# दोहरी ज़िन्दगी #

बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो सामने कुछ और पीठ पीछे कुछ और होते हैं। ये लोग आपके सामने अपना असली स्वभाव पेश नहीं करते, जिसकी वजह से हम उनका असली चेहरा नहीं देख पाते है | वो दोहरी ज़िन्दगी जीते है |

ठीक इसके उलटा कुछ लोग ऐसे होते है जो खुद के लिए दोहरी जिन्दगी जीते हैं | वे आसपास के लोगों के सामने तो खुशमिजाज या बेफिक्र दिखने की कोशिश करते है | लेकिन असल में होते उससे ठीक उलट है। उनके अन्दर हमेशा ही विचारो की जंग छिड़ी रहती है |

उसी अंतर्द्वंद को शब्दों के माध्यम से कहने की कोशिश है यह कविता

दोहरी ज़िन्दगी

मैं अपने जिस्म में दो इंसान लिए फिरता हूँ

एक को  गोरा तो दूजा को  काला  कहता हूँ

एक तो बेहद  मासूम, इमानदार, दिलदार  भोला भला,

 दूजे  को  एक दम निखट्टू ,बेईमान, लालची, महसूस करता हूँ ..

एक  को कभी कभी हँसाने के लिए. दूजे  को रुला लिया  करता हूँ ..

मैं अपने जिस्म में दो इंसान लिए फिरता हूँ //

उम्र के इस पड़ाव पर, कभी – कभी अपनी जुवान  सी लिया करता हूँ 

कभी,  गुरुर का क़त्ल कर  . .मजबूरी को जी लिया करता हूँ

जीवन के संघर्ष को कुछ इस  तरह निभाता हूँ ….

कभी शहद  की  कटोरी छोड़.. विष समंदर का पी लिया करता हूँ..

सच, मैं अपने जिस्म में दो इंसान लिए फिरता हूँ //

( विजय वर्मा )

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Categories: kavita

17 replies

  1. So beautiful! Good one 👌👌

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  2. Extraordinário 👏👏👏 Gostei muito 💗

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  3. Beautifully composed and shared.

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  4. बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण कविता।

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  5. Bahut Badhia Kavita.

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  6. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    People will try to pull you down but you need to fight the
    negativity in your life. It is always good to
    stay positive and think positive.

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