बिहार के एक महान गणितज्ञ

मशहूर गणितज्ञ “वशिष्ठ नारायण सिंह”

हमारा बिहार देश का अनोखा राज्य है | इसका  इतिहास गौरवशाली रहा है, क्योंकि इस धरती ने चंद्रगुप्त मौर्य जैसा शासक दिया तो चाणक्य जैसा अर्थशास्त्री भी । शून्य की खोज करने वाला आर्यभट्ट दिया तो सम्राट अशोक जैसा चक्रवर्ती सम्राट भी ।

मैं बिहारी हूँ और बिहार पर मुझे गर्व है और हो भी क्यों ना, बिहार को गौरवान्वित करने वाले बहुत सारे कारण मौजूद है | वैसे तो हमारे बिहार की धरती ने बहुत सारी  विभूतियों को जन्म दिया है .. जिन्होंने अपनी कला और योग्यता से बिहार को गौरवान्वित किया है  |

 आज मैं उन विभूतियों में से एक के  बारे में चर्चा करना चाहता हूँ,  उनका नाम है डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह | आज  अगर वे जीवित होते तो अपना 80 वां जन्मदिन मना रहे होते | लेकिन दुर्भाग्य से आज वे हमारे बीच नहीं हैं।

गरीबी मे लालन – पालन

डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह का जन्म भोजपुर जिला  के आरा सदर प्रखंड के बसंतपुर में एक अति साधारण परिवार में  हुआ |  वह साल था 1942 और महीना था अप्रैल का।  उनके पिता लाल बहादुर सिंह और माँ लहासों देवी बहुत गरीबी  में उनका लालन पालन किया |

लेकिन  कहते हैं  न कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं | वे बचपन से ही एक मेघावी छत्र रहे | उनकी  मेधा की चर्चा प्राथमिक स्कूल में ही होने लगी, तभी तो घर वालों ने उनका नाम  विख्यात नेटरहाट स्कूल में लिखवा दिया, जो उस जमाने का सर्वश्रेष्ठ आवासीय विद्यालय था।

डॉ वशिष्ठ ने मैट्रिक की परीक्षा में पूरे बिहार में टॉप किया। वे कठिन से कठिन गणित के सवाल को  मुजबानी हल कर देते थे |

गणित की दुनिया मे अलग मुकाम हासिल किया

1961 में 19 साल की उम्र में  उनका दाखिला पटना विश्व विद्यालय के साइंस कॉलेज में हुआ |  वहां के प्रोफेसर टी नारायण, उनकी प्रतिभा से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। उन्होंने कहा कि यह छात्र तो B.Sc टॉप करने की क्षमता रखता है।

फिर राज्यपाल से अनुरोध कर B.Sc फाइनल की परीक्षा में बैठने की विशेष अनुमति दिलाई गयी, तब वशिष्ठ पार्ट-1 के छात्र थे। कहते हैं  B.Sc की परीक्षा में वशिष्ठ नारायण सिंह ने यूनिवर्सिटी में टॉप किया। इसी तरह M Sc में भी ऐसा ही हुआ | वे प्रथम वर्ष में ही   M Sc  फ़ाइनल परीक्षा दे कर टॉप किया |

 गणित की दुनिया में जो उन्होंने एक अलग  मुकाम हासिल किया | हम कह सकते है कि  उसकी सदियों तक मिसाल दी जाती रहेगी । जब  भी डॉ वशिष्ठ नारायण की चर्चा होगी, तो साथ में यह भी कहा जाएगा कि उस कीमती  हीरे को  हम  सहेज कर रखने में नाकाम रहे ।

लोगों के  आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होने उस समय के कठिन से कठिन सभी गणित के सवाल को हल कर दिया | वो भी एक नहीं बल्कि अनेक तरीकों से उसे हल किया |

