
यह बात बिल्कुल सच है कि आज के जमाने में लोग दिखावे पर ज्यादा विश्वास रखते हैं और हमेशा दिखावा करने की कोशिश करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है, हमारा समाज। समाज की विचारधारा की वजह से ही आज हम लोगों में दिखावे की प्रवृति बढ़ रही है |
आजकल समाज आपके पहनावा , आपकी बड़ी गाड़ी आदि को देख कर आपके स्टेटस का अंदाज़ा लगाते है और उसी के अनुसार आपको इज्जत देते है | यहाँ लिबास की कीमत है इंसान की नहीं |
बचपन में एक कहानी सुना करता था | एक नाबाब साहब थे जो कभी तफरीह को निकलते थे तो एक पॉकेट में मूँगफली और दूसरी पॉकेट में किसमिस रखते थे | अगर कोई बंदा मिल जाये तो पॉकेट से एक दो किसमिस निकाल कर उसे खाने को देते थे , लेकिन खुद मूँगफली खाते थे | नाबाब वाली दिखावा जो करनी होती थी |
हर इंसान चाहता है, उसे समाज में इज्जत मिले और इसी लिए न चाहते हुए भी दिखावा करने को मजबूर होता है | बाद में यही उसकी आदत बन जाती है |

रिश्तों में भी दिखावा करते है
आजकल केवल रहन-सहन में ही नहीं, बल्कि अब लोग रिश्तों के मामले में भी दिखावा करने लगे हैं। जीवन में अब पहले जैसी सहजता नहीं रही। इसी समाज का हिस्सा होने के कारण जाने-अनजाने हम सब इससे प्रभावित हो रहे हैं। यहां तक कि प्यार जैसी कोमल और सच्ची भावना में भी अब दिखावे की मिलावट हो रही है। आज की युवा पीढ़ी में रिश्तों के प्रति पहले जैसी ईमानदारी नज़र नहीं आती। लोग मन ही मन दूसरों के बारे में बुरा सोचते हैं पर उनके सामने अच्छा बने रहने का ढोंग करते हैं।
झूठ की बुनियाद पर टिके ऐसे रिश्ते नकली और खोखले होते हैं | यही करना है कि पुराने जमाने के मुक़ाबले आज तलाक ज्यादा हो रहे है | ये रिश्ते जल्द ही टूट भी जाते हैं। इसलिए हमें सचेत ढंग से ऐसी आदत से बचने की कोशिश करनी चाहिए।

समाज की उन्नति का हिस्सा है
हालांकि मैं उपरोक्त विचार से पूरी तरह सहमत नहीं हूं कि हमारे समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। जिसे हम दिखावा समझते हैं, दरअसल वह भी हमारे समाज की उन्नति का एक हिस्सा है। समय के साथ लोगों के रहन-सहन में बदलाव होना स्वाभाविक है। हम पुरानी पीढ़ी के लोग यह महसूस करते है कि जिन चीज़ों को हमारे ज़माने में लग्ज़री समझा जाता था, वे आज के ज़माने में लोगों की ज़रूरत बन चुकी हैं।
जी हाँ आज कार, मोबाइल और घरेलू उपकरणों के इस्तेमाल को दिखावा कहना अनुचित है क्योंकि आज के ज़माने में इनके बिना लोगों का जीवन मुश्किल हो जाएगा। यह सच है कि कुछ लोग अपनी आर्थिक संपन्नता का झूठा दिखावा करते हैं | हालांकि सभी लोग ऐसे नहीं है आज भी कई ऐसे परिवार हैं, जहां लोग सादगीपूर्ण जीवनशैली अपनाते हैं। दिखावा से दूर ही रहते है | दरअसल यह हमारी सोच पर निर्भर करती है |

