#शांत  मन से प्रार्थना करें#

हम सभी को प्रार्थना की ज़रूरत है , हमे सच्चे मन से प्रार्थना करनी चाहिए | इससे हमारा चित शांत होता है और इससे शारीरिक और मानसिक लाभ भी प्राप्त होता है | इसलिए रोज़ कुछ समय  निकाल कर प्रभु के  समक्ष शांत  मन से प्रार्थना करना चाहिए |

वृद्धावस्था में आनंदित जीवन जीने के लिए एक ही सरल उपाय है और वह है अपने द्वारा किए गए कर्मो का विश्लेषण करना  और अपने इष्टदेव से प्रार्थना करना |

वैसे प्रार्थना करना हम बचपन से ही आरंभ कर देते  है | जब स्कूल जाते है तो क्लास शुरू होने से पहले प्रार्थना में भाग लेते है |

हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए ।
लीजिये हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक वीर व्रत धारी बनें ।
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिये…॥

जब हम प्रॉफेश्नल लाइफ में आते  है तब भी हमें प्रार्थना की ज़रूरत पड़ती है…

हम को मन की शक्ति देना,
मन विजय करें ।
दूसरों की जय से पहले,
खुद को जय करें ।

और जब बुढ़ापा आता है तो हम अपने ईश्वर से प्रार्थना तो  करते ही है | इस समय प्रार्थना की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है / हम कुछ मंत्रों का जाप करते है | इससे हमारे मन को शांति मिलती है |

सच में प्रार्थना हमारी  आत्मा की पुकार होती है। सच तो यह है कि प्रार्थना तब होती है जब हम  कृतज्ञता महसूस कर रहे होते हैं या हम  अत्यंत निस्सहाय या निर्बल महसूस कर रहे होते हैं। इन दोनों ही परिस्थितियों में हमे  प्रार्थना की ज़रूरत पड़ती है |

प्रार्थना का सही अर्थ

प्रार्थना का अर्थ यह नहीं होता है कि सिर्फ बैठकर कुछ मंत्रों का उच्चारण किया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि हम  निर्मल, शांत और ध्यान अवस्था में हों। इसलिए वैदिक पद्धति में प्रार्थना के पहले ध्यान लगाना अनिवार्य होता है और प्रार्थना के उपरांत भी ध्यान लगान होता है। जब मन एकाग्र होता है तो प्रार्थना और भी शक्तिशाली हो जाती है। और इसके परिणाम भी बहुत अच्छे होते है |


जब आप प्रार्थना करते हैं तो उसमें आपको पूर्ण रूप से निमग्न होना होता है। यदि मन पहले से कहीं और भटक रहा है तो फिर वहां सच्ची प्रार्थना नहीं हो सकती है।

मेरी प्रार्थना है —

 हे ईश्वर तू महान है | तू किसी को नज़र नहीं आता लेकिन तेरा महानता सब को नज़र आता है | मेरे द्वारा कर्म के विश्लेषण में चूक हो सकती है परंतु तेरे विश्लेषण में कभी चूक नहीं हो सकता |

तेरा यह प्रकृति मेरे साथ कुछ भी करे मुझे सब स्वीकार है | हे ईश्वर, तू विश्वास बन कर मेरे अंदर विचरण कर |  मुझे पता है  मेरे अंत समय में  साथ वाले लोग हमारा साथ  छोड़ देने वाले है | अगर ये  सभी साथ न भी छोड़े तो यह शरीर साथ छोड़ देगा |

तू किसी को नज़र नहीं आता परंतु शक्ति बन कर सबके अंदर संचार हो रहा है | तू मुझे हौसला दे जब तक मैं जीऊँ अपने शरीर को स्वस्थ रखते हुये तेरा भक्ति करूँ |

तू मुझे शक्ति दे कि इस शरीर को जीवन भर आनंदित हो कर जी सकूँ |

हे ईश्वर ,तू मेरे इस अंत समय में धैर्य और मन में शांति बनाए रखना |

जी हाँ, प्रार्थना सच्चे दिल से करें। लेकिन सच तो यह है कि आज के इस व्यस्त जीवन में हम अपने रोज़मर्रा की  कामों से अपना बचा हुआ समय ही प्रार्थना को दे पाते हैं |  जब आपके पास और कोई काम नहीं होता, कोई मेहमान नावाजी नहीं करनी होती है या किसी पार्टी में नहीं जाना होता है, तब फिर आप दिव्यता के पास जाते हो। ऐसा दिया गया समय बढ़िया नहीं है।

दिव्यता के लिए समय निकालें

आप अपना सर्वश्रेष्ठ समय दिव्यता के लिए निकालें तो निश्चय ही आपको उसका उचित प्रतिफल मिलेगा। यदि आपकी प्रार्थना नहीं सुनी जाती तो वह इसलिए क्योंकि आपने अपना सर्वश्रेष्ठ समय कभी भी नहीं दिया।

अंत में मैं यही कहूँगा कि  ईश्वर से अपने दिल के मुताबिक प्रार्थना की झड़ी लगा दें | ऐसा प्रार्थना कि ईश्वर करुणा से भर जाए और वह सामने उपस्थित होकर  कहे कि — हे मानव, मैं तेरे साथ हूँ |

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Categories: motivational

7 replies

  1. True prayer is not just seeking God’s blessing, but rather listening to Him.

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  2. Sundar Varnan.Parthan Karo Man Santi Karo.

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  3. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Good afternoon friends,

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