प्रोफेसर केली से उनकी मुलाक़ात

उन्होंने बहुत ही कम उम्र में प एचडी कर भारत के सबसे कम उम्र के पी एचडी  होल्डर  बन गए | बिहार के इस होनहार की चर्चा भारत ही नहीं तब अमेरिका तक पहुँच गयी। लोग बताते हैं कि अमेरिका के एक प्रोफेसर केली, जो एक गणितज्ञ थे, वशिष्ठ से मिलने पटना आए |

प्रोफेसर केली ने  उनसे कहा – मैं तुम्हारे बारे में बहुत सुन चुका हूँ, लेकिन तुम मेरे गणित के प्रश्न को हल कर के बताओ | वे कठिन से कठिन सवाल उनके सामने रखते गए और डॉ वशिष्ठ ने उन सवालों का हल  मौखिक रूप से देते गए | यह देख कर केली आश्चर्यचकित रह गए | उन्हे  आभास हो गया कि  डॉ वशिष्ठ  कोई साधारण विद्यार्थी नहीं है |

उन्होने अपने साथ डॉ वशिष्ठ को  बर्कले यूनिवर्सिटी, अमेरिका लेते गये । वहां महज तीन साल में ही उन्होंने एम एससी और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से प एचडी  की।

 यह वर्ष 1969 की बात है। वे उसी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर की नौकरी करने लगे। और फिर  जल्द ही नासा में एक वैज्ञानिक के रूप में  अपनी सेवाएं दी।

NASA में  अपोलो की लॉचिंग के समय

डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह के मेधा की विश्व पटल पर ख्याति मिलने की एक बड़ी प्रसिद्ध और रोचक कहानी है। कहते हैं कि NASA में  अपोलो की लॉचिंग के समय  तकनीकी  समस्या के कारण 31 कंप्यूटर एक बार कुछ समय के लिए बंद हो गये। तब डॉ. वशिष्ठ भी उसी टीम में थे। उन्होंने अपना कैलकुलेशन जारी रखा। जब कंप्यूटर ठीक हुए तो उनका और कम्प्यूटर का कैलकुलेशन एक था।

इस घटना ने नासा के वैज्ञानिकों को भी अचंभित कर दिया | यही नहीं वहाँ  नासा के साथ साथ पूरा अमेरिका आश्चर्य चकित रह गया कि  31 कम्प्युटर का काम अकेले  एक इंसानी दिमाग ने कैसे कर दिया |

प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती

डॉ. सिंह के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन के सापेक्ष सिद्धांत को चुनौती दी थी । कहा जाता है कि प्रोफेसर केली भी अपनी बेटी की शादी वशिष्ठ नारायण से करना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बन सकी।

उनका मातृभूमि से प्रेम

डॉ वशिष्ठ के काम से प्रभावित हो कर अमेरिकी  सरकार ने उन्हे  जॉब के साथ – साथ  वहाँ का permanent  citizenship देने के लिए प्रस्ताव दिया |

लेकिन जन्मभूमि की पुकार ने उनको अपना देश , अपना घर आने के लिए मजबूर कर दिया | वे अपने देश के लिए अपना दिमाग इस्तेमाल करना चाहते थे |

इसीलिए  अमेरिका का यह ऑफर ठुकरा कर 1971 में वे भारत लौट आए । उन्होने यहाँ  IIT Kanpur ,BIFR और IISI  कोलकाता में काम किया | सब कुछ सही चल रहा था , तभी अचानक एक दिन उनके पिता ने एक फरमान सुना दिया | वो यह कि तुम्हारे लिए शादी का रिश्ता आया है, जिसके लिए मैंने हाँ कर दिया है |

उन्होने  पिता जी से कहा – मैं एक गणितज्ञ हूँ और मुझे शादी ब्याह में कोई दिलचस्पी नहीं है | मैं काम में इतना व्यस्त रहता हूँ कि  गृहस्थी के लिए समय नहीं दे पाऊँगा |

लेकिन उनके इच्छा के विरुद्ध 1973 में उनकी शादी कर दी गई | उस जमाने में अपने पिता का विरोध करने की हिम्मत नहीं होती थी |

