#तुमसे दूर चले जाएँगे#

आजकल लोगों मे अपनापन की कमी नज़र आती है | हर इंसान सिर्फ अपने लाभ के बारे मे सोचता है | कभी कभी जिन्हे हम अपना करीबी समझते है वो भी वक़्त आने पर मुंह फेर लेते है |

किसी पर कोई दया नहीं करता है | ऐसा लगता है कि “सारी दुनिया शैतान के कब्ज़े में पड़ी हुई है। लोगों मे भावनात्मक लगाव कम होता जा रहा है | उन्ही वेदना को संजोए यह कविता प्रस्तुत है | मुझे आशा है कि आप इसे पसंद करेंगे …

तुमसे दूर चले जाएँगे

इस शहर को छोड़ चला हूँ मैं

पास तुम्हारे अब नहीं  आएंगे  

दुख और गम से थक गया हूँ मैं

लोगों के तानों से पक गया हूँ मैं

तेरे शहर में अब न रह पाएंगे

यहाँ से कही दूर चले जाएंगे  
 

बाकी बची ज़िंदगी जीने के लिए

ज़िंदगी में सुकून पाने के लिए

अपनी ख्वाबों की दुनिया में लौट जाएंगे

लिखेंगे इबादत अपने दिल की कलम से

फिर खुशियों के नए गीत गुनगुनाएंगे

एक खूबसूरत शहर फिर से बसाएंगे

गुलाब में कांटे है तो क्या

आँखों में आँसू  है तो क्या

अपनी ख्वाबों की बगिया में

रंग बिरंगे फूल खिलखिलाएंगे

आशाओं के पतंग की थामे डोर

फिर से क्षितिज में लहराएंगे

आशाओं  की  किरण जब फूटेंगी

भयानक ख्वाब से नींद जब टूटेगी

खुशियों की तब होगी बरसात  

और एक नया सवेरा  पाएंगे

फिर तुम्हें याद नहीं आएंगे

तुमसे  बहुत दूर चले जाएंगे

….हाँ, बहुत  दूर चले जाएंगे |

           (विजय वर्मा)

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Categories: kavita

9 replies

  1. अच्छी कविता।

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  2. सुंदर कविता।
    पढ़के अच्छा लगा बेहद

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  3. ऐसा लग रहा है जैसे हम अपने आस् पास के रिश्ते नातों से दूर होते जा रहे हैं

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  4. Sundar Kavita.Kisko chhod ko Jaa paoge.Sab Bandhan Hai.

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  5. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Good afternoon friends,

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