मंज़िल यूं ही नहीं मिलती राही को, थोड़ा सा जुनून जगाना होता है,
पूछा चिड़ियाँ से कि घोंसला कैसे बनता है ? बोली तिनका तिनका उठाना पड़ता है |
जब मेरी तनहाई बोलती है तो मेरे कहने को कुछ भी नहीं रह जाता… अगर हम ईमानदारी से सुनें तो तनहाई हमारी आत्मा की आवाज बन कर दिल की गहराइयों में उतर जाती है | मैं बस इसे सुनता हूँ और कलम की मदद से कागजों पर महसूस करता हूँ |
..अगर इसे सही तरह से सुन कर समझ लिया जाए तो मैं समझता हूँ कि फिर और किसी गुरु की ज़रुरत नहीं रह जाती है ..और हमारा हृदय ही हमारा प्रेरणा स्त्रोत बन जाता है। इसलिये मैं मानता हूं कि मेरा कोई और गुरू नहीं है …मेरी तनहाई के सिवा।
अगर सही मायने में अपने हृदय के द्वार खुल जाएं तो फिर हमें आत्मा की यात्रा में गतिशील होने से कोई नहीं रोक सकता, यह बात बिलकुल सत्य है | शायद मेरी अंतर्यात्रा शुरू हो चुकी है। मेरी यह प्रेरणा आपकी भी अंतर्यात्रा की प्रेरणा बन जाए यही मेरी…
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