
मिश्रा जी, वैसे तो सारी ज़िंदगी बैंक के काम करते हुये बिता चुके थे | लेकिन बचपन से ही उनके मन में हिन्दी साहित्य के प्रति खास आकर्षण था | अब रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने जवानी के दिनों में लिखी गई वह डायरी जो आज जीर्ण – शीर्ण अवस्था में थी, उनको प्राप्त हुआ |
वह अपनी इस डायरी को अपनी बीवी से छुपा कर रखते थे | जब भी उनकी बीबी की नज़र उस डायरी पर पड़ती, वह बिफर उठती | आप को प्रेम – व्रेम की कहानी लिखते हुये शर्म नहीं आती | लोग देखेंगे, और पढ़ेंगे तो क्या कहेंगे, कि इस उम्र में बुढ़ऊ प्रेम कहानियाँ लिख रहे है |
कभी बाल – बच्चों को तो ढंग से प्यार किया नहीं , बस डायलोग (dialogue) ही लिखने में माहिर हो |
मिश्रा जी अपने reading table पर डायरी के पन्नों को पलटते हुए मन में उठते गुबार को महसूस कर रहे थे |

कुछ देर सोचने के बाद उन्होने मन ही मन फैसला कर लिया कि अब वो कहानी को प्रकाशित कर के ही रहेंगे |
आज कल प्रेरक (motivational) विडियो देख कर मिश्रा जी जोश में नज़र आ रहे थे |
मिश्रा जी सुबह – सुबह मोबाइल में प्रवचन सुन कर अपने सोच को बदलने का प्रयास कर रहे थे | उन्होंने ठीक ही तो सुना है कि ट्राफिक सिग्नल ग्रीन (green) होने का इंतज़ार मत करो | किसी चीज़ के लिए सही समय का इंतज़ार मत करो | बस जितनी जल्द हो सके अपनी योजना लागू कर दो | बाद में उसमें सुधार करते रहो |
अब रिटायरमेंट के बाद मिश्रा जी को कोई और काम तो था नहीं | इसलिए इस बार उन्होंने अपनी कहानी प्रकाशित करने का निर्णय ले ही लिया | हालांकि इस मामले में अपना कोई नज़र नहीं आता था जो थोड़ी सी भी उनकी हौसला-अफजाई कर सके |

अपने डायरी के जीर्ण – शीर्ण पन्नो को लेकर वे एक प्रकाशन वाले के पास पहुंचे और अपनी मंशा ज़ाहिर कर दी |
उनके डायरी के ज़ीर्ण -शीर्ण पन्नो को देख कर उस प्रकाशक ने मिश्रा जी को घूर कर देखा , मानो कह रहा हो — जब कागज़ के पन्ने ही दुरुस्त नहीं है तो कहानी क्या खाक दुरुस्त होगा ?
तभी उसकी नज़र कहानी के कुछ लाइन पर गई और वो बस अपनी साँसे रोके आगे पढ़ता गया | प्रकाशक को अपनी गलती का एहसास हुआ | वो मिश्रा जी को पूरी आश्वासन के साथ कहानी छापने की बात पर राज़ी हो गया |
पूरे एक महीने बाद उनकी कहानी एक उपन्यास का रूप ले चुकी थी | अब तो मिश्रा जी मन ही मन अपने को “गुलशन नन्दा” समझने लगे थे |

इस कहानी के सकारात्मक प्रतिक्रिया (response) से मिश्रा जी का मनोबल बहुत बढ़ चुका था | उन्होंने मन ही मन एक और कहानी लिखने की प्रतिज्ञा कर डाली |
लेकिन अभी दस दिन भी नहीं गुजरे थे कि डाक के द्वारा एक नोटिस प्राप्त हुआ , जिसमें दावा किया गया था कि यह कहानी चोरी की गई है, क्योंकि मूल कहानी तो पहले ही छप चुकी है |
मिश्रा जी की रातों की नींद गायब हो गई | उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उनका कहानी पहले कोई कैसे छाप सकता है, वो भी हु – बहू बिलकुल उसी की नकल |
वे परेशान तो थे ही, उधर से उनकी पत्नी भी ताने मार रही थी … चौबे जी छब्बे बनने चले थे, दुबे बन कर लौटे |
मिश्रा जी को रात में ठीक से नींद नहीं आई थी | इसलिए सुबह सुबह ही वे मॉर्निंग वॉक के लिए पार्क में चले गए | वहाँ वे गुमसुम एक बेंच में बैठ हुए थे | तभी उनके साथ रोज़ टहलने वाले शर्मा जी की नज़र, मिश्रा जी पर पड़ी जो बिलकुल बुझे बुझे से नज़र आ रहे थे |
शर्मा जी ने पास आते ही पूछा – क्या बात है मिश्रा जी ? लगता है, रात में ठीक से नींद नहीं आई ?
आप ठीक कहते है शर्मा जी | आज कल मैं एक परेशानी में हूँ | मिश्रा जी भावुक हो कर अपनी कहानी वाली पूरी बात बता दी | और यह भी कहा कि कहानी तो मेरी लिखी हुई है लेकिन वो तो मुझ पर ही चोरी का इल्ज़ाम लगा रहा है और कॉपी राइट के तहत 5 लाख का दावा भी ठोक दिया है |
शर्मा जी ने पूरी बात सुन कर उन्हे सलाह दी कि वो उस व्यक्ति से फोन पर बात क्यों नहीं करते ? ताकि हकीकत पता लगाया जा सके |
मिश्रा जी को उनकी सलाह ठीक लगी | और उन्होने वहीं बैठे बैठे फोन लगा दिया |

करीब 20 मिनट तक वार्तालाप चली | उस व्यक्ति ने सच – सच बता दिया कि कहानी उसकी लिखी हुई नहीं है, लेकिन उसने अमन मिश्रा से 500 रुपए दे कर खरीदी थी |
उसने यह भी बताया कि मिश्रा जी के किताब छापने के नौ महीने पहले ही उसकी किताब मार्केट में आ चुकी थी ?
अब मिश्रा जी को सही बात का पता चला और उन्होंने अपना माथा पकड़ लिया |
अमन मिश्रा उनका ही अपना सपूत है , लेकिन वह ऐसा काम क्यों किया ? उनकी समझ से बाहर की बात थी |
उन्होंने इस बात से संतोष कर लिया कि जब अपना ही सिक्का खोटा है तो जमाने को क्या दोष दें ?
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अच्छी कहानी। अपने खुद के बेटे की करतूत पढ़ कर बुरा लगा।
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सही क्या। हमें सभी के भावनाओं की कद्र करनी चाहिए।
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Acchi Kahani. Baap se bad kar Beta.
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हा हा हा …Yes dear,
Thanks for sharing your feelings.
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Good evening friends
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