ज़िंदगी ने सबसे कोई न कोई कीमत वसूल की |
कोई सपनों की खातिर, आफ्नो से दूर रहा ‘
कोई अपनों की खातिर सपनों से |

कौन हूँ मैं ? यह एक कठिन प्रश्न है | लोगों को अपने बारे में जानने में सारी उम्र गुज़र जाती है | सच, ज़िंदगी में सबसे कठिन समय यह नहीं होता है जब कोई मुझे समझता नहीं है , बल्कि यह तब होता है जब हम अपने आप को ही नहीं समझ पाते.|
चलो , कुछ समय निकाल कर अपने बारे में पता करते है …कौन हूँ मैं ?

कौन हूँ मैं ?
दुनिया के भूल भुलैया में
खोया हुआपहचान हूँ मैं ,
अपनो ने जो ज़ख्म दिए
उन ज़ख्मों के निशान हूँ मैं,
बार बार क्यों पूछते हो यारो
कहाँ से आया, कौन हूँ मैं ?
अनजान चेहरों के जंगल में
अपना वजूद ढूंढता, इंसान हूँ मैं
(विजय वर्मा)
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Bhut khoob sir ji 👏🏻👏🏻
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Thank you so much dear..
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