
दोस्तों,
आज सुबह मोर्निंग वाक से आकर अपने लैपटॉप पर अपने मेल चेक कर रहा था तभी मैंने मेरी नन्ही पोती को देखा कि “ टीचर्स डे ” की ग्रीटिंग कार्ड बना रही है | उसे देख कर मुझे भी अपना बचपन याद आ गया |
कारोना के कारण लम्बी छुट्टी के बाद स्कूल खुलने से बच्चे स्कूल जाने को आतुर दीखते है | वे स्कूल की मस्ती और खेल कूद का आनंद लेना चाहते है |
बचपन की यादें
एक मेरा ज़माना था कि हम बचपन में स्कूल जाने से बहुत कतराते थे | खूब बहाने बनाते थे | कभी पेट में दर्द है, कभी सिर में दर्द है और कभी पेट खराब हो गया है — यही सब हमारे बहाने हुआ करते थे | लेकिन फिर भी जबरदस्ती स्कूल भेजा जाता था |
आज मुझे फिर अपना बचपन याद आ रहा है | वो सरकारी स्कूल था और मैं तीसरी कक्षा का होनहार विद्यार्थी | शरारत में हमारा कोई भला क्या टक्कर ले सकता था | पढाई करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था | हाँ, कोई दिन भर खेलने की आजादी दे दे तो क्या कहने |

एक दिन की बात है, दिन के दस बज रहे थे और स्कूल जाने का समय हो रहा था | मैंने अचानक पेट पकड़ लिया और पेट दर्द की जबरदस्त एक्टिंग की | माँ का दिल पिघल गया | उसने खाट पर आराम करने को कहा और साथ में पुदिन-हरा की दवा भी पिलाई |
मैं वो सब पी गया क्योंकि स्कूल नहीं जाना चाहता था | आज बंशी सर का क्लास था | वे देखने में काला महिसासुर जैसा दीखते थे और हमेशा अपने हाथ में एक मोटी छड़ी रखते थे जो उनका हथियार था |
बेंत वाली छड़ी
वे गणित पढ़ाते थे और मैं गणित में कमजोर था सो अक्सर उनके बेंत वाली छड़ी के दर्शन हो जाया करते थे | इतना जोर से मारते थे कि बस प्राण ही निकल जाता था | मैं उन्हें देख कर भगवान् से मन ही मन कहता – इन्हें धरती से उठा लो प्रभु और अपने पास बुला कर उसी बेंत से उन्हें सेंको, जैसे वे हमलोगों को सेंका करते है |

मैं यह सब बातें सोचते हुए कुछ देर के लिए सो गया | जब मैं आस्वस्त हो गया कि अब आज मुझे स्कूल नहीं भेजा जायेगा, तो धीरे से घर से बाहर निकला और पहुँच गया अपने अड्डे पर जहाँ कुछ दोस्त कंचा खेल रहे थे | ये दोस्त भी हमारी तरह स्कूल नहीं जाने का कोई न कोई बहाना बना कर या स्कूल से भाग कर इस छोटे से मैदान में खेल का मजमा लगाते थे |
मैं कंचा खेलने में उस्ताद था | मेरा निशाना बहुत सटीक था, इसलिए थोड़ी ही देर में बहुत सारे कंचे जीत चूका था | मैं पुरे जोश के साथ खेल का मजा ले रहा था तभी अचानक घर से मेरे पढ़ाकू भाई वहाँ धमक गए | उन्हें पता था कि मैंने स्कूल न जाने का बहाना बनाया है | उनको देखते ही मेरे होश उड़ गए |
उन्होंने कहा – अब तो स्कूल का टिफ़िन हो गया होगा | लेकिन उसके बाबजूद तुम्हे स्कूल जाना होगा | मैंने साफ़ मना कर दिया | चाहे कुछ भी हो जाए मैं स्कूल नहीं जाऊंगा, क्योंकि आज तो “कौवा” सर का हिंदी क्लास था, और “गिरगिट” सर का भूगोल का क्लास था | मुझे इनके क्लास में बिलकुल मन नहीं लगता था, क्योंकि उनकी पढाई कुछ समझ में नहीं आती थी |
स्कूल जाना ज़रूरी
लेकिन बड़े भाई की भी जिद थी कि आज मुझे स्कूल भेजना ही है | जब प्यार से काम नहीं बनता है तो सख्ती की जाती है | वही मेरे संग भी हुआ | मुझे दो लोग मिलकर जबरदस्ती कंधे पर उठा कर स्कूल ले आये | हालाँकि स्कूल घर से थोड़े ही दूर पर था | लेकिन रास्ते भर मेरे रोने और चिल्लाने का मजा आस पडोस के लोग ले रहे थे |

