
दूसरे दिन एक अनजान आदमी मुझे लेने आया | वह मेरे बाप का दोस्त था शायद | मैंने पहले कभी उसे नहीं देखा था | मैं पिता से मिलने की सोच कर बहुत खुश थी और घर में किसी को कुछ बताए बिना चुपके से उस आदमी के साथ चल दी |
मैं टैक्सी में जा रही थी और आने वाले अपने सुंदर भविष्य की कल्पना कर रही थी | वो तो मेरा अपना बाप है | मैं उसका अपना खून हूँ | वह मेरे साथ वो सलूक कभी नहीं कर सकता जैसे इस सौतेले बाप ने किया है |
मेरा एक बॉय फ्रेंड भी था | उसे मैं सब कुछ साफ साफ अपने बारे में बता दिया था | सोचा था कि उसकी सहनभूति और उसका साथ मिलेगा, लेकिन वह मुझे जूठा थाली का खाना समझ कर मुझसे रिश्ता ही तोड़ लिया | वो एक शरीफ खानदान से ताल्लुक जो रखता था |
करीब एक घंटे के सफर के बाद मेरी टॅक्सी रुकी | मैं इधर उधर देखी तो महसूस हुआ कि वह तो एक हॉस्पिटल है | मैं आगे बढ़ती हुई हॉस्पिटल के एक कमरे में पहुंची जहां मेरा बाप बेड पर पड़ा था | उसकी आंखे धँसी हुई थी और शरीर क्या था सिर्फ हड्डी का कंकाल |
मैं तो उन्हे पहचान भी नहीं पा रही थी | उन्हे देख कर मुझे बहुत दुख हो रहा था | मेरे आँखों से झर – झर आँसू बह रहे थे | मुझे इस तरह रोता देख कर उनके आंखो से भी आंसु बहने लगे |

तभी साथ आए व्यक्ति ने बताया – तुम्हारे पिता को कैंसर है और वे कुछ दिनों के मेहमान है | मुझे यह सुन कर लगा मानो फिर मेरा अच्छे दिन का सपना चकनाचूर हो गया | मैं बैठे बैठे बहुत रोई | मेरे पिता भी बस रोते जा रहे थे | उनके आंखो में एक असहनिए पीड़ा दिखाई दे रही थी |
मैंने अपने आँसू पोछे और अपने पिता के सिर पर हाथ रखा और बस इतना कहा – आप को कुछ नहीं होगा पिता जी, मैं आपकी खूब सेवा करूंगी |
दूसरे दिन हॉस्पिटल से पिता को उनके घर पर ले आई | एक छोटा सा कस्बा था लिलुआ | घर खुद का था और ज़रूरत के सभी समान थे | वो साथ वाले व्यक्ति पिता के ऑफिस के दोस्त थे और मेरे पिता के इलाज़ का सारा खर्चा ऑफिस वाले ही वहन कर रहे थे |
पिता जी की देख – रेख के लिए एक कामवाली भी थी, घर का सभी काम उसी के जिम्मे था |
मैं मन ही मन सोच रही थी कि अपने पिता की खूब सेवा करूंगी और उन्हे इस रोग से मुक्त कराउंगी | आज कल तो कैंसर का इलाज संभव है |
लेकिन मेरा अनुमान गलत निकला | एक महीना बीते ही थे कि एक दिन मेरे पिता मुझे छोड़ कर इस संसार से विदा हो गए | डॉ ने बताया कि उनका कैंसर अंतिम चरण में पहुँच चुका था | मैं आने वाले सुंदर भविष्य को समाप्त होते हुये देख रही थी |

