
ऐसा कहा जाता है कि पुराने जमाने से ही ब्राह्मण लोग का हमारे समाज में एक विशेष स्थान है | आज भी वह परंपरा चली आ रही है | आज कल तो पंडित लोग तो ऐसा दिखावा करते है जैसे उनका भगवान् से सीधा संपर्क है |
जो ब्राह्मण हमारे घरों में पूजा पाठ करवाते है, उनका हमलोग बहुत आदर – सम्मान करते है | पूजा पाठ के समय उनके द्वारा बताये नियमों का पूरा पालन करते है | सच, उनमे हमारी विशेष आस्था है |
मुझे भी कभी – कभी पंडित लोगों से पूजा करवाने हेतु उनकी सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त होते रहता है |
लेकिन कभी कभी हम कुछ ऐसी घटना से रु -ब- रु हो जाते है, जिसे देख कर उनके प्रति हमारा विश्वास डोल जाता है | और तब उन्हें विशेष इंसान नहीं बल्कि ढोगी बाबा कहने पर मजबूर हो जाते है |
वैसे आज कल बहुत से ऐसे बाबा है जो अपने नीच कर्मो के कारण सलाखों के पीछे है | खैर उनके बारे में तो ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूँगा , लेकिन अभी कुछ दिनों पूर्व की घटी एक घटना का ज़िक्र करना चाहता हूँ |
हमारे एक दोस्त के घर सत्यनारायण भगवान् की कथा थी | मैं भी वहाँ गया हुआ था |

पंडित जी सुबह तय समय पर आ गए | आते ही उन्होंने कहा – मेरे पोथी के हिसाब से आज का दिन बहुत शुभ है , इसीलिए मुझे आज पांच जजमान के यहाँ सत्यनारायण भगवान् की कथा सुनानी है | यानी यहाँ से मुझे पूजा करवा कर ज़ल्द निकलना होगा |
खैर पूजा शुरू हुई, और अनुमान से कम समय में ही पूजा समाप्त भी हो गया |
फिर जजमान के द्वारा पंडित जी को जलपान के लिए निवेदन किया जाने लगा |
पंडित जी ने कहा – नहीं, मुझे सिर्फ चाय पिला दीजिये |
लेकिन, हमलोग तो “अतिथि देवो भवः” में विश्वास रखते है | उन्हें जलपान के बिना कैसे विदा कर सकते थे | इसलिए घर की मालकिन खुद ही किचन में जाकर गरम गरम पुड़ियाँ तलने लगी |
पकौड़ी और पूड़ी की आती सुगंध ने पंडित जी को सोफे पर बैठने को मजबूर कर दिया | और वे ड्राइंग रूम से सोफे पर विराजमान हो गए | फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया | वे अपना “पोथी – पतरा” खोल कर बैठ गए और फिर उन्होंने कहा – हम जन्म-कुंडली देखते है और बनाते भी है | ग्रह – गोचर के बारे में जानना चाहते है तो वो भी बता सकते है |
पंडित जी के मुख से ग्रह गोचