#ज़िन्दगी मिल गयी है#

दोस्तों,

प्रेम एक ऐसी अनमोल चीज़ है जिसकी हर किसी को तमन्ना होती है | दुनिया में कोई भी रिश्ता प्रेम के बिना बेजान और नीरस बन जाता है |

प्यार के इस ढाई अक्षर शब्द को  परिभाषित  करने के लिए कितने ही कवियों और शायरों ने बड़े – बड़े ग्रन्थ रच डाले हैं | फिर भी वे पुर्णतः प्यार को परिभाषित करने में असफल ही रहे है |

इस सन्दर्भ में कबीर दास की  रचना याद आती है,  जो उन्होंने अपने पंक्तियों  में प्रेम को परिभाषित करने का प्रयास किया है .. पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुवा , पंडित हुआ न कोय.…. उन्होंने जो प्रेम के बारे में कहा,  वह सच्चाई से ज्यादा करीब है |

ज़िन्दगी मिल गयी है

देखा है बिना कहे, दिल की बात समझ लेते है
गले लगते ही दोस्त, मेरा हालात समझ लेते है

मैं  परियों की  किस्से सुनाता हूँ उनको   
वो जिंदगी जीने का अंदाज समझ लेते है

जमाने की सारी …खुशी मिल गई है
तुम क्या मिले ..जिंदगी मिल गई है

लरजते लवों को कहानी  मिल गई है
खामोशी को जैसे जवानी मिल गई है

हमे क्या मिले तुम बंदगी  मिल गई है
जीवन की बगिया में कली खिल गयी है

उदास  लवों को .. हँसी मिल गई है
जमाने की सारी…खुशी मिल गई है

तुम क्या मिले,ज़िन्दगी मिल गयी है|

                    विजय वर्मा

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Categories: kavita

18 replies

  1. Beautiful post and Kabir’s Doha added more meaning to your post

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  2. अच्छी एवं भाव पूर्ण कविता।

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद डियर |

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  4. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    हनुमान जन्मोत्सव के इस पावन पर्व की
    आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं …
    जय श्री राम |

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