स्टार्ट किया और शहर की तरफ चल दिया |
चूँकि मैडम के जाने के बाद कोई काम तो था नहीं, इसलिए वापस रघु काका के पास चल दिया |
जब रास्ते से गुजर रहा था तो मैंने महसूस किया कि लोग – बाग़ घबराये हुए है |
आज शाम को हमारे देश के प्रधान मंत्री का टीवी पर कोरोना को लेकर भाषण होने वाला है और उनका क्या दिशा निर्देश होगा, उस पर लोगों के द्वारा तरह तरह के कयास लगाए जा रहे थे |
खाने – पीने की चीज़ की दुकानों पर भीड़ बढ़ रही थी | लोग ज्यादा से ज्यादा खाने पीने के सामान खरीद कर स्टॉक कर लेना चाह रहे थे |
झोपडी में पहुँच कर मैं अपनी रिक्शा को लगाया और निराश – हताश मन से एक कोने में चुप चाप बैठ गया | अंजिला की बहुत याद आ रही थी | उसकी याद में मेरी आँखे भी गीली हो गई |
काका ने मुझे इस तरह गुम सुम बैठे देख कर पूछा …..क्या बात है राजू ?…अंजिला से भेट नहीं हुई ?
नहीं काका, उससे भेट नहीं हुई | मेरे पहुँचने के पहले ही उसकी प्लेन उड़ चुकी थी | अब उससे शायद ही इस ज़िन्दगी में दुबारा भेट हो पाए |
मेरी बात सुनकर वो आश्चर्य चकित हो गए और उन्होंने पूछा ….अचानक अंजिला अपने देश क्यों चली गई ?
यही “करोना” के कारण उसे वापस बुला लिया गया है | उसके जाने से हमलोगों की ख़ुशी भी चली गयी |

मैं किसी तरह बेमन से खाना बनाया और मन को बहलाने के लिए झोपडी से बाहर निकल आया |
सामने की दूकान में रखी टीवी पर प्रधान मंत्री का राष्ट्र के नाम एक सन्देश प्रसारित हो रह था | . मैं भी दूकान के बाहर ही खड़ा होकर उनका भाषण सुनने लगा |
मैंने सुना … कल से ही पुरे भारत में लॉक डाउन किया जायेगा | आपलोग अगले आदेश तक अपने अपने घरों में रहे और बताये गए नियम का पालन करें | इस महामारी को रोकने के लिए ही ऐसा कदम उठाया जा रहा है |
अभी भाषण चल ही रहा था कि लोग बड़ी संख्या में अपने घरों से निकल कर खाने पीने की सामान खरीदने के लिए दुकानों पर जुटने लगे |
मैंने भी अपने रिक्शा में सभी खाने पीने की ज़रूरी सामान खरीद कर रख लिया और अपनी झोपडी में वापस आ गया ताकि लॉक डाउन की स्थिति में खाने पीने की दिक्कत ना हो |
यह तो भगवान् का शुक्र था कि रघु काका का पैर ठीक हो गया और उनका पैर का प्लास्टर कल ही उतर गया था | हालाँकि डॉक्टर ने उन्हें एक सप्ताह और आराम करने की सलाह दी थी |
रात के करीब दस बज रहे थे और काका ने खाना परोसने को कहा |
मन दुखी होने के कारण मुझे भूख नहीं थी | फिर भी काका का साथ देने के लिए मुझे भी खाना पड़ा | खाना खा कर हम दोनों अपने अपने बिस्तर पर चले गए |
थोड़ी देर में ही रघु काका की नाक बजने लगी और वो गहरी नींद में चले गए |
लेकिन मैं अपनी आँखे बंद किये बिस्तर पर पड़ा रहा | मुझे नींद नहीं आ रही थी , मन में तरह तरह के विचार आ रहे थे | मैडम के जाने से अपनी आमदनी का स्रोत भी बंद हो गया है | अब तो लॉक डाउन की वज़ह से मैं और काका दोने ही बेरोजगार हो गए है |
मेरे पास जो थोड़े पैसे बचे है उससे और कितना दिन हमलोग घर चला पाएंगे | आमदनी भी बंद हो गई
अब मेरा रिक्शा का क़िस्त कौन जमा करेगा …इन्ही सब बातों में उलझा रात बीत रही थी …..(.क्रमशः)

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अच्छी कहानी।
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बहुत बहुत धन्यवाद डियर |
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