# आशिक बना रखा है #

लोग कहते थे, वो बड़ा सौभाग्यशाली है, वो जो चाहता था, उसने पा लिया है |  कम से कम बेचारा भ्रम में तो रहा | परिस्थितियों के साथ एक दिन उसका भ्रम भी टूट गया |
प्रेम में  कोई सफल नहीं हो सकता | बाहर की यात्राएं सफल होने नहीं देती |

क्योंकि जिसको तुम तलाश रहे हो वो  बाहर नहीं , वह भीतर मौजूद है | इसलिए बाहर जो तुम्हें  दिखाई पड़ता है और जब तुम पास पहुंचते हो, तो खो जाता है | मृग-मरीचिका है. — सिर्फ दूर से सुंदर दिखाई पड़ता है |

आशिक सरेआम बना रखा है

आज भी तुझे मन मस्तिष्क में बसा रखा है

तेरी एक खूबसूरत तस्वीर सीने से लगा रखा है

दुनिया के भीड़ का आलम मत पुछो सनम ,

तेरे ही शहर में एक अलग बस्ती  बसा रखा है,

अब नहीं भरता कूचे किसी तस्वीर में रंगों को

पर तेरी तस्वीर में चंपई रंग सजा रखा है 

तेरी यादों को, उन वादों को भूल न जाऊँ कहीं

दिल के मन – मंदिर में एक मूरत बना रखा है,

जब भी मैं उदास और परेशान होता हूँ गोया

आसमान में तेरी यादों का इंद्रधनुषी रंग बिछा रखा है,

सरेआम तेरा नाम कैसे लूँ , ऐ नाजनीन

पतझड़ के पत्तों पर तेरा नाम लिखा रखा है |

तेरे चेहरे की मुस्कुराहट, और आंखों की चमक को

मेरी कविता ने अपना आशिक, सरेआम बना रखा है |

(विजय वर्मा )..

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Categories: kavita

26 replies

  1. अच्छी कविता।

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद डियर |

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  3. आपके शब्द मुझे लिखने की प्रेरणा देते है |

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  4. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Anyone can love a Rose, But it takes a lot to love a Leaf,
    It is ordinary to love the Beautiful, But It is Beautiful to love the Ordinary.

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