
दोस्तों, आज कल अकेलापन बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्या बन गयी है | अभी कुछ दिनों पूर्व एक समाचार पढ़ा था जिसे पढ़ कर मेरा मन बहुत उद्वेलित हो गया | चूँकि मैं भी एक से सेवानिवृत बुजुर्ग हूँ और मुझे भी कभी कभी अकेलापन बहुत खलने लगता है |
पहले मैं उस समाचार के बारे में चर्चा करना चाहता हूँ | यह भोपाल शहर की घटना है | दरअसल . एक सेवानुवृत बैंक कर्मी बुजुर्ग को उसके बेटे, बहू और उसकी खुद की पत्नी ने भोपाल में अकेला छोड़ दिया | वे सभी लोग नागपुर में जाकर रहने लगे | बुजुर्ग ने एसडीएम कोर्ट में अपने बेटे के ऊपर भरण -पोषण भत्ते का केस दर्ज कर दिया | . एसडीएम ने त्वरित कार्यवाही करते हुए निर्णय दिया कि पुत्र पिता को यह भत्ता दे |
बुजुर्गों में अकेलापन
इस पर बुजुर्ग ने उस अधिकारी से हाथ जोड़ कर प्रार्थना किया और कहा कि उन्हें पैसा-वैसा नहीं चाहिए | मेरे पास जीवन-यापन करने के पेंशन तो मिलते ही है | मैं सिर्फ अपने परिवार के साथ रहना चाहता हूँ | वैसे तो हम अकेले रह ही रहे थे, लेकिन बीते कोरोनाकल में मैंने अकेलेपन का जो दंश झेला, उससे मैं टूट चूका हूँ |
इसी कारण मुझे महसूस हुआ कि, धन-दौलत से बढ़कर परिवार का साथ होता है | धन दौलत अकेलापन को दूर नहीं कर सकता |

दोस्तों, यह अपने आप में कोई अकेला मामला नहीं है | हमारे देश में आजकल बुजुर्गों की उपेक्षा ने एक महामारी का रूप ले लिया है | मैं पहले भी अपने ब्लॉग के माध्यम से एक घटना का ज़िक्र किया था | जिसमे एक बेटे बहु ने अपने बुजुर्ग पिता की सारी सम्पति ले ली थी और कोरोनाकाल में बिमारी की हालत में अपने उसी पिता को घर में अकेला छोड़ कर भाग खड़े हुए थे |
पड़ोसियों ने उनकी मदद की और उनका इलाज़ कराया और वे ठीक हो गए, लेकिन ज़िन्दगी भर के लिए ज़ख्म लेकर आज अकेलापन की ज़िन्दगी जी रहे है |
आज पारिवारिक-सामाजिक विघटन हमारे सामने सबसे बड़ा संकट बन चूका है | बाकी जो भी चुनौतियां हैं, उनसे निपटने में हमारा देश सक्षम है. लेकिन इस तरह की सामाजिक चुनौती से निपटने का फिलहाल कोई रास्ता नज़र नहीं आता |
सिर्फ अकेलापन ही नहीं, बुजुर्गो की तो और भी बहुत सारी समसयाएं हैं |
बुढ़ापा एक समस्या है
वैसे तो बुढापा अपने आप में खुद एक बहुत बड़ी समस्या है | शरीर साथ छोड़ने लगता है, याददाश्त और सहनशक्ति लगातार घटती जाती है | तरह तरह की बीमारियाँ घेर लेती हैं | बहुत से दैनिक कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है |
हालाँकि , इन सब तकलीफों को वे किसी तरह सहन करते हुए जी रहे है |