तब मुझे पता चला कि मेरे पिता ने अपने पीएफ़ के पैसे और बैंक में जमा रकम में मुझे nominee बना रखा है | मुझे पैसों का सहारा और रहने को घर तो नसीब हो गया था | मैं उसी घर में रहने लगी और काम वाली ही अब मेरा सहारा थी | वह मुझे बेटी के जैसा मानती थी और हर कदम मेरा साथ देती थी | उसकी कोई औलाद नहीं थी, वह एक विधवा थी |
मुझे अब किसी चीज़ की कमी नहीं थी | खाने पीने से लेकर रहने तक की व्यवस्था पिता जी ने मरने से पहले ही कर दिया था | लेकिन उस घर की चारदीवारी में अकेलापन मुझे खाये जा रही थी | साथ ही ज़िंदगी की पिछली बातें हमेशा मेरा पीछा करती रहती | सौतेले बाप का आतंक याद कर, मेरे रूह कांप जाते थे | मैं अपने मन को शांत नहीं कर पा रही थी |
मेरा दिमाग पागलों जैसा हो गया | मैं फिर से drug addict बन गई | आप जो यह सिगरेट देख रहे है, यह चरस है, जिसे लेना मेरी मजबूरी बन गई है |
उसकी आप बीती सुन कर मेरे आँसू भी नहीं रुक पाये | मैंने उसे कुछ हिदायतें दे कर कल मिलने का वादा किया और फिर उससे मैं विदा हुआ |
चार दिन बीत चुके थे और मैं हमेशा उस लड़की के बारे में ही सोचा करता था | उसे नशे की आदत से मुक्ति दिलाना चाहता था ताकि वह सामान्य ज़िंदगी जी सके |
तभी दोस्तों से मुझे एक नशा मुक्ति संस्था का पता बताया | रविवार का दिन था और शाम के वक़्त मैं उसी बेंच पर बैठ कर उस लड़की का इंतज़ार कर रहा था | ठीक शाम से सात बजे वह हमारे सामने खड़ी थी | आज उसके साथ कोई साथी – संगी नहीं थी | मैं उसे अपने पास बैठाया और उसे भरोसा दिलाया कि तुम इस addiction से छुटकारा पा सकती हो और एक नई ज़िंदगी की शुरूआत कर सकती हो |

हालांकि, शुरू में उसे अपने आप पर ही संदेह था, लेकिन मैंने उसे काफी समझाया और हिम्मत दिलाया कि तुम इस जंजाल से मुक्त हो सकती हो | बस, तुम हिम्मत रखो और अच्छे समय का इंतज़ार करो | मैं उस नशा मुक्ति संस्था के अधिकारी से फोन पर बात बात किया और मिलने के लिए अगले दिन का समय लिया |
सही समय पर अगले दिन हम दोनों वहाँ पहुँच गए | मैं उसके अभिभावक के रूप में उसे वहाँ दाखिला कराने की सारी औपचारिकता पूरी की | और तब उसका इलाज शुरू हो गया | शुरू – शुरू में समय निकाल कर मैं उससे मिलता रहता था | मैं खुश था कि उसकी स्थिति में सुधार हो रहा था | लेकिन इसी बीच अचानक मेरा ट्रान्सफर दूसरे शहर हो गया और उससे मेरा संपर्क भी खत्म हो गया |
इस बात को गुजरे 15 साल हो गए | आज के अखबार में जब उसी लड़की की तस्वीर देखी तो मैं चौक गया | उसका नाम मकाई बासु था ,और उसे मुख्य मंत्री द्वारा सम्मानित करने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाना था |
उन्हीं ख्यालों में गुम, सामने पड़ी मेरी चाय ठंडी हो चुकी थी | इसके बावजूद मुझे मकाई बासु के बारे में पढ़ कर और उसकी तस्वीर देख कर एक अजीब खुशी का अनुभव हो रहा था | मेरा मन उससे मिलने को उत्सुक था , 15 साल के लंबे अंतराल के बाद वह मुझे पहचान भी पाएगी या नहीं ? फिर भी मेरा दिल कह रहा था कि उससे मिलना चाहिए |

