दोस्तों,
आज कल स्कूल -कॉलेज खुल रहे है , सभी प्रतिष्ठान खुल रहे है |
लेकिन कोरोना का प्रकोप पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है | हमें अब भी
विशेष सावधानी बरतनी चाहिए | मुझे वह भयावह मंज़र भूलना नहीं चाहिए ,
जो कोरोना ने हमें दिखाएँ है …..

पिछले कुछ दिनों से सारे समाचार माध्यमों में एक खबर सुर्ख़ियों में है …
नदी में तैरते लाशों के सम्बन्ध में |
ऐसा समाचार सुन कर मन विचलित हो जाता है | यह कैसा समय आ गया है , आदमी हर पल बस अपने मौत के आने के डर से तिल – तिल कर मर रहा है |
उसे ऐसा लग रहा है कि अगर करोना का ग्रहण लगा तो बचाने के लिए कोई नहीं आएगा .., ना सगे सम्बन्धी आएंगे और ना ही इलाज़ की सुविधा मिलेगी |
यहाँ हमें एक पुराने गीत की पंक्ति याद आ रही है ….
रामचन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा ...
हंस चुगेगा दाना दुनका , कौवा मोती खायेगा.
इसका तात्पर्य यह है कि एक समय ऐसा आएगा, जब योग्य व्यक्तियों की उपेक्षा होगी एवं अयोग्य व्यक्तियों को, अन्य कारणों से, महत्वपूर्ण पद और स्थान सौंपे जाएंगे । इस कारण…
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बिलकुल सही कहा आपने। अभी भी सावधानी ज़रूरी है।
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जी बिल्कुल सही है । सावधानी ज़रूरी है।
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