शादी के बाद उन्होने अपनी पत्नी  से कहा – मैं एक थीसिस पर काम कर रहा हूँ , इसलिए तुम्हें समय नहीं दे पाऊँगा | लेकिन तुम्हें इसके अलावा जिस चीज़ की ज़रूरत हो तुम्हें देता रहूँगा | सचमुच, वे एक थीसिस पर गहन शोध कर रहे थे जो जल्द ही पूरा होने वाला था |

उनकी मृत्यु की रहस्यमय कहानी

लेकिन शादी के कुछ समय बीतने के बाद  अचानक उनकी मानसिक हालत  खराब हो गई | और वे सिज़ोफ्रेनिया नाम की मानसिक बीमारी से ग्रसित हो गए |  यह एक तरह का पागलपन होता है | लेकिन यह बीमारी उन्हे क्यों हुई इसके पीछे तीन तीन कहानियाँ सुनने को मिलती है | क्या सही है आप खुद ही तय करेंगे |

मैं बिहारी हूँ और बिहार पर मुझे गर्व है

पहली कहानी यह है कि कुछ लोगों के द्वारा उनके रिसर्च पेपर का गलत इस्तेमाल  किया गया | उनके मेहनत से किए रिसर्च  का दूसरे लोग क्रेडिट लेने लगे |  जिससे उन्हे सदमा लगा गया और तब मानसिक बीमारी हुई |

दूसरा कहानी है कि  वे अपने दिमाग का ज़रूरत से ज्यादा उपयोग करते थे | वे दिन भर दिमाग को बिना आराम दिये बस अपने थेसिस में ही लगे रहते थे | इसी कारण से उनके दिमाग का mental breakdown हो गया |

और तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण घटना जो  उनकी पत्नी के कारण बताई जाती है | जैसा कि वे अपने थीसिस में लगे रहने के कारण अपनी पत्नी को समय नहीं दे पा रहे थे | पत्नी को  यह बात बहुत बुरी लगती थी | उनकी पत्नी ने  सोचा कि यह कागज़ का टुकड़ा, जिस पर हमेशा लिखते रहते है, वही इन दोनों के बीच दुश्मन है |

सदमे से मानसिक संतुलन बिगड़ गया

वे पढ़ी लिखी नहीं थी इसलिए उस पेपर की  महत्ता का आभास उसे नहीं था |  इसलिए एक दिन गुस्से में आ कर उसने सभी थीसिस  के पेपर  में आग लगा दी | अपने सालों के मेहनत से थीसिस जो पूरे होने के कगार पर थे उसे जलते हुये देखा और  वे यह बरदस्त नहीं कर पाये |  

यह उनके लिए एक गहरे सदमे से कम नहीं था | इस घटना के कारण उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया | उनका इलाज  शुरू किया गया  पर इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ और वे पागलपन के शिकार ही बने रहे  |  ऐसी परिस्थिति में उनकी पत्नी ने उनसे तलाक ले ली | इन सब घटनाओं का उन पर गहरा असर पड़ा और इस कारण कारण वे और अधिक बीमार होते चले गए |

उनके मित्र डॉ वीरेंद्र कुमार कहते हैं कि उन्हें भूल जाने की बीमारी थी, लेकिन शायद अपनी पत्नी से अलगाव की बातें वे नहीं भूले थे | शायद यही वजह रही होगी 1989 में लापता होने के बाद 1993 में वो बेहद दयनीय हालत में छपरा के डोरीगंज में एक झोपड़ीनुमा होटल के बाहर प्लेट साफ करते हुए मिले | वह जगह उनके ससुराल खलपुरा से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही थी |

उन्हें पगलखाना में भर्ती कराना पड़ा | उन्होने अपने जीवन के 11 साल उस पागलखाने में बिताए |

उसके बाद उनके इलाज का खर्च सरकारी स्तर पर उठाने की घोषणा की गई । उनके भाई और गांव के दो लोगों को सरकारी नौकरी दी गई ताकि डॉ वशिष्ठ की ठीक तरह से देख भाल हो सके |

