
दोस्तों,
हम बिहार के महान हस्तियों , धरोहर और एतिहासिक स्थानो के बारे में चर्चा कर रहे है | इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए , आज यहाँ बिहार में स्थित कुछ और विशेष स्थानो के बारे में चर्चा कर रहे है |
हर स्थान के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है | यह किसी अजूबे से कम नहीं है, जिसे पढ़ कर मनोरंजन के साथ साथ ज्ञानवर्धन भी कर सकते है |
राजगीर का गरम कुंड
पटना से 100 किमी दक्षिण-पूर्व में पहाड़ियों और घने जंगलों के बीच बसा राजगीर न केवल एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थस्थल है बल्कि एक सुन्दर हेल्थ रेसॉर्ट के रूप में भी लोकप्रिय हो रहा है। यहां हिन्दु, जैन और बौद्ध तीनों धर्मों के धार्मिक स्थल हैं। खासकर बौद्ध धर्म से इसका बहुत प्राचीन संबंध है।
वैसे तो राजगीर शहर और इसके आस पास में देखने को बहुत सारे पर्यटन स्थल है, जैसे कि
नेचर सफारी राजगीर (Nature Safari Rajgir) …
राजगीर कुंड (Rajgir Kund) …
राजगीर जू सफारी (Rajgir Zoo Safari ) …
शांति स्तूप, राजगीर (Shanti Stupa Rajgir) …
घोड़ा कटोरा झील, राजगीर (Ghora Katora Jheel Rajgir)
हम राजगीर के बारे में पूरी जानकारी एक अलग ब्लॉग के माध्यम से शेयर करेंगे , फिलहाल यहाँ हम राजगीर कुंड की चर्चा करना चाहते है |

राजगीर में एक प्राचीन गर्म पानी का कुंड है। हर साल मकर संक्रांति के दिन यहाँ मेला लगता है | इस अवसर पर इस कुंड में डुबकी लगाने बहुत सारे श्रद्धालु पहुंचते हैं। यहां ऐसी मान्यता है कि इस कुंड का निर्माण ब्रह्मा जी ने करवाया था।
भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र बसु ने राजगीर के ब्रह्मकुंड परिसर में एक यज्ञ कराया था। इस दौरान देवी-देवताओं को एक ही कुंड में स्नान करने में परेशानी होने लगी। तब ब्रह्मा जी ने यहां 22 कुंड का निर्माण कराया। इन्हीं में से एक है ब्रह्मकुंड,, जिसका तापमान 45 डिग्री सेल्सियस रहता है। इस कुंड का पानी सालो भर गरम रहता है |
इस कुंड में पानी गर्म क्यों रहता है
बताया जाता है कि इस कुंड में सप्तकर्णी गुफाओं से पानी आता है। यहां वैभारगिरी पर्वत पर भेलवाडोव तालाब है, जिससे ही जल पर्वत से होते हुए यहां पहुंचता है। इस पर्वत में कई तरह के खनिज और केमिकल्स जैसे सोडियम, और सल्फर मौजूद हैं। इसी वजह से यहाँ का पानी गर्म होता है और प्रवाह के द्वारा कुंड में पहुंचता है ।

मलमास मेले से जुड़ी मान्यता
राजगीर बिहार के नालंदा ज़िले में स्थित है जहां बुद्ध का शांतिस्तूप स्थापित है | वैसे राजगीर की पहचान मेलों के नगर के रूप में भी होती है। यहाँ मकर संक्रांति और मलमास के समय मेला लगता है जो काफी मशहूर हैं।
मेले में बहुत श्रद्धालु आते है और इस दौरान ब्रह्मकुंड में नहाने के लिए चार बजे सुबह से ही लोगों की भीड़ जुट जाती है | हमारे शास्त्रों में भी मलमास तेरहवें मास के रूप में वर्णित है।
– सनातन मत की ज्योतिषीय गणना के अनुसार तीन वर्ष में एक वर्ष 396 दिन का होता है। – धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या पुरूषोतम मास कहा जाता है।
– ऐतरेय बह्मण के अनुसार यह मास अपवित्र माना गया है और अग्नि पुराण के अनुसार इस अवधि में मूर्ति पूजा–प्रतिष्ठा, यज्ञदान, व्रत, वेदपाठ, उपनयन, नामकरण आदि वर्जित है, लेकिन इस अवधि में राजगीर सर्वाधिक पवित्र माना जाता है |
मलमास मेले में आते हैं देवी देवता स्नान करने
– अग्नि पुराण एवं वायु पुराण आदि के अनुसार इस मलमास अवधि में सभी देवी देवता यहां आकर वास करते हैं। इसलिए मलमास में यह स्थान सबसे पवित्र माना जाता है |
– राजगीर के मुख्य ब्रह्मकुंड के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसे ब्रह्माजी ने प्रकट किया था और मलमास में इस कुंड में स्नान का विशेष फल मिलता है। यही कारण है इस अवसर पर काफी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते है और एक बड़ा मेला लगता है | सभी लोग इसका भरपूर आनंद उठाते है |
मंदार पर्वत का रहस्य
बिहार में ऐसे कई दार्शनिक स्थान है, जो दुनिया भर में अपने इतिहास और प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए मशहूर है। इस में से एक मंदार पर्वत है |
भागलपुर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर बसे बांका जिले में ‘मंदार पर्वत’ स्थित है। 700 फीट ऊंचे इस पर्वत के बारे में पुराणों और महाभारत में कई कहानियां प्रचलित हैं। इनमें से एक कहानी ऐसी है कि देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया था, जिसमें हलाहल विष के साथ 14 रत्न निकले थे।

जी हाँ , एक कहानी यह भी प्रचलित है कि भगवान विष्णु ने मधु और कैटभ नामक राक्षस को पराजित कर उसका वध किया और उसे यह कहकर विशाल मंदार के नीचे दबा दिया कि वह पुनः विश्व को आतंकित न करें । पुराणों के अनुसार यह लड़ाई लगभग दस हजार साल तक चली थी।
पर्वत का महत्व
सभ्यताओं के उत्थान-पतन से ही इतिहास लिखे जाते है | इतिहास निर्माण में पर्वतों और नदियों की विशेष भूमिका रही है | भारत की पहचान पर्वतों और नदियों से ही है और इनसे जुड़ी बहुत सारी कहानियाँ प्रचलित है |
बिहार के बांका जिले के बौंसी-बाराहाट प्रखंड के सीमा पर मंदार पर्वत स्थित है | ऐसा कहा जाता है कि आर्य और अनार्य के बीच सौहार्द्र बनाने के लिए समुद्र मंथन किया गया था, जिसमें मंदार पर्वत का मथानी (Churning Rod) के रूप में प्रयोग हुआ था |
अपार घर्षण और पीड़ा झेलकर भी उसने सागर के गर्भ से चौदह महारत्न निकाले |
ऐसी मान्यता है कि इसके शीर्ष पर भगवान मधुसूदन, मध्य में सिद्धसेनानी कामचारिणी, महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती के साथ गणेश जी की अवस्थिति है | पर्वत पर दुर्गम ऋषि-कुण्ड और गुफाएं भी हैं जिसमें सप्तर्षियों का निवास है |
आज भी रहस्य बना हुआ है मंदार
क्षीर सागर में सोए हुए भगवान विष्णु के साथ भी मंदार मौजूद था और आज भी एक रहस्य बना हुआ है | ब्रहमांड का सबसे वृहताकार शिवलिंग भी यही मंदार है | पुराणों में सात प्रमुख पर्वतों को “कुल पर्वत” की संज्ञा दी गई है, जिनमें मंदराचल, मलय, हिमालय, गंधमादन, कैलाश, निषध, सुमेरु के नाम शामिल हैं |. देवराज इंद्र और असुरराज बलि के नेतृत्व में तृतीय मनु तामस के काल में समुद्र मंथन हुआ |

हिन्दू धर्म ग्रंथों में है समुद्र मंथन की कहानी
ऐसा माना जाता है कि एक समय दैत्यराज बलि का राज्य तीनों लोकों पर हो गया था | इंद्र सहित देवता गण उससे भयभीत रहते थे | इस परिस्थिति में देवताओं की शक्ति बढ़ाने के लिए भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी कि आप लोग असुरों से दोस्ती कर लें और उनकी मदद से क्षीर सागर को मथ कर उससे अमृत निकाल कर उसका पान कर लें |.
यह समुंद्र मंथन मंदार पर्वत और बासुकी नाग की सहायता से किया गया, जिसमें कालकूट विष के अलावा अमृत, लक्ष्मी, कामधेनु, ऐरावत, चंद्रमा, गंधर्व, शंख सहित कुल 14 रत्न प्राप्त हुए थे |
भगवान शिव ने हलाहल विष पिया था
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुंद्र मंथन श्रावण मास में किया गया था और इससे निकले कालकूट विष का पान भगवान शिव ने किया था | हालांकि, विष को उन्होंने अपने कंठ में ही रोक लिया था | इसके प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और वो नीलकंठ कहलाने लगे | विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया | इसलिए श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक का विशेष महत्व है |
भगवान शिव का निवास स्थान था मंदार
पुराणों में वर्णित है कि यह क्षेत्र त्रिलिंग प्रदेश के नाम से जाना जाता था, जिसमें पहला लिंग मंदार, दूसरा बाबा वैद्यनाथ और तीसरा बासुकीनाथ है | मंदार पर्वत के ऊपरी शिखर पर विष्णु मंदिर है और बगल में जैन मंदिर भी है | नीचे काशी विश्वनाथ मंदिर है |
भगवान शिव का पहला निवास स्थल मंदार ही था |. इसे हिमालय से भी प्राचीन माना गया है | जानकार बताते हैं कि धन्वंतरि के पौत्र देवोदास ने भगवान शिव को मनाकर काशी में स्थापित कर दिया था | . इसलिए काशी विश्वनाथ के नाम से भी इसे जाना जाता है |.

पुराणों के अनुसार त्रिपुरासुर का भी निवास मंदार क्षेत्र में ही था | भगवान शंकर ने अपने बेटे गणेश जी के कहने पर त्रिपुरासुर को वरदान दिया था | बाद में भगवान शंकर पर त्रिपुरासुर ने आक्रमण कर दिया |
त्रिपुरासुर के डर से भगवान शिव कैलाश पर्वत पर चले गए | फिर वहां से बचकर मंदार में रहने लगे |
लेकिन त्रिपुरासुर यहाँ आकर पर्वत के नीचे से भगवान शिव को ललकारने लगा | अंत में देवी पार्वती के कहने पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का अंत किया था |
(Pic Source: Google .com)
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अच्छी जानकारी।
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बहुत बहुत धन्यवाद।
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बहुत ही खूबसूरत गौरवान्वित करती पोस्ट।🙏🙏
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बहुत बहुत धन्यवाद डियर |
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