
आज कल भगवान मेरी कोई प्रार्थना नहीं सुनते है। इसकी कोई ठोस वजह मुझे नज़र नहीं आता है |
लोग कहते है कि भगवान को साफ़ – सफाई बहुत पसंद है … मैं घर में और अपने आस पास खूब साफ़ सफाई रखता हूँ |
लेकिन तभी महसूस हुआ कि मुझे तो सफाई करनी थी …. अपने अंतरमन और आत्मा की …. पर मैंने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं ….
अब मैं ने तय किया है कि आत्मा को स्वच्छ रखना है | अब हम अपनी भावनाओं को कविता के माध्यम से प्रकट करने की कोशिश कर रहे है |
क्योंकि मेरी कविता मेरी आत्मा है ….जो शब्दों के माध्यम से मुझे एक नयी उर्जा और पहचान देते है | हम इसके माध्यम से साँस लेते है .|
मेरे कलम की स्याही मेरे दर्द को कागजों पर बयाँ करते है … हम अपने विचारों को कविता के माध्यम से पुनर्जीवित करते है …|
जी हाँ, हम कभी – कभी कविता भी लिखते है…….

मन की कलम से
दर्द की स्याही बिखरता रहा
दिल बेचैन था
रात भर मैं लिखता रहा ..
छू रहे थे लोग
बुलंदिया आसमान की
मैं पानी की बूंद
बादलों में छिपता रहा
होता अकड़ मुझमें तो
कब का टूट गया होता
मैं तो था नाज़ुक डाली
सबके आगे झुकता रहा
बदलते देखे लोगों के
रंग अपने अपने ढंग से
रंग मेरा भी निखरा पर
हिना की तरह घिसता रहा
जिनको चाहत थी
वो बढ़ चले अपनी मंजिल की ओर
मैं तो समंदर से सीखा
मस्त अपनी रवानी में बहता रहा
ज़िन्दगी कब करवट लेगी
गुमान ना करता कभी किस्मत पे
दिन चाहे कैसा भी दिखाए तूने
तेरे दर पे मेरा सिर झुकता रहा
कुछ बेतुके झगड़े मैंने
कुछ इस तरह ख़त्म किए
जहाँ गलती नहीं थी मेरी
वहाँ भी हाथ जोड़ लिए |
( विजय वर्मा )

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Categories: kavita
Very beautiful poem, Sir. You are an inspiration for us.
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Thank you so much.
Stay happy and blessed.
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अन्तरात्मा के भावों का बहुत सुंदर
चित्रण👌👌
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जी ,बहुत बहुत धन्यवाद |
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Beautifully expressed 💫🙌
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Thank you so much..
I have visited your blog post. This is a very informative and valuable article.
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Thankyou and have a great day too😇
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Stay happy, Stay blessed.
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So beautiful 👌👌
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Thank you so much, Sir.
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अच्छी कविता।
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर।
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Very beautiful poem.
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Thank you so much, dear.
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Good afternoon friends..
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Step back and listen – मैंने यही पाया है ईश्वर से जुड़ाव का तरीका. वह कर्मकांड में नहीं है. हर कुछ अंतराल पर step back करना, उस सत्ता का स्मरण करना और महसूस करना – वही तरीका मुझे लगा है. वह साइकिल चलाते, गंगा निहारते और भीड़ में भी सहजता से होने लगे तो तादात्म्य है ईश्वर से.
बाकी आपका तरीका – स्वच्छता और कविता का भी बढ़िया लगा मुझे.
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सर ,आपके नाम के अनुरुप ही ज्ञान का भंडार छुपा है |
आप शहर के चमक दमक को छोड़ गाँव के शांत वातावरण को चुना है |
यह आपने विचारों को दर्शाता है , आपके संग रह कर शायद मैं भी कुछ प्राप्त कर लूँ |
अपने विचार साझा करने के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद |
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स्वागत वर्मा जी 🙏🏼 आपकी जय हो 🙏🏼
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Good afternoon Sir,
How are you ?
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Reblogged this on Wonders of Wandering.
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Thank you so much.
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अच्छी कविता भाई!
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बहुत बहुत धन्यवाद डियर |
दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें |
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