बाद में डॉ सिंह के इलाज की व्यवस्था बेंगलुरु में करायी गई । लेकिन यह व्यवस्था भी वशिष्ठ नारायण सिंह को पूरी तरह ठीक कर पाने में नाकाम रही । अंत में वे गांव में ही रहने लगे |  जहां उनकी मां, भाई अयोध्या सिंह और उनके पुत्र मुकेश सिंह देख-रेख करते थे।

उनकी सेवा में उन लोगों ने कोई कसर नहीं छोड़ी | पूरा परिवार उनकी सेवा में दिन रात लगा रहता था।

मानसिक संतुलन बिगड़ गया

तकरीबन 40 साल तक मानसिक बीमारी सिज़ोफ्रेनिया से पीड़ित वशिष्ठ नारायण सिंह पटना के एक अपार्टमेंट में अपने अंत समय में  गुमनामी का जीवन बिताते रहे। कभी-कभी कोई संस्था वाले उनको सम्मान के लिए बुलाते और यदा-कदा उनके स्वास्थ्य की स्थिति अखबारों में प्रकाशित होती रहती।

उनके जानने वाले बताते है कि  “इस दौरान भी किताब, कॉपी और एक स्लेट, पेंसिल उनके सबसे अच्छे दोस्त थे। पटना में उनके साथ रह रहे भाई अयोध्या सिंह याद करते हुये बताते हैं – “डॉ वशिष्ठ अमेरिका से अपने साथ  10 बक्से भरकर किताबें लाए थे, जिन्हें वो पढ़ा करते थे।

अक्सर किसी छोटे बच्चे की तरह ही उनके लिए तीन-चार दिन में एक बार कॉपी, पेंसिल लानी पड़ती थी। जिस पर वो कुछ कुछ लिखते, जिसे पठना और समझना मुश्किल था। अक्सर रामायण का पाठ करते रहते थे |

मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया

इन्हीं परिस्थियों में रहते हुए 14 नवंबर, 2019 को पटना के पीएमसीएच में उन्होंने आखिरी सांस ली। सरकार ने राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि करायी और केन्द्र की मोदी सरकार ने डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह को मरणोपरांत पद्मश्री से सम्मानित किया।

दोस्तों, हमारे राज्य ने बहुत सारे इनके जैसे  प्रतिभावान लोगों को पैदा किया है | लेकिन हम राज्य के लोग उनके प्रतिभा का और उनके ज्ञान का सही उपयोग नहीं कर पाये, तभी तो हमारा राज्य बिहार सब कुछ होते हुये भी आज पिछड़ा है |

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13 replies

  1. Thank you very much for penning about such a great mathematician. I read this blog completely. I feel very sorry for his mental state, which should not have happened. Very pathetic. 😞

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  2. Kafi achi jankari mili.
    Inke upar movie banni chahiye, taki younger generation ko inke bare me pata chale.

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    • ऐसा विद्वान विरले ही होते है | लेकिन उनके जीवन का
      अंत बहुत दुखद हुआ , वो भी हम सबों की गलती के कारण |
      बिलकुल सही कहा , इन के जीवनी पर movie बननी चाहिए |

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  3. I have read his story several times, and every time I felt very bad. The man who was recognised worldwide for his talent, couldn’t get a respectable treatment from his countrymen.

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  4. बहुत अच्छी जानकारी।

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  5. This article or this kind of personality give you happiness and sadness at the same time. Call it a faith! Extremities does not help anyone. There is 4 phase in life which everyone has to go with. Balance is the key.

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  6. Very well said dear,
    That is the tragedy of life. Such a brilliant scholar has a pitiable end.
    Yes, the balance is the key of life..
    .

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  7. Very good information about the great scientist. Tragic life of Dr.Vashist.

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  8. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Your life must be so boring if you have time to sit
    around and gossip about other people’s business.

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