# रिक्शावाला की अजब कहानी # ….2

अंजिला ने पता नहीं क्या जादू कर रखा था कि हमेशा मैं सिर्फ उसके बारे में ही सोचता रहता था | वह मुझे राजेंदर नहीं बल्कि “राजू”  कह कर बुलाती थी, जिसे सुनकर मुझे अपनापन का एहसास होता था |

 चाहे बाबा भोले नाथ का मंदिर जाना हो या कही और ….. मेरे रिक्शा में ही जाती थी |  सचमुच मेम  साहब थी बहुत दिलदार | जितना भी पैसे मांगता वो कभी मना नहीं करती | अपनी ज़िन्दगी तो मस्ती  से गुज़र रही थी |

मैं रात में  रैन बसेरा में बैठा रोटी खाते हुए इन्ही सब  ख्यालों में खोया हुआ था, तभी रघु काका की कड़क आवाज़ ने मुझे ख्यालों की दुनिया से हकीकत की दुनिया में ला दिया | 

मुझे बिना किसी बात के मुस्कुराता देख समझ गए कि मेरे मन में अंजिला का ही ख्याल चल रहा है |

वैसे मैं रघु काका से कुछ भी नहीं छुपाता था, क्योकि वो मेरे पिता तुल्य थे और उन्होंने बुरे वक़्त में मुझे संभाला था | उनका एहसान है मेरे ऊपर |

रामू काका ने मुझसे रिक्शा की चाभी मांगी ताकि वे अपनी रात की ड्यूटी पर जा सके |

मैंने  खाने पर से उठ कर अपना  हाथ धोया और फूलपैंट  के पॉकेट से चाभी निकाल  कर उनको  दी |

तभी वो बोल पड़े ….राजू , मैं कुछ दिनों से देख रहा हूँ कि तुम्हारे बात व्यवहार बदल गए है और तुम अपनी लुगाई और घर को भूलते जा रहे हो |

उस अंग्रेजी मेम के पीछे तुम दीवाना हो गए हो | यह ठीक नहीं है |

वो तो आज न कल अपने देश वापस चली जाएगी और ऐसी वैसी कोई बात हो गई तो तुम जेल की चक्की पिसने के लिए तैयार रहना |

ये विदेशी लोग सिर्फ अपना मतलब साधते है | वैसे तुम बच्चे नहीं हो अपना भला बुरा खुद समझ सकते हो | इतना कह कर वो रिक्शा को लेकर चल दिए |

रघु काका ठीक ही कह रहे है, मुझे अपनी  औकात में रहना  चाहिए | मैं सिर्फ एक रिक्शा चालक हूँ , जो भाड़ा लेकर अपने सवारी को उसके गंतव्य स्थान तक पहुँचा देता है और अपना तो ठिकाना भी यही रैन बसेरा है .|.

ऐसा सोच कर मैं मन ही मन मुस्कुराया और फिर चादर तान  कर नींद  की आगोश में चला गया |

सुबह उठा तो देखा रिक्शा सामने ही खड़ा है | शायद रघु काका रात की ड्यूटी कर रिक्शा छोड़ कर बिना बताये ही चले गए है | मुझे नींद से जगाना उचित नहीं समझा होगा |

मैं तैयार होकर अपना रिक्शा लिया और मैडम के पास पहुँच  गया | मैडम पहले से ही तैयार बैठी मेरा ही इंतज़ार कर रही थी |

जैसे ही मैं उनके  पास पहुँचा, उन्होंने अजीब सी इच्छा ज़ाहिर की |

उन्होंने कहा  मैं आज दोपहर तक अपने काम निपटा लुंगी और फिर शाम को हमलोग बनारस घूमेंगे | सुना है शाम के वक़्त वाराणसी के घाटों एवं मंदिरों की सुन्दरता देखने लायक होती है |

मैं भी चाहती हूँ कि शाम के वक़्त गंगा नदी के घाट की सुन्दरता का आनंद लूँ |

अंजिला अपनी शोध का काम के सिलसिले में बाबा विश्वनाथ मंदिर, मेरे रिक्शे में आयी और शाम तक  अपने कामो में उलझी रही | मैं भी उसी के पास बैठ कर उसे थोड़ी बहुत मदद करता रहा |

शाम हो चली थी और गर्मी के मौसम में गंगा किनारे की शाम बड़ी प्यारी होती है | इसलिए

हमलोग  काम समाप्त कर गंगा घाट पर सैर करने के लिए पहुँच गए |

कुछ देर तो हमलोग सीढियों पर बैठ कर गंगा नदी और उसके आस पास के खुबसूरत वातावरण को निहारते रहे | 

कुछ लोग गंगा नदी में नौका विहार भी कर रहे थे | उनको देख कर  अंजिला ने भी नौका विहार करने की इच्छा प्रकट की |

हमलोग एक नौका वाले  के पास पहुंचे और एक नौका भाड़े पर लिया और नौका विहार को निकल पड़े |

सूर्यास्त का समय था सूरज बस डूबने ही वाला था | डूबते सूरज की लालिमा और उसकी परछाई गंगा नदी के जल में प्रतिबिबित हो रही थी | सचमुच  बड़ा ही मनभावन दृश्य प्रस्तुत कर रहा था | ऐसा सुन्दर दृश्य कि बस निहारता ही रहूँ |

इस तरह नौका विहार करते एक घंटा कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला और फिर हमलोग वापस उसी जगह पर आ गए |

कुछ लोग गंगा नदी में स्नान कर रहे थे, जिसे देख कर अंजिला ने भी गंगा में डुबकी लगाने की इच्छा जताई |

गर्मी का मौसम हो और शाम  के समय इस गंगा नदी में डुबकी  लगाने का मजा ही कुछ और है | फिर भी मैंने अंजिला से हिदायत भरी  लफ्जों में  कहा…इस नदी का पानी बहुत गहरा है, यहाँ डूबने का खतरा है |

नहीं नहीं ..मुझे तो तैरना आता है, इसलिए तुम चिंता मत करो …अंजिला ने मुझे आश्वस्त करने के लिए कहा | वो बिलकुल बच्चो जैसी हरकत कर रही थी | शायद यहाँ की खूबसूरती को देख कर अपने को रोक नहीं पा रही थी |

मैं आगे कुछ नहीं कहा,  सिर्फ भगवान्  से प्रार्थना करने लगा कि वो सुरक्षित स्नान कर ले |

उसने अपने सामान  मुझे सौप कर स्वयं स्नान करने हेतु पानी में कूद पड़ी | उसे देख कर लग रहा था कि उसे तैरना आता है | वह पानी में मजे लेकर गोते लगा रही थी |

कुछ देर तक तो वह मस्ती करती रही | उसे देख कर लग रहा था कि उसका मन पानी से निलकने का नहीं हो रहा है | काफी समय बीत जाने के बाद अंत में मैंने ही आवाज़ लगाईं …. मेम साहब  वापस आ जाइये | अब अँधेरा होने वाला है |

पानी से ही उसने चिल्ला के कहा ..बस एक बार और डुबकी लगा लूँ , फिर आती हूँ |

और उसने एक और दुबकी लगाईं | परन्तु कुछ देर तक मैं उसके डुबकी से ऊपर आने का इंतज़ार करता रहा | तभी  घाट पर उपस्थित सभी लोग जोर जोर से चिल्लाने लगे …,अरे, कोई उसे बचाओ…  देखो देखो वो औरत नदी में डूब रही है |

तब मुझे भी महसूस हुआ कि अंजिला तो पानी में डूब रही है |

उसे डूबता हुए मैंने जैसे ही देखा, मैं एक पल भी नहीं गवांया और पानी में छलांग लगा दिया | यह तो संयोग था कि मुझे तैरना आता था |

मैं गोता लगाते  हुए उसके पास जल्दी ज़ल्दी पहुँच गया | शायद उसका पैर  किसी नाव  की रस्सी से फंस  गया था, और कोशिश करने के बावजूद उससे बाहर नहीं निकल पा रही थी |

मैंने उसके फंसे हुए पैर को किसी तरह  आजाद कराया और धीरे धीरे खीच कर किनारे पर लेकर आया | लेकिन अंजिला बेहोश हो चुकी थी, शायद काफी  पानी पेट में चला गया था |

वहीँ  घाट पर उसे लिटाया और पेट के पानी को निकालने का प्रयास करने लगा | वहाँ पर कुछ उपस्थित लोग तुरंत हॉस्पिटल ले जाने की सलाह देने लगे |

मैं भी काफी घबरा गया था | लेकिन पेट में गए पानी को किसी तरह निकालने  में सफल हो गया | मैं सोच रहा था कि इसे तुरंत किसी हॉस्पिटल में ले जाते है,

तभी भगवान् की कृपा से उसने अपनी आँखे खोल दी,  शायद उसे होश आ गया था |

मैं जल्दी से कहा …  आपको हॉस्पिटल ले चलता हूँ |  लेकिन उसने धीरे से कहा….नहीं. अब मैं ठीक हूँ |  तुमने मेरी जान बचाई, शुक्रिया |

मैंने  भी  चैन की सांस ली कि चलो अब अंजिला ठीक है |  

मैं उसे अपने रिक्शे पर बिठाया  और सीधे उसे उसके  होटल ले आया |

उसने अपने कपडे बदले और मुझसे कहा …मुझे ठंड का अनुभव हो रहा है | मैंने सोचा कि  गरम गरम कॉफ़ी पिलाना चाहिए |

कॉफ़ी पीने  के थोड़ी देर बाद वह कुछ ठीक महसूस कर रही थी |

घडी में देखा तो रात के नौ बज चुके थे और मुझे ख्याल आया कि रिक्शा को रघु काका को जमा कराने के लिए अपने रेन बसेरा में जाना होगा |

मैं ने अंजिला से वापस जाने की इजाजत मांगी , परन्तु  उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने पास रुकने का आग्रह करने लगी ….. (क्रमशः)

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