खैर, मैं स्कूल की कक्षा तीन में ले जाकर जबरदस्ती बैठा दिया गया | पांचवी घंटी लग चुकी थी और तभी बंशी सर का क्लास में प्रवेश हुआ | मैं डर के मारे थर थर काँप रहा था | क्योंकि मुझे पता था कि मेरे बड़े भाई ने मेरी शिकायत उनसे अवश्य की होगी | और उनकी बेंत की छड़ी मेरे शरीर पर टूटने वाली थी |
मैं डर से उनकी ओर देख भी नहीं रहा था | बस गणित का किताब खोल कर उसी पर नज़रें गडाए अपने बेंच पर बैठा था | क्लास में घोर शांति थी | तभी बंशी सर की कड़क आवाज़ ने हम सभी को चौकाया | उन्होंने कड़क आवाज़ में कहा – बोर्ड पर ध्यान से देखो और इस गणित को अपने कॉपी में बना कर बारी – बारी से मेरे पास लेकर आओ |
इतना कह कर वे आराम से कुर्सी पर बैठ गए और अपनी छड़ी को गोल गोल घुमा रहे थे | मैं डर के मारे जल्दी से अपनी कॉपी में गणित बनाया और थोड़ी देर में ही उनके पास पहुँचा | उन्होंने गणित को देखा और अपने कलम से मेरे कॉपी पर एक बड़ा सा गोला बनाया और कहा — फिर से बना कर लाओ |
मैं परेशान हो उठा कि गलती कहाँ हो रही है ? मैं किसी से पूछ भी नहीं सकता था क्योंकि ताक – झाँक उनके क्लास में सख्त मना था | मैं किसी तरह दुबारा गणित बनाया और उनके पास पहुँचा | उन्होंने गौर से देखा और फिर अपनी कलम से उस पर एक गोला बनाया और कहा – फिर से बना कर लाओ |
मेरा डर के बारे बुरा हाल था | मुझे आभास हो रहा था कि इस बार भी गणित सही नहीं बनाया तो उनका डंडा मेरे शरीर पर ज़रूर तांडव करेगा |
मैंने फिर से उसे बनाया और तीसरी बार उनके सामने उपस्थित हुआ | मैं अन्दर से काँप रहा था | बकरा शेर के आगे खड़ा था | उन्होंने मेरी ओर प्यार भरी नजरो से देखा और मेरे कॉपी पर अपने कलम चलाते हुए कहा – तुम यहाँ बार बार गलती कर रहे हो | इतना कह कर मेरे गणित को उन्होंने सही कर दिया और उनके बारे में मेरी सोच को भी बदल दिया |

आज उन्होंने अपने छड़ी किसी पर भी नहीं चलाई | मेरे तीन- तीन बार गलती करने पर भी नहीं | मुझे आभास हुआ कि उनका दिल इतना कठोर नहीं है | वे तो हमारे भले के लिए ही सख्त हो जाते है |
उसके बाद तो मैं किसी सर से नहीं डरता था | और हमारे खुराफाती दोस्तों द्वारा दिया गया नाम जैसे कौवा सर और गिरगिट सर भी कहना बंद कर दिया |
“कौवा सर” का भूगोल
दोस्तों, मैं आप सब को बताना चाहता हूँ कि मेरे खुराफाती दोस्तों ने एक सर जो हिंदी पढ़ाते थे और हमेशा बक – बक (कावं कावं ) करते रहते थे | इसलिए उन्हें हमलोग “कौवा सर” कहते थे और उसी तरह एक सर जो भूगोल पढ़ाते थे, उनकी गर्दन थोड़ी लम्बी थी और वे हमेशा अपना सिर दाएं बाएँ हिलाते रहते थे | इसलिए उन्हें हमसब “गिरगिट सर” का उपनाम दे रखा था |
लेकिन सच कहूँ तो उस घटना के बाद मेरी सोच में एक परिवर्तन आया और मुझे लगा कि हमारे शिक्षक गण हमारे भले के लिए मारते और डांटते है और उसी तरह हमारे गार्डियन भी चाहते है कि हम पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने ताकि जीवन की सारी खुशिया हमें मिले |
इसलिए हमारी पढाई पर इतना ध्यान देते है और यही चाहते है कि हम लोग खेल कूद के बदले पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दें | उसके बाद मैं स्कूल कभी भी मिस नहीं करता था | टीचर्स डे पर अब भी उनकी याद आती है |
गुरु तेरे उपकार का,
कैसे चुकाऊं मैं मोल,
लाख कीमती धन भला,
गुरु हैं मेरे अनमोल.
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |

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बहुत अच्छा।
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बहुत बहुत धन्यवाद |
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सही बात है, बचपन ओर पाठशाला कि बातें एक ऐसा गुड़ हैं जो मुंह में घुले हि नहि, जब भी याद करते है मन मुश्कुराने लगता है। धन्यवाद 👍
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जी , बिलकुल सही कहा सर जी |
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There is lot of difference between our time’s education system and present day education system.We depend upon teacher and now days we depend upon Google.Any way your childhood life tought you many many things.Nice blog.
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Yes, That is very correct dear..
There is a tremendous change in the education system.
Thanks for sharing your feelings.
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