# तीन बार की फांसी #– 2

उस जमाने में सज़ा हो जाने के बाद अपने केस को डिफ़ेंड करने का नियम नहीं था, इसलिए कोर्ट के फैसले के 18 दिनों के बाद  जॉन ली को 23 फ़रवरी 1885 को फांसी की तारीख तय की गई |

इसी बीच एक चौंकाने  वाली खबर का पता चला | जॉन ली की बहन हैरिस जो कुंवारी  और कम उम्र की थी, वह गर्भवती है | उन दिनों इंग्लैंड में सख्त नियम था कि बिना शादी शुदा अगर कोई गर्भवती हो जाती है तो उसे बहुत बड़ा पाप और गुनाह माना जाता था  | इस विषय में वहाँ का समाज बहुत सख्त था |

अब सवाल उठता है कि हैरिस अगर गर्भवती है और किसके कारण गर्भवती हुई है और फिर इस केस से क्या ताल्लुक है ? 

आगे तहक़ीक़ात करने पर पता चला कि  जो वकील जॉन ली का केस लड़ रहा था, उसका हैरिस के साथ नाजायज रिश्ता था | वह वकील उसके घर भी आया करता था | और सबसे चौंकाने  वाली बात यह थी कि  जिस दिन एना का कत्ल हुआ उसके एक दिन पहले भी वह वकील उसके घर आया था  |

एक तो हैरिस का गर्भवती होना, दूसरा कत्ल के ठीक एक दिन पहले उस वकील का हैरिस के घर पर आना | और वही वकील के द्वारा जॉन ली का केस लड़ा जाना | फिर जॉन ली को फांसी हो जाना | यह  सब बातें शक पैदा करता है कि कहीं हैरिस और उसका बॉय फ्रेंड वकील का कत्ल से कोई ताल्लुक तो नहीं ?

लेकिन दुर्भाग्य वश , इस मामले में आगे कोई जांच ही नहीं की गई और जॉन ली  के लिए फांसी की सज़ा बरकरार रही |

उन दिनों जेम्स बेरी नाम का जल्लाद  मुजरिम को फांसी के फंदे से लटकाने में माहिर  और अनुभवी था | जॉन ली को फांसी देने की ज़िम्मेदारी जेम्स बेरी को दी गई |

बार बार हैंडल खिचने पर भी तख़्ता नहीं खुला

 23 फरवरी 1885 के दिन, सुबह में जॉन ली का मुंह पर नकाब पहना कर फांसी के फंदे तक ले जाया गया | गले में फांसी का फंदा डाला गया | मजिस्ट्रेट का इशारा पाते ही जल्लाद ने उसे फांसी देने के लिए हैण्डल खींचा |  लेकिन हैरानी की बात यह रही कि जॉन के  पैरों  के नीचे के लकड़ी के तख़्ता  को खुलना था , लेकिन वह नहीं खुला | और जॉन ली रस्सी के फंदे से झूल नहीं सका | वह सही सलामत लकड़ी के तख्ते पर अब भी खड़ा  था |

उस जल्लाद के सामने  इस तरह की चमत्कार की घटना पहली बार हुई थी | उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि  यह क्यों हुआ |

बार बार हैंडल खिचने पर भी तख़्ता नहीं खुला |

जल्लाद ने दोबारा  हैण्डल  खिचा  लेकिन फिर वह  तख़्ता नहीं खुला | उसने  कई बार हैंडल खींचा, लेकिन उसके कई प्रयासों के बाद भी  पैरो के नीचे की तख्ती नहीं हटा  |

दरअसल जॉन ली को फांसी के तख्ते पर चढ़ाने से पहले उसके बराबर वज़न का एक dummy पुतला को तख्ते पर खड़ा कर , हैंडल खीच कर यह सुनिश्चित किया गया था  कि  सिस्टम ठीक से काम कर रहा है | लेकिन जॉन ली के केस में तख़्ता नहीं खुल सका | अब ऐसी स्थिति में ली को तख्ते से उतार कर एक तरफ खड़ा कर दिया गया |  हालांकि  उसका चेहरा अब भी नकाब से ढका हुआ था |  

मैजिस्ट्रेट का इशारा पा कर दोबारा dummy पुतले को  तख्ते पर चढ़ाया गया  और हैंडल को खिचा गया | इस बार तख़्ता खुल गया और Dummy पुतला का  गर्दन हवा में झूल गया | अब मैजिस्ट्रेट ने राहत की साँस ली और आश्वस्त हो गया कि सिस्टम सही काम कर रहा है |

उसके बाद जॉन  ली को फिर से  फांसी के तख्ते पर चढ़ाया गया | उसके गले में फंडा डाला गया  | मैजिस्ट्रेट का इशारा पाते ही  जल्लाद ने ऊपर वाले का नाम लेकर हैंडल  खिच देता है | लेकिन यह क्या  ? इस  बार भी जॉन ली के पैरो के नीचे की तख्ती   नहीं खुला | जल्लाद बार बार हैंडल खिच कर कोशिश किए जा रहा था, लेकिन  तख़्ता फिर भी नहीं खुला | इस कोशिश में 6 मिनट निकाल गए  | जल्लाद और मैजिस्ट्रेट के चेहरे से पसीने की बूंदें टपकने लगी | कोर्ट का फांसी का आदेश की  पालना नहीं हो सकी थी |

उसके बाद जॉन ली को तख्ते से हटाया गया | फिर दोबारा लीवर और तख़्ता की जांच हुई | फिर dummy पुतला को लाया गया | उसके गले में फंडा डाला गया  और फिर से हैंडल खिचा गया और तख़्ता खुल गया | Dummy पुतला  हवा में झूल गया |

इंग्लैंड के इतिहास में पहली बार हुआ

यह इंग्लैंड के इतिहास में पहली बार हुआ था कि  किसी मुजरिम को दो बार फांसी के तख्ते पर चढ़ाया गया और दोनों ही बार वह तख़्ता नहीं खुला | उधर जॉन ली की हालत यह थी कि उसके पैर डर से काँप रहे थे, वह तिल तिल मर रहा था | उसे बार बार तख्ते से हटाया जाता और फिर चढ़ाया जाता |

जल्लाद इस चमत्कार पर हैरान था |

लेकिन उसे  कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि उसके साथ क्या हो रहा है ? क्योंकि  उसके चेहरे पर नकाब पहनाया हुआ था और जल्लाद और मजिस्ट्रेट की  बातें सिर्फ इशारों में हो रही थी |  जॉन ली हर पल महसूस करता कि अभी वह ज़िंदा है, पर कैसे ?

इधर उसके फांसी की  दो कोशिश नाकाम होने के बाद  अब सिर्फ एक अंतिम कोशिश बाकी थी | क्योंकि इंग्लैंड की  कानून के हिसाब से तकनीकी गड़बड़ी हुई तो  किसी भी मुजरिम को तीन बार से अधिक फांसी नहीं दी जा सकती है |

फांसी की आखरी कोशिश

अब तीसरी और आखरी कोशिश जल्लाद को करना था / और जॉन ली के ज़िंदगी का फैसला होना था कि उसकी जान जाएगी या पिछले बार की  तरह  इस बार भी वह बच जाएगा |

खैर, जॉन ली को फिर तख्ते पर खड़ा करने से पहले dummy पुतला को लाया गया , उसके गले में फांसी का फंडा डाला गया | जल्लाद ने सभी चीज़ को बारीकी से चेक किया  और फिर हैंडल खिचा | तख़्ता खुल गया और dummy पुतला हवा में झूल गया | सब लोगो को  इतमीनान हो गया कि इस बार सब कुछ ठीक ठाक है |

अब तीसरी बार जॉन ली को फिर से फांसी के तख्ते पर खड़ा किया गया |  गले में फंडा डाला गया और हर चीज़  को बारीकी से जांच करने के बाद मजिस्ट्रेट इशारा करता है | जल्लाद जेम्स बेरी धड़कते दिलों के साथ तीसरी बार हैंडल खिचता है इस उम्मीद से कि  इस बार फांसी कामयाब हो जाये |

लेकिन भगवान की मर्ज़ी , तीसरी बार भी तख़्ता नहीं खुलता है | जॉन ली अब भी उसी तख्ते पर सही सलामत खड़ा था | तीन attempt हो चुका था, और  कानून जितनी इजाजत दी थी वह पूरा हो चुका था | अब फांसी के लिए चौथी कोशिश नहीं हो सकती थी | तब मजिस्ट्रेट ने इशारा किया कि इस फांसी की  कार्यवाही को रोक दिया जाये |

भगवान पर भरोसा था

उसके बाद जॉन ली के हाथ पैर खोल दिया गया | चेहरे से नकाब हटा दिया गया | लेकिन जॉन ली हैरान परेशान कि  उसके साथ क्या हो रहा है ? न वो कुछ देख रहा था और न कुछ सुन पा रहा था |  लेकिन  अब उसे यह  एहसास हो रहा था कि वह एक नहीं तीन तीन बार मौत के कितने करीब से वापस आया था  | यह कुछ अनहोनी से कम नहीं था  | अब जॉन ली को फिर से उसी सेल में ले जा कर रखा गया |

लगातार तीन बार फांसी की कार्यवाही होने का  मामला कोर्ट में गया | वहाँ हर एक चीज की तहकीकात की गई कि आखिर ये क्यों  हुआ ? क्यूंकि एक शख्स का तीन-तीन बार फांसी की सजा से बच निकलना आज तक के इतिहास में कभी नहीं हुआ था और इसी वजह से ये केस हाई अथोरिटी तक गया | जहां इस चीज की इनवेस्टिगेशन  हुई  लेकिन इसमे  न  जल्लाद और न मजिस्ट्रेट को दोषी पाया गया |

तीन बार फांसी से बच गया

इसके बाद लोगों को यही लगा कि जॉन को भगवान पर भरोसा था और भगवान ने ही उसकी मदद की है | लेकिन जल्लाद जेम्स बेरी को यह घटना इतना विचलित कर दिया कि उसने इस जल्लाद के पेशे से अपने को मुक्त कर लिया |

इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने जॉन की सजा माफ कर दी थी /  कोर्ट का कहना था कि जॉन ने तीन बार मौत की सजा को महसूस किया है और इतनी सजा उसके लिए काफी है |  इसके बाद लोगों को यही लगा कि जॉन को भगवान पर भरोसा था और भगवान ने ही उसकी मदद की है | जॉन ली ने अपनी खुद की कहानी लिखी और उसने बताया कि उसे महसूस हुआ कि कोई शक्ति उसे मदद कर रही है |

 और अंत में 19 फरवरी 1945 को जॉन का 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया |  लेकिन उनका नाम आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है |

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3 replies

  1. गजब की बात है

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  2. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Good afternoon friends,
    Confidence is the best accessory. Never leave home without it.
    It may not bring success but it gives the power ti face challenges.

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