
कभी कभी संघर्ष भरी जिंदगी से हम ऊब जाते है | ऐसे में बचपन की बिंदास ज़िंदगी याद आने लगती है और तब चेहरे पर मधुर मुस्कान बिखर जाती है |
सच, मेरे मन में एक ख्याल आता है कि क्यों न सारे गमों पर पर्दा डाल दिया जाये, और बचपन के उन लम्हों को फिर से जिया जाये | चलो , इस खूबसूरत ज़िंदगी को बचपन की चासनी में डाल उसका आनंद लिया जाये —
ज़िंदगी फिर से जिया जाये
चले कहाँ से थे ,
कहाँ पहुँच गए हम
देखते ही देखते
क्या हो गए हम |
सोचते है आज
क्या वही “विजय” है हम
जो कभी बचपन से जवानी तक,
खुशियाँ ही खुशियाँ बाटते थे हम ..
आज उन लम्हों की चाह में,
ज़िन्दगी गुज़र रही है ,
कब आया जवानी , कब ढह गया ..
महसूस भी हुआ तब,
जब टाइम अपना निकल गया |
सोचता हूँ …
क्यों ना ऐसा किया जाए
दोस्तों की महफ़िल फिर से
जवां किया जाए, और
दुनिया के सारे ग़मों पर डाल परदा
बचपन की शरारतें फिर किया जाए
हाँ , मस्ती भरी ज़िन्दगी फिर जिया जाए ,
( विजय वर्मा )

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Categories: kavita
अच्छी कविता।
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर।
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बहुत बहुत धन्यवाद |
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Beautifully said
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Thank you so much, dear.
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Bachpan ke din❤️
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बचपन के दिन सुहाने दिन।
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Koi lauta de mere beete hue din…
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बहुत सुंदर कहा है , सर |
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Bachpan ki Yaadein hamesha accha hota hai.Acchi kabita.
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बचपन मे बिताए पल, सुनहरी यादें बन जाती है।
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Good afternoon Friends,
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