लेकिन उनकी सबसे बड़ी समस्या है उनके अकेलेपन का अहसास | बच्चों के जाने-अनजाने गलत व्यवहार के कारण उन्हें अपना घर ही पराया लगने लगता है | उन्हें लगता है कि, अब घर में उनकी कोई ज़रुरत नहीं रह गयी है | वे अपने को बहुत अधिक उपेक्षित, बीमार और असहाय महसूस करते है | इस सब मुसीबतों से घबरा कर वे दिन-रात ईश्वर से अपने मौत की प्रार्थना करते हैं | लेकिन मौत का वक्त तो ईश्वर ने तय कर रखा है |
दोस्तों, मैं एक विडियो प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसमे एक बुजुर्ग खुद अपनी दर्द को हमलोगों से साझा कर रहे है | आप ज़रूर देंखें और महसूस करेंगे कि बुढ़ापा का दर्द क्या होता है ?
मेरा मानना है कि छोटी-छोटी बातें हैं, जिनका ध्यान रखकर बहुत सी समस्याओं से बचा जा सकता है | परिवार के लोगों के मन में पहले से बुजुर्गों के प्रति कोई बुरा भाव नहीं होता | लेकिन उनकी किसी बात पर वे इतनी बुरी तरह झुंझलाकर कुछ बोल जाते हैं कि यह लहजा बुजुर्गों के मन को ठेस पहुँचाता है | कहने वाला सहज भाव से कहकर चला जाता है. कुछ देर बाद उसे भूल भी जाता है | लेकिन बुजुर्ग उसे मन में पालकर बैठे हुए दुखी होते रहते हैं |
उनके पास खाली समय बहुत होता है, लिहाजा वही बात उनके मन में सदा घूमते रहते है और वे तिल तिल मरते रहते है | उनको लगता है कि जिस बेटे को हमने कितनी तकलीफें से पाला-पोषा , आज वही मेरी भावनाओं की उपेक्षा कर रहा है | अब अपनों की शिकायत करे तो किस से करे ?
यह समस्या सिर्फ हमारे देश में ही नहीं है , बल्कि यूरोप के देशों में भी यह समस्या भयंकर रूप ले चूका है | वहाँ भी बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्या अकेलापन ही है. वहाँ भी बुजुर्ग बहुत अकेलापन महसूस करते हैं |

अनेक अध्ययनों से पता चला है कि ज्यादा समय तक समाज से अलग-थलग रहने की वजह से बुजुर्गों में सेहत से जुडी कई दिक्कतें आ जाती हैं | जिनमें डिप्रेशन और स्ट्रेस मुख्य हैं | इससे उनकी रोगों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है |
खैर, पश्चिमी देशों में तो अधिकतर बुजुर्ग अलग ही रहते हैं. बच्चों के साथ रहने वाले बुजुर्गों की संख्या कम ही है | विदेशों में तो बुजुर्ग या तो ओल्ड एज होम्स में रहते हैं, या बच्चों से अलग | लेकिन भारत में अधिकतर बुजुर्ग बच्चों के साथ ही रहते हैं | हालाकि अब हमारे देश में भी बुजुर्गों द्वारा वृद्धा आश्रमों में रहने का चलन बढ़ रहा है, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है |
जो बुजुर्ग अपने बच्चों के साथ रहते हैं, उनके साथ बच्चों तथा परिवार के दूसरे सदस्यों का रवैया बहुत अच्छा नहीं रहता | हालाकि अनेक परिवारों में बुजुर्गों का बहुत सम्मान भी होता है और उनकी देखभाल में कोई कसर नहीं रखी जाती, लेकिन ऐसे सौभाग्यशाली और संस्कारित परिवारों की संख्या कम ही देखने को मिलती है |
कोरोना काल में बुजुर्गों की समस्याएं और अधिक बढ़ गयीं | डॉक्टर्स का कहना है कि इस महामारी से बुजुर्गों की जान को ज्यादा जोखिम है | इसके कारण उन पर अनेक पाबंदियां लगा दी गयीं | पहले वे मंदिर जाते थे, अपने हम-उम्र लोगों के साथ कुछ समय बिताकर दुःख-सुख साझा कर आते थे, भजन-कीर्तन में चले जाते थे, कथा-भागवत सुनने चले जाते थे, या कुछ हलकी-फुल्की गपशप भी हो जाती थी | लेकिन कोरोना के जोखिम के चलते उन्हें एक तरह से घर में कैद कर दिया गया |

कोरोनाकाल में एक बात अच्छी बात भी देखने को मिली | इसके पीछे बुजुर्ग के स्वास्थ्य की चिंता तो निश्चित ही रही, लेकिन यह चिंता भी कम नहीं रही कि, कहीं ये संक्रमित हो गये तो पूरे घर को संक्रमण होने का खतरा है | इसलिए बुजुर्गों का परिवारों में खूब देख भाल होने लगा | इस कारण परिवार के सदस्य बुजुर्गों के अधिक करीब आ गए |
बुजुर्गों के साथ समय बिताएं
लेकिन इन्टरनेट के इस युग में एक नयी समस्या खड़ी हो गयी है | अधिकतर परिवारों में बड़े और बच्चे सभी अपने-अपने मोबाइल में ही उलझे रहते है और बुजुर्गों की स्थिति जस की तस बही रही, वही अकेलापन |.
वैसे हर बात के दो पहलू होते हैं | बुजुर्गों को भी बच्चों के साथ कुछ एडजस्ट करना आना चाहिए | बहू के साथ खटपट बहुत आम बात है. लेकिन उन्हें बड़प्पन दिखाते हुए, अपने अनुभव के आधार पर स्थिति को सम्हालना चाहिए |
परिवार में बहू के महत्व को समझकर उसके साथ व्यवहार करना चाहिए | ऐसा नहीं होने पर सबसे ज्यादा फजीहत बेटों की होती है | वे न अपनी पत्नी को छोड़ सकते और न माता-पिता को |
उसे दोनों के मान-सम्मान के लिए अनेक समझौते करने पड़ते हैं | इससे उपजे अनेक प्रकार के तनावों के कारण उनकी शारीरिक-मानसिक सेहत पर बुरा असर पड़ता है | लिहाजा इस बात का पूरा ख्याल रखना चाहिए कि उनके व्यवहार से घर में कलह नहीं हो |

सौभाग्यशाली हैं वो लोग, जिनके घर में बुजुर्ग हैं | यह भी एक कटु सत्य है कि बुजुर्गों का महत्त्व उनके न रहने पर ही समझ आता है | अगर आप के घर में बुजुर्ग हैं तो कुछ समय बुजुर्गों के साथ भी अवश्य बिताएं |
वे लोग अभागे हैं जो यह कहते हैं कि, माता-पिता उनके साथ रहते हैं | सौभाग्यशाली वे हैं, जो कहते हैं कि हम माता-पिता के साथ रहते हैं | यह व्यक्ति की सोच को दर्शाता है |
बुजुर्गों को सहेज कर रखिये | उनके साथ अच्छा व्यवहार कीजिए | उनकी कोई बात आपको नागवार भी लगे, तो उसकी अनदेखी करें | वे अपने आशीषों से आपकी झोली भर देंगे |
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Categories: infotainment
Loneliness is a problem for elderly everywhere. It must be especially bad in countries where the elderly rely on their children for support.
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yes dear,
it is quite natural that the elderly have to rely on their children for support.
but the kid has no time and no emotions for the elderly.
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Padke ache bhi laga aur thoda bura bhi!!!
Share karne k lie dhanyawad.
Me asha karta hu ap swasth and kush he 🙂
Please sir, aisa na feel kijeyega ki ap akele he.
Apke sath apki Wp community hamesha he.
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सही कहा डिअर | आपस का प्रेम भाव दुःख और अकेलापन को दूर करता है |
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जी हां
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आपके स्नेह के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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बिल्कुल सही सर। आज बुजुर्गों की स्थिति बहुत भयावह है। पहले बच्चे उनके साथ खेलते भी थे। वे उनको लेकर बैठते भी थे पढाने। परंतु आज स्थिति बिल्कुल बदल गई है।
एक पंक्ति में कहें तो
सामान की कीमत ज्यादा हो गई है घरों में बुजुर्गों से।
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वाह, बहुत मार्मिक बात कही है आपने |
आज बुजुर्गों की भावनाएं आहत हो रही है |
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यह एक समयोचित आलेख है, किंतु नए युग के बुजुर्ग भावनाओ में बह कर ऐसी गलती नहीं करते। सेवा निवृत्ति के पूर्व प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी अब इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया जाने लगा है। एक ही मूल मंत्र है आज का – सावधानी हटी दुर्घटना घटी।
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बिल्कुल सही कहा है सर् जी।
लेकिन हम भावुक लोग भावना में बह जाते हैं।
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बहुत अच्छा आलेख। इस दौर से तो सभी को गुजरना ही है यानी बुजुर्ग तो होना ही है।
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सही कहा आपने | फिर भी बुजुर्गों की देख भाल ठीक से नहीं होती है |
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Budhapa ek samasya hai.Hum usko avoid nahi karte.Baaki bhagwan upar .Karma se badhkar kuchh nahi.Jo honeka yohi hoga.Samasya hamesa rahega.Aap ka blog accha hai.
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Very well said. Man proposes God disposes of.
Thanks for sharing your feelings.
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
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