मैं अगले दिन नियत समय पर उस function में उपस्थित था | मैं उससे मिलने हेतु वहाँ के एक स्टाफ से अपना विजिट – कार्ड उस तक भिजवा दिया और उस हाल के एक कोने में पर बैठ कर उसके जबाब का इंतज़ार करने लगा | थोड़ी देर में वह खुद चल कर मेरे पास आई और मेरे पास ही बैठ गई | आज वो बेहद खूबसूरत और खुश नज़र आ रही थी | आज उसे सम्मानित जो किया जाना था |
मैं उसे प्रश्नभरी नज़रों से देख रहा था | इन 15 सालों में वह कितनी बदल गई थी | मुझे तो देख कर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह वही मकाई बासु है, जिसे 15 साल पहले इसी नशा मुक्ति संस्थान में छोड़ा था | आज वो इस संस्था की सर्वे सर्वा है |
मेरे आंखो में तैर रहे प्रश्न को वह पढ़ ली थी शायद | इसीलिए, वह अपने सीट से उठते हुए कहा – थोड़ी देर सब्र कीजिये, आपके सभी प्रश्नो के जबाब मिल जाएँगे | इतना कह कर वो मुसकुराते हुए चली गई | कार्यक्रम शुरू हुआ और मैं उसके बारे में ही सोच रहा था |
तभी माइक पर उद्घोषणा हुई और मकाई बासु के बारे में संक्षिप्त परिचय देने के बाद माइक पर उसे बोलने हेतु आमंत्रित किया गया |
उसके बारे में उद्घोषक ने जो संक्षिप्त परिचय दिया था, उससे पता चला कि वह न सिर्फ एक समर्पित समाज सेविका है बल्कि एक बहुत बड़ी motivation speaker भी है |

उसके मंच पर आते ही तालियों की गड़गड़ाहट से उसका स्वागत किया गया | उसके आकर्षक व्यतित्व और उसके चेहरे से आत्मविश्वास झलक रहा था | वह अपनी तेज़ तर्रार बातों और आकर्षण अंदाज़ में अपने जीवन के संघर्ष की कहानी बता रही थी |
उसके कहा – जब मैं Drug addict थी, तब इस संस्था ने मुझे एक नया जीवन दिया | तभी मेरे अंदर यह इच्छा जागृत हुई कि मेरी तरह जो समाज के उपेक्षित लोग है उनकी मैं सेवा करूँ । तन मन धन से मैं इस काम में लग गई | यह संस्था आप लोगों के आशीर्वाद से बढ़ता गया और आज राज्य का सबसे बड़ा नशा मुक्ति केंद्र है |
यह संस्था लोगों को नशा से मुक्त ही नहीं कराता है बल्कि उसे आगे की ज़िंदगी जीने के लिए हर संभव मदद करती है | उसके रोज़ी – रोटी का इंतजाम कर उसे एक नई ज़िंदगी शुरू करने का मौका भी प्रदान करती है | वहाँ उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध हो कर उसकी बातें सुन रहे थे |

फिर उसने अपने बारे में बताते हुए कहा – एक मेरी अपनी माँ है जिसने मुझे जन्म तो दिया | लेकिन उसने मेरा जीवन नरक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा और दूसरी तरफ विमला देवी है जो मेरे साथ खड़ी है | उन्होने मुझे जन्म तो नहीं दिया लेकिन मुझे कुछ इस तरह से संभाला कि आज मैं जो कुछ भी बन पायी, उसमें इनका बहुत बड़ा योगदान है | ये मेरी माँ ही नहीं है सब कुछ है | आज फिर आप सबों के सामने इनके पैर छु कर आशीर्वाद लेना चाहती हूँ |
और हाँ, एक और भी इंसान है, जिसने मेरे ज़िंदगी को सँवारने और सही रास्ता दिखाने में मेरी मदद की है | मैं तहे दिल से उनको शुक्रिया कहती हूँ और उन्हे आप सभी लोगों से भी मिलवाना चाहूंगी |
मकाई बासु की बातों को सुन कर गर्व से मेरा सीना चौड़ा हो गया | मुझे लगा कि मैंने ज़िंदगी में कुछ नेक काम किए है | थोड़ी देर में मेरा नाम पुकारा जा रहा था, मुझे मंच पर आमंत्रित किया जा रहा था, मुझे ढूंढा जा रहा था लेकिन मैं उस सभा में अपने सीट पर नहीं था |
(यह एक काल्पनिक कहानी है, इसके फोटो google.com से लिए गए है )

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I believe in evidence,
I believe in observation, measurement, and reasoning.
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Kahani ka ant Bahut sundar hai .Jindegi intihaan leti hai. Bhagwan ki ichha.
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आपने सही कहा |
ज़िंदगी मे संघर्ष न हो तो जीने का मज़ा ही क्या |
हाँ, अंत भला तो सब भला |
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