यह विचारनिए विषय है
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि अगर समाज में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है तो इसकी सही वजह क्या है? यह सच कि आज लोगों को पहले की तुलना में पैसे कमाने के ज्य़ादा विकल्प मिल रहे हैं। हमारे जमाने में लोग अपनी सीमित आमदनी में भी संतुष्ट रहना जानते थे। लेकिन आज के लोग सोचते हैं कि हमारे पास और क्या होना चाहिए, जिससे समाज में हमारा स्टेटस ऊंचा नज़र आए। काफी हद तक ईएमआइ की सुविधाओं ने भी लोगों में दिखावे की इस आदत को बढ़ावा दिया है।
दूसरे के पास कोई भी नई या महंगी चीज देखकर हमारे मन में भी लालच की भावना जाग जाती है। फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट्स की वजह से भी युवाओं में दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। रिलेशनशिप को भी सोशल साइट्स पर दूसरों को दिखाने के लिए ही अपडेट किया जा रहा है। हम अपनी सभी गतिविधियों को वहां साझा करके चर्चा में बने रहना चाहते हैं।
आज हकीकत यह है कि ज़्यादातर नौकरी पेशा वाले लोगों की सैलरी का आधा भाग ईएमआई में चला जाता है | इसका कारण यह है कि हम झूठी दिखावा करने के लिए ईएमआई पर बिना ज़रूरत की चीजें भी खरीद लेते है |
ट्रैक्टर की हकीकत
मुझे एक पुरानी घटना याद आ रही है | उन दिनों में राजस्थान के एक गाँव की शाखा शिवगंज में पोस्टेड था | एक दिन एक किसान मेरी शाखा में आया और ट्रैक्टर हेतु ऋण के लिए आवेदन किया | मैंने उससे कहा – अकाल की वजह से आप की खेती तो नहीं के बराबर है, फिर ईएमआई पर ट्रैक्टर लेकर क्या करेंगे ? उसका जबाब सुन कर मेरे मन में कई प्रश्न उठ खड़े हुये थे |
उन्होने कहा – इस साल मुझे अपनी बेटी की शादी करनी है और हमारी शान दिखाने के लिए ट्रैक्टर दरवाजे पर रहना ज़रूरी है ताकि मेरी हैसियत ऊंची दिखाई दे और मेरी बेटी की शादी अच्छे घर में हो सके | मैंने उनकी बातों को सुन, भावना में बह कर ट्रैक्टर हेतु ऋण दे दिया |
उसके बाद उनके बच्ची की शादी भी मनचाही जगह पर हो गई | लेकिन बाद में उस किसान का क्या हुआ, ये ना पूछिये |

दिखावे की दुनिया है
दिखावा की दुनिया है, दिखावे का धर्म है| जब सब कुछ दिखावा है तो किस बात की शर्म है। बच्चे का जन्म होते ही दिखावा शुरू हो जाता है। कोई बुजुर्ग मरता है तो दिखवा। शादी होती है तो दिखावा। कहाँ नहीं है दिखावा ?
यह सच है कि इस दिखावे की वजह से हमारा समाज आगे नहीं बढ़ रहा | इसके अलावा इंसानी प्रवृत्ति बदल रही है, जो कि सही नहीं है। सबसे जरूरी बात कि समाज हम जैसे आम लोगों से ही बना है, आपसे मुझसे बना है।
तो अगर हम समाज का हिस्सा है तो समाज को हम ही बदल सकते हैं, इसके लिए पहला कदम हमें उठाना चाहिए।
इस विषय में आप की क्या राय है, मुझे भी बताएं …
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Totally agree with you…
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Thank you very much.
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बस एक कारण-
सबसे बड़ा रोग
क्या कहेंगे लोग
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बिलकुल सही कहा है सर जी |
नकली ज़िंदगी जीने की आदत सी पड़ गई है |
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सही बात है, आजकल दिखावा फैशन बन गया है। हर कोई अपने को दुसरो से आगे दिखाना चाहते है, अपने बच्चों को, अपने घर के साजों सामान को या अपनी जान पहचान को लेकर बढ़ा चढ़ाकर बतियाने लगते है जैसे कोई बहुत बड़ी उपलब्धि हो।
लेकिन यही दुन्यवि रिति है जो शायद हम सामाजिक लोगों को भाती है, हमें रास आती है।
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आपने बिलकुल सही कहा है | आज दिखावे की दुनिया हो गई है |
इसीलिए झूठी शान के लिए अपने खुशी और चैन खो रहे है |
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बहुत सुन्दर एवं शिक्षाप्रद।
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बहुत बहुत धन्यवाद डियर |
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You have nicely written the present situation of our society.We are now senior citizens.Same trend is going on among us.
1.What is your children’s package 2.What is your children doing.Ok my son is in Canada etcetc.
This trend will remain for ever .No body wants to picturise true position.
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Yes, that is very correct.
This type of attitude disheart us and is a barrier to self-development.
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
Good afternoon friends.
We need to accept that we won’t always make the right decisions, that we’ll screw up royally sometimes―understanding that failure is not the opposite of success, it’s part of success.”
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