
आज जब सुबह उठा तो मेरे दिल और दिमाग में एक द्वंद चल रहा था ..क्योकि रघु काका की बात याद आ रही थी … हमें अपने औकात में रहना चाहिए |
जब उनसे आशीर्वाद लेने गया था तो उनका मुझसे गुस्सा होना साफ़ झलक रहा था और उन्होंने ठीक से बात भी नहीं की थी | पहले वो मुझे अपनी बेटे की तरह मानते थे | लेकिन कुछ ग़लतफ़हमी होने के कारण वे अब तक नाराज़ है |
यह सही है कि मैं अंजिला की तरफ सचमुच आकर्षित हो रहा हूँ | मुझे तो उसे देखे बिना चैन भी नहीं आता है, और ऊपर से वो मुझपर हमेशा कुछ ना कुछ एहसान करते रहती है |
कुछ दिनों से मुझे महसूस हो रहा है कि वो भी मुझ में दिलचस्पी लेने लगी है | हर बात में हँस कर जबाब देना और मेरी गलतियों पर भी गुस्सा नहीं करना ...यह प्यार नहीं तो और क्या है ?
लेकिन यह भी सच है कि हम दोनों का कोई मेल ही नहीं है ..एक तरफ अंजिला, जो पढ़ी लिखी खुबसूरत और जवान है दूसरी तरफ मैं, एक गरीब और साधारण रिक्शावाला | और इतना ही नहीं मैं तो शादी शुदा भी हूँ , यह बात उससे छिपा कर रखी है | काका का गुस्सा वाजिब है |
आज मैं मैडम के पास भी नहीं गया, शायद वो मेरा इंतज़ार कर रही होगी | परन्तु मेरी यह इच्छा हो रही थी कि रघु काका से मिल कर बात करूँ और उनकी नाराज़गी को दूर करने का प्रयास करूँ |
ऐसा सोच कर मैंने अपनी रिक्शा उठाई और काका के झोपडी की ओर चल दिया |
काका, आप कहाँ हो ? मैंने आवाज़ लगाई तो उन्होंने कहा …अंदर चले आओ |
मैं अंदर जाकर रघु काका के पैर छुए, और देखा कि काका खाना बना रहे है |

मुझे देख कर आश्चर्य से पूछा…तुम इस वक़्त यहाँ ? उस चुड़ैल के पास नहीं गए ?
मुझे उनकी ऐसी बात सुनकर अच्छा नहीं लगा और मैंने तुरंत विरोध में बोला …काका , वो तो नेक दिल इंसान है ,वो हमेशा मेरी मदद करती है और आप जैसा सोच रहे है, वो सच नहीं है | मैं अपनी औकात समझता हूँ |
इस पर रघु काका बोले ..जब दूध से मुँह जल जाता है तो लोग मट्ठा भी फुक फुक कर पीते है |
इसका क्या मतलब ?…मैंने रघु काका की ओर देखते हुए पूछा |
बेटे, मेरे साथ ऐसी एक घटना घट चुकी है, इसी लिए कह रहा हूँ कि अभी से संभल जाओ और उस औरत से दूर रहो वर्ना तुम्हे ज़िन्दगी भर पछताना पड़ेगा …बोलते बोलते, रघु काका की आँखे डबडबा आयी और वे उदास हो गए |
लगता है काका, मैंने आपकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है शायद | किसी ने आप को धोखा दिया है क्या ? …अपनी कहानी मुझे बताने का कष्ट करें, शायद उसे बता कर आप का दिल हल्का हो जाए |
काका ने कुछ देर सोचा और फिर कहा …चलो, पहले खाना खाते है फिर बातें करेंगे, यह कह कर जो उन्होंने अपने लिए चार रोटियां बनाई थी उसमे से दो रोटी मुझे भी खाने को दिया और दो खुद लेकर खाने बैठ गए |
खाना खाते हुए उन्होंने बातों का सिलसिला शुरू किया और बताया ….रूप कुमार मेरा बेटा है | वह तुम्हारे उम्र का ही है ...बहुत ही सुन्दर और सुशील |
उसकी माँ उसे बचपन में ही छोड़ कर चली गई | उसे टी बी की बीमारी हुई थी और मैं उसे नहीं बचा सका | मेरी एक पुश्तैनी मकान भी थी जो उसकी बीमारी के कारण बेचनी पड़ी | काफी पैसा खर्च किया था पर कहते है ना कि ..भगवान् की मर्ज़ी के आगे इंसान का वश नहीं चलता है |
मैं रूप कुमार को माँ के बिना ही बचपन से पाल -पोश कर बड़ा किया था | उसके लिए वो सब काम करता था जो माँ अपने बेटे के लिए करती है | वो भी मुझे बहुत मानता था और यहीं BHU यूनिवर्सिटी में इंजिनीरिंग कॉलेज में पढाई कर रहा था |
वो पढने में तो बहुत होशियार था पर एक विदेश से आयी स्टूडेंट लड़की के चक्कर में पड़ गया और इसका परिणाम यह हुआ कि उस साल फेल हो गया | मुझे बहुत गुस्सा आया और बहुत दुःख भी हुआ था |
एक तो उसकी माँ की मौत और दूसरा मकान भी बिक गया था और रहा सहा कसर इस लड़के ने पूरी कर दी मेरा सपना उसे इंजिनियर बनाने का था, वो सपना टूटता नज़र आ रहा था |

मैंने गुस्से में उस लड़की को बहुत भला बुरा कहा और बेटे से दूर रहने की हिदायत भी दी थी | लेकिन उस लड़की ने पता नहीं क्या जादू किया कि दोनों की पढाई पूरी होते ही रूप कुमार भी उसी के संग इंग्लैंड चला गया और मैं अकेला उसका इंतज़ार आज तक कर रहा हूँ |
पेट की भूख ऐसी कि इस उम्र में भी रिक्शा चलाना पड़ रहा है | इसलिए किसी भी विदेशी को देखता हूँ तो मुझे उससे नफरत हो जाती है | मैंने देखा, उनकी आँखों से आँसू छलक आये थे |
इसी मौके पर अपनी हकीकत बता कर हमदोनो के बीच हुई ग़लतफ़हमी दूर करने का मुझे ख्याल आया और जैसे ही बात शुरू करने वाला ही था तभी मेरे फ़ोन की घंटी बजी |
मैंने देखा तो वो अंजिला का फ़ोन था …वो मुझे ज़ल्दी आने को कह रही थी |
मैं अभी आ रहा हूँ मैडम … बोल कर मैंने फ़ोन काट दिया और चलने के लिए उठ खड़ा हुआ |
अच्छा रघु काका, मैं आप से बाद में मिलता हूँ | अभी मुझे जाना होगा …मैंने इतना कहा और रिक्शा पर बैठ कर चल दिया |
जैसे ही मैडम के कमरे का बेल बजाया तो मुझे देखते ही अंजिला बोली …तुन्हारी तबियत तो ठीक है ना राजू ? मुझे तुम्हारे लिए चिंता हो रही थी |
मैं बिलकुल ठीक हूँ मैडम….मैंने उनके हाथो से चाय लेते हुआ कहा |
तो फिर इतनी देर कहाँ थे तुम …मैडम ने आश्चर्य से पूछा |
मैं रामू काका के पास गया था, इसी कारण आने देर हो गई |
ठीक है राजू ! आज हमलोग अभी BHU कैम्पस जायेंगे | वहाँ मेरे साथ कुछ स्टूडेंट्स भी आये हुए है, उनके मिलना है | उसके बाद आज शाम को गंगा आरती देखने चलेंगे | मुझे बड़ी इच्छा है देखने की |
ठीक है मैडम ..आप तैयार होकर बाहर आइये मैं तब तक रिक्शा की बैटरी चार्ज कराता हूँ… .इतना बोलकर मैं कमरे से बाहर आ गया |
थोड़ी देर में मैडम लाल ड्रेस पहने मेरे रिक्शे के पास आयीं | उनको देख कर मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया … . आप इस ड्रेस में गजब की सुन्दर लग रही है |
थैंक यू राजू , बोलते हुए वो रिक्शे पर बैठ गई |
मैं BHU कैम्पस में जैसे ही पहुँचा तो मैडम के बहुत सारे दोस्त लोग आ गए और वो सभी लोग मिलकर वहाँ की कैंटीन की ओर चल दिए | मैं वहीँ अपने रिक्शे पर बैठा इंतज़ार करता रहा |
करीब शाम के पांच बजे मैडम वापस आयी और रिक्शे में बैठते हुए कहा …चलो राजू, अभी गंगा घाट चलते है | वहाँ शाम को थोड़ी मस्ती करेंगे और फिर गंगा आरती भी देखेंगे |

अपने दोस्तों से मिल कर अंजिला बहुत खुश नज़र आ रही थी | मैं सीधा गंगा घाट पहुँचा | अभी यहाँ भीड़ नहीं थी बल्कि पूर्ण शांति थी | गंगा नदी का पानी अपनी गति से बह रहा था और शाम के डूबता सूरज की लालिमा आकाश में और उसका प्रतिबिब नदी के पानी में गजब की खूबसूरती बिखेर रहे थे |
गंगा घाट पर चुपचाप हम दोनों बैठ कर प्रकृति के नजारों का अवलोकन कर रहे थे |
इस तरह शाम के छह बज गए और छह बजते ही संख नाद सुनाई पड़ा और साथ ही घंटी और घरियाल की आवाज़ से सारा वातावरण गूंजने लगा |
और देखते ही देखते सैंकड़ो लोग हाथों में दीप वाली आरती लिए आरती गाने लगे और साथ ही साथ गंगा की आरती भी शुरू हो गई |
वहाँ उपस्थित सारे लोग हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और आरती गाने में साथ देने लगे |
हमलोग भी खड़े होकर हाथ जोड़ लिए और उस भीड़ का हिस्सा बन गए | अंजिला को यह सब देख कर बहुत ख़ुशी हो रही थी |
ऐसा नज़ारा लग रहा था जैसे गंगा के पानी में सैंकड़ो दीप जल रहे हों और वहाँ की छटा देखते ही बन रही थी |
जैसा गंगा आरती के बारे में सुन रखा था आज वैसा ही नज़ारा दिख रहा था | उस भीड़ में अंजिला ने मेरा हाथ कस कर पकड़ रखा था और गंगा आरती के दृश्य को देख कर आनंदित हो रही थी |
जब गंगा – आरती ख़तम हुआ तो हमलोगों ने गंगा को प्रणाम किया और फिर वापस चलने लगे तभी घाट के बाहर ही ठेले पर आइसक्रीम बिक रहा था, जिसे देख कर अंजिला ने खाने की जिद करने लगी |
मैं उसका मन रखने के लिए दो आइसक्रीम लेकर आया और हमलोग वही पास में बैठ कर कुछ देर और यहाँ की सुन्दरता के साथ साथ आइसक्रीम का भी मज़ा ले रहे थे… (क्रमशः )

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It has been a long time since I have read anything in Hindi. I was happy that I could read at the speed of earlier days. Interesting story. I have yet to read the next part in the given link. Well written.
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Thank you very much.
I hope, the story will be worth reading.
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Beautiful photograph.
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Thank you so much.
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