
बात उन दिनों की है जब मुझे पहली बार कोलकाता में पोस्टिंग मिली थी | साल २००४ में मैं कोलकाता के एक शाखा में ज्वाइन किया था | मुझे मेट्रो शहर में रहने का कोई अनुभव नहीं था, इसलिए मैं घबरा रहा था |
लेकिन संयोग से मुझे मेरे एक पुराने मित्र मिल गए | वो मेरी ही शाखा में कार्यरत थे | जब वे लंबी छुट्टी के बाद वापस शाखा में आए तो मुझे शाखा में देख कर आश्चर्यचकित रह गए | फिर क्या था, मेरे वे मित्र मिश्रा जी अपने घर के आस पास ही मेरे भी रहने के लिए भाड़े का मकान का इंतजाम कर दिया |
मुझे उनके आस पास रहने में अनेकों फायदे थे | मैं तो अकेला ही रहता था, परिवार को अभी शिफ्ट नहीं किया था | दरअसल हम लोग बांसद्रोणी इलाके में रहते थे जहां और भी बैंकर लोग भी रहते थे | वहाँ से बैंक शाखा आने जाने के बहुत सारे साधन उपलब्ध थे | अगर आराम से सफर करना है तो टैक्सी से ऑफिस जा सकते थे | या फिर बस और मेट्रो रेल की भी सुविधा थी |
लेकिन मुझे मेट्रो का सफर सबसे आरामदायक लगता था | हालांकि भीड़ बहुत होती थी , लेकिन धीरे धीरे भीड़ में धक्का खाने की आदत सी पड़ गयी थी, वरना बस का सफर तो और भी कष्टदायक हुआ करता था |
मेट्रो में सफर के लिए टिकट काउंटर पर लंबी लाइन लगती थी | मिश्रा जी भी साथ ही ऑफिस आते थे | जो पहले स्टेशन पहुँच जाता वह दोनों के टिकट ले लेता और इस तरह लंबी लाइन से निजात के साथ समय की भी बचत हो जाती थी | कभी कभी तो टिकट लाइन में खड़े खड़े ही एक दो मेट्रो ट्रेन निकल जाती थी और हम टिकट लाइन में खड़े खड़े देखते रह जाते थे |

सचमुच ऑफिस आने जाने का सफर, ऑफिस में काम करने से ज्यादा कठिन लगता था | लेकिन मेट्रो के भीड़ भाड़ वाली सफर का एक अलग ही मज़ा था | एक तो AC कोच और फिर अंडरग्राउंड होने की वजह से pollution free सफर होता था |
एक दिन की बात है, मैं टिकट लाइन में मेट्रो ट्रेन टिकट के लिए खड़ा था | तभी भीड़ में मिश्रा जी आते दिख गए | उन्होंने मुझे टिकट लाइन में खड़े देख कर हाथ के इशारे से कहा – मेरा भी टिकट ले लीजिये |
मैं दो व्यक्ति का एक कॉमन टिकट ले लिए | दरअसल यह एक मगनेटिक स्ट्रिप होता है, जिसे गेट के मशीन में डालना होता था जिससे उसका हैंडल खुल जाता था | …
जब मेट्रो ट्रेन प्लैटफ़ार्म पर रुकती तो एक भीड़ का रेला होता और जिसे जहां मौका मिलता उस कोच में घुस जाता, क्योंकि एक मिनट का ही स्टॉप होता था | संयोग से हम और मिश्रा जी भीड़ के कारण अलग अलग कोच में चढ़ गए | सोचा कि उतरते वक़्त सेंट्रल प्लैटफ़ार्म में उतर कर साथ हो लेंगे | हालांकि दोनों का टिकट मेरे पास ही थी |
ऑफिस का टाइम होने की वजह से मेट्रो में भीड़ अधिक थी | परंतु संयोग से मुझे बैठने की जगह मिल गई | मन बड़ा खुश हुआ | चलो आराम से सफर कटेगी | AC की ठंडी हवा गर्मी से राहत दे रही थी |

मैं आंखे बंद किए बीते दिनों की कुछ पुरानी यादों में खो गया | हमारा destination का स्टेशन आ चुका था , मेट्रो कोच में announce भी हो रहा था , सेंट्रल स्टेशन आ चुका है | लेकिन AC की ठंडी हवा में न जाने कैसे मुझे नींद लग गई | मेरी ट्रेन गंतव्य स्टेशन पर रुकी और फिर आगे बढ़ चुकी थी और मैं बेचारा सोता रहा | इस तरह करीब चार स्टेशन आगे जा चुका था, तभी अचानक मैं चौक कर जाग उठा | मैं बगल वाले यात्री से पूछा – सेंट्रल स्टेशन अब कितनी दूर है |
मेरी बात सुनकर वे मुझे घूरने लगे और फिर कहा — वो तो कब का पीछे छूट गया है | मैं अचानक उनकी बातें सुन कर घबरा उठा , क्योंकि मिश्रा जी का टिकट तो मेरे पास था और वे प्लैटफ़ार्म पर उतर कर मुझे ढूंढ रहे होंगे |
मैं अगले स्टेशन पर उतर कर वापसी ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था |
इधर मिश्रा जी सेंट्रल प्लैटफ़ार्म पर उतर कर मुझे ढूंढते रहे | वहाँ भीड़ काफी होती थी | कुछ देर ढूँढने के बाद जब मैं नहीं मिला, तो बेचारे ने सोचा कि मैं भीड़ के साथ निकल चुका हूँ | उन दिनों में मोबाइल का दर्शन नहीं हुआ था | उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था | लेकिन कर भी क्या सकते थे |
मिश्रा जी दुखी मन से बिना टिकट यात्रा का फ़ाइन भरा , तब जाकर वे बाहर निकल पाये |
मैं वापस अपनी शाखा में आधा घंटा विलंब से पहुंचा | तभी मिश्रा जी से सामना हुआ, जो गुस्से से अपनी आँखें लाल किए मुझे घूर रहे थे | मुझे अपराध बोध हो रहा था | लेकिन जब हकीकत बताई तो मिश्रा जी और सभी स्टाफ मेरी बेवकूफी पर खूब हंसें ….
जो मुझ पर गुजर रही थी, किस ने उसे जाना था
अपनी ही मुसीबत थी , अपना ही फसाना था

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Categories: मेरे संस्मरण
मजेदार संस्मरण।
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बहुत बहुत धन्यवाद |
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It’s nice to be retired, eh?! My work commute was a simple two-kilometer trip by personal car, with very little road traffic. I can’t imagine what you went through, though you clearly worked it out!
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Yes Sir,
It was a horrible experience during my office commute in Kolkata.
Sometimes we used to get stuck in the metro due to technical
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An interesting memoir👌👌👌
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Thank you Sir ji.
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Mujhe bhi Kolkata ki yaad aati hai.Saat saal Raha hun Kolkata me.Magar Odia hote bhi Gujarat me rahata hun Sab kuchh uppar Walla ka haath me.Lekha bahut badhiya.
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Absolutely correct dear.
Our destination is decided by Upar wala.
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Good afternoon friends,
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