Good afternoon friends,

यह तो सार्वजनिक सत्य है कि आदमी जब पैदा होता है, तो वह कभी बचपन, कभी जवानी और उसी तरह बुढ़ापा में प्रवेश करता है | अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम इसे कैसे अनुभव करें | प्रकृति तो अपना काम करेगी ही | हमारे चाहने से कुछ नहीं होता है |
इसलिए जिस प्रकार हमने बचपन को उल्लासपूर्ण बनाया, जवानी को प्रेमपूर्ण बनाया, उसी प्रकार बुढ़ापे को भी सहज रूप से स्वीकार करते हुए आनंदपूर्ण बनाने का प्रयास करना चाहिए | हाँ, हम दुखी तब होंगे जब हम बुढ़ापे का प्रतिरोध करेंगे और सहज रूप से स्वीकार नहीं करेंगे |
यह सच है कि बुढ़ापे का विरोध करने से, या आत्मग्लानि के साथ स्वीकार करने से हमें अधिक पीड़ा महसूस होती है | लोग तो कहते है कि बुढ़ापा को महसूस करना हमारी मानसिकता पर निर्भर करता है | हमने तो 80 साल के जवान देखें…
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