# रिक्शावाला की अजीब कहानी #…8 

कभी – कभी ज़िन्दगी में ऐसा मोड़ आ जाता है ..

जहाँ से ना तो “ऑटो” मिलता है और ना “रिक्शा”

बस, हमें पैदल ही चलना पड़ता है …..

 अंजिला को उसके होटल छोड़ कर रघु  काका के झोपडी की ओर वापस चल दिया …उस समय घंटा चौक पर लगी बड़ी घड़ी रात के दस बजा रहे थे |

दिन भर की भाग दौड़ के कारण  मुझे  थकान हो रही थी | मैंने सोचा , काका के पास जाते ही चादर तान कर सो जाऊंगा |

रास्ते में न जाने कैसे – कैसे ख्याल आ रहे थे | सच, आज का दिन मेरे ज़िन्दगी में बड़ा अजीब ही गुजरा था |

रघु काका  का एक्सीडेंट होना और फिर अंजिला द्वारा बड़े ही मनोयोग से उनकी सेवा करना |. यह सब देख कर मैं काफी भावुक हो गया था |

अंजिला के एक और बात से काफी प्रभावित हुआ | वो विदेशी लड़की होते हुए भी देशी अंदाज़ और सिमित साधनों में हम सब के लिए खाना बनाया और वह खाना काफी स्वादिष्ट था  | खाना खा कर सचमुच मज़ा आ गया |

आज बहुत दिनों बाद इतना स्वादिस्ट भोजन, वो भी अंजिला के हाथ का बना हुआ | सचमुच , हमलोग खाना खा कर तृप्त हो गए |

इन्ही सब बातों को सोचता हुआ रास्ता कट गया और मैं रघु काका की झोपडी के सामने अपनी रिक्शा को खड़ी  कर दी |

मैं रघु काका को आवाज़ लगाते  हुए अंदर घुसा तो मैं देख कर चौक गया …. रघु काका अपने बिस्तर पर बैठे थे  और उनके आँखों से आँसू बह रहे है |

मुझे देखते ही अँधेरे की तरफ अपना  मुँह घुमा ली ताकि मैं उनके आँसू ना देख सकूँ |

लेकिन मैं उनको रोता देख कर समझा कि उनके पैर में दर्द बढ़ गई होगी |  

इसलिए काका से पूछा … क्या आप के पैर का दर्द बढ़ गया है ?

वो अपनी आँसू पोछते हुए बोले ..नहीं बेटा,  मेरे पैरों में दर्द नहीं बढ़ा है बल्कि मेरे दिल का दर्द बढ़ गया है |

क्या मतलब…मैं आश्चर्य चकित होकर उनकी ओर देख कर पूछा |

अभी अभी अचानक मुझे मेरे बेटे की याद आ गयी है | वो पता नहीं कहाँ और किस हाल में होगा ?  

उसकी माँ जब हम सब को छोड़ कर चल बसी थी तो उस समय वो एक साल का ही था | मैं अपनी पूरी जवानी उसकी सेवा में लगा दिया ताकि वो पढ़ लिख कर एक नेक इंसान बन सके |

लोग कहते है कि औलाद बुढ़ापे का सहारा होता है,  मैंने भी उससे कुछ उम्मीद लगा ली थी |

उनकी बातों को सुन कर महसूस हुआ कि बच्चो के परवरिश के साथ साथ रिश्तो की अहमियत भी बढती जाती है और जब इंसान मजबूर होता है तो सिर्फ आँसू बहा कर मन को हल्का करने की कोशिश करता है |  

मैंने कहा …काका, आप दिल छोटा ना करे | वो जहाँ भी होगा सही सलामत होगा |

भगवान् इंसान को जीने के लिए कोई ना कोई इंतज़ाम कर ही देता है | देखिये ना, भगवान् ने ही आप के तकलीफ के समय मुझे आप का बेटा बना कर आप के पास भेज दिया है | और मेरे बुरे दिनों में आप का साथ  मुझे मिला गया था |

तुम ठीक कहते हो राजू….अब तो तुम्ही मेरे बेटे हो | उन्होंने अपने आँख के आँसू पोछते  हुए कहा और हम दोनों चादर तान कर सो गए |

सुबह तडके उठ गया ताकि रघु काका और अपने लिए खाना बना सकूँ और खाना खा कर अंजिला के पास समय पर पहुँच सकूँ |

रघु  काका भी ज़ल्दी ही उठ गए और उठते ही बोले…राजू , आज मुझे खिचड़ी खाने की इच्छा हो रही है | आज शनिवार है और हमलोग शनिवार को खिचड़ी खाते है |

ऐसी मान्यता है कि शनिवार को खिचड़ी खाने से ग्रह कट जाता है और हमलोग ग्रहों के चक्कर से छुटकारा पाते है |

आप ठीक कहते है काका …मेरी माँ भी गाँव में शनिवार को खिचड़ी ही बनाती  है | इसलिए आज मैं भी खिचड़ी ही बनाता हूँ …मैंने कहा |

मैं फुर्ती से घर के सभी काम निपटाते हुए खाना बनाया और फिर  रघु काका को खाना खिला कर मैं अंजिला के पास जाने को तैयार हो गया |

मैं अपनी रिक्शा की साफ -सफाई कर रहा था, तभी काका बोले …राजू बेटा, तुम मेरा एक और काम कर दो | मेरी टूटी रिक्शा को मरम्मत हेतु नन्हकू के दूकान में छोड़ आओ | टूटी रिक्शा घर के सामने खड़ी रखना अशुभ माना जाता है |

ठीक है काका , मैं शाम को जल्दी आ गया तो इस रिक्शे की  मरम्मत करवा दूंगा | यही रिक्शा तो मेरे बुरे दिनों में बखूबी मेरा साथ निभाया था |  

मैं काका से इजाजत लेकर अपनी रिक्शा को दौड़ाता हुआ मैडम के पास पहुँच गया |

मैडम चाय बना कर मेरा ही इंतज़ार कर रही थी | मैं जैसे ही कमरे में पहुँचा वो चाय का एक कप मुझे दी और दूसरा कप  खुद भी पीने लगी | लेकिन मैडम का चेहरा उतरा हुआ था और चिंतित नज़र आ रही थी |

मैंने तुरंत ही जिज्ञासा वश पूछ लिया …आप कुछ परेशान दिख रही है मैडम ?

हाँ राजू…आज कुछ ऐसा समाचार मिला है कि मुझे बहुत चिंता हो रही है |

ऐसी क्या मुसीबत आ गयी है …मैं चाय पीते हुए पूछ लिया |

आज ही ब्रिटिश दूतावास से एक एडवाइजरी जारी हुआ है, जिसमे बताया गया है कि चाइना में एक जानलेवा बीमारी “कोरोना” तेज़ी से फ़ैल रहा है और वहाँ  महामारी का रूप ले लिया है और इतना ही नहीं …यह इटली, स्पेन, अमेरिका और मेरे देश में भी फैलने लगा है |

हो सकता है यहाँ इंडिया में भी जल्द आ जाये | इसलिए यहाँ हम सब को सतर्क रहने और ब्रिटिश दूतावास से संपर्क बनाये रखने को कहा गया है |

 इतना सुनकर मुझे भी चिंता होने लगी और फिर मैंने पूछा …इसका इलाज भी तो होगा ?

नहीं राजू…यह एक नयी बीमारी है और अभी तक इसकी इलाज की दवा नहीं खोजी जा सकी है |

अगर यही हाल रहा तो किसी भी समय मेरे देश की सरकार  हम सभी स्टूडेंट को वापस बुला सकती है |

फिर मेरे रिसर्च का क्या होगा, इसी बात की चिंता है .. …अंजिला दुखी होकर बोल रही थी |

इसलिए सबसे पहले यहाँ से  BHU कैम्पस जायेगे, शायद वहाँ से कुछ और भी जानकारी मिल सके और क्या निर्देश ज़ारी हुआ है उसके बारे में जानकारी लेनी है |

ठीक है मैडम … चाय का कप  खाली करते हुए मैंने कहा और चलने के लिए उठ खड़ा हुआ |

अंजिला की अपने देश वापस जाने वाली बात को सुन कर मेरे अन्दर अजीब सी पीड़ा महसूस हुई,  फिर भी इस दर्द को अपने अंदर ही छुपा लिया |   

मैं दुखी मन से रिक्शा चला रहा था और अंजिला पीछे बैठी हुई  कुछ सोच रही थी |

तभी मैंने रिक्शा रोकते हुए मैडम से कहा …आप का कैम्पस आ गया |

मैडम रिक्शे से उतर कर एक ओर चल दी, जहाँ उनके सभी स्टूडेंट साथी इकट्ठा हुए थे | सभी लोग परेशान और दुखी दिख रहे थे |

उनलोगों ने आपस में कुछ बातें की और सभी लोग कैंटीन की तरफ चले गए | मैं वही रिक्शा लगा कर मैडम का इंतज़ार करने लगा  |

करीब एक घंटे के बाद अंजिला वापस आयी और रिक्शे पर बैठते हुए कहा …आज भी महंत जी से मिलने नहीं जा सकते है, इसलिए सीधा होटल ही चलो |

मैंने आश्चर्य से पूछा …आप मंदिर क्यों नहीं जा सकती ?

तब अंजिला ने समझाया ….हमलोगों के लिए निर्देश आया है कि मुझे  मास्क पहनना है, सैनिटाइजर का प्रयोग करना है | और विदेश से आये लोगों के द्वारा इस रोग के फैलने का खतरा है | इसलिए यहाँ के लोग विदेशी लोगों से दूर रहने की कोशिश करेंगे और शायद मुझे मंदिर में प्रवेश नहीं करने देंगे |

इसलिए होटल वापस चलना  मज़बूरी है |

मैं अपनी रिक्शा को उस दिशा में मोड़ दिया जो उनकी होटल की ओर जाता है |

रास्ते में एक दवा दूकान दिखी तो मैडम रिक्शा रोकने को कहा | उन्होंने दूकान से मास्क और सैनिटाइजर ख़रीदा और वापस रिक्शा पर बैठते हुए कहा …तुम्हारे लिए भी खरीदें है | अब तुम मास्क लगा कर ही बाहर निकलना और थोड़ी सावधानी बरतना |

ठीक है मैडम …मैंने कहा और उनका दिया हुआ सामान रख लिया और जल्द ही होटल पहुँच गए |

होटल पहुँच कर मैडम ने चाय बनाया और हम दोनों चाय पी रहे थे |

चाय समाप्त कर मैंने कहा …ठीक है मैडम , अब मैं चलता हूँ , उधर काका को भी देखना होगा |

अंजिला तुरंत आवाज़ देकर मुझे वापस बुलाया और अपने बैग से  निकाल कर कुछ पैसे दिए और कहा ..ज़रुरत की सभी चीजें खरीद कर घर में रख लो | रघु काका का ख्याल रखना |

मैं मैडम को धन्यवाद किया और वापस रघु काका के पास आ गया |

रघु काका मुझे देख कर कहा …अरे, इतनी ज़ल्दी वापस आ गए ?

हाँ काका , आज कोई काम नहीं हो सका और चाइना वाली बिमारी के बारे में उन्हें बता दिया |

मेरी बात सुन कर उन्होंने  कहा …यह तो बहुत चिंता वाली बात है | तुम भी सावधानी से बाहर जाया करो |

मैंने ने ज़बाब में कहा …आज समय मिल गया है तो आप की रिक्शा को ठीक करा कर ले आता हूँ |

रात को खाना खा कर मैं  सोने की कोशिश कर रहा था पर नींद नहीं आ रही थी | बार बार एक ही विचार मन में घूम रहे थे कि अगर इस बिमारी के कारण अंजिला वापस चली गयी तो हमारा काम सभी ठप्प हो जायेगा और रिक्शा  की क़िस्त जो अभी तक मैडम ही जमा कराती  थी, उसका क्या होगा ?

करवट बदलते रात गुज़र गयी और सुबह उठा तो मन बोझिल लग रहा था | मुझे अंजिला की याद आ रही थी और उसे अभी देखने की इच्छा सता रही थी |

मैं जल्दी जल्दी घर के सभी काम निपटा लिया और रघु काका को खाना खिला कर होटल की ओर रवाना हो गया |

मैं होटल के ऊपर मंजिल में अंजिला के पास जा ही रहा था कि रिसेप्शनिस्ट ( receptionist ) ने मुझे रोक दिया और कहा कि यह निर्देश आया है कि मैडम अपने कमरे से बाहर नहीं जाएँगी और किसी से भी नहीं मिलेंगी |

हाँ, अगर बहुत ज़रूरी है तो फ़ोन से बात कर सकते है |

मैंने  अंजिला को फ़ोन लगाया तो उधर से फ़ोन से हेल्लो की आवाज़ आयी |

मैंने पूछा …मैडम आप कैसी है ? ..तो उधर से ज़बाब के बदले उनकी  सिसकियों की आवाज़ आ रही थी….. (क्रमशः)

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2 replies

  1. Kahani bahut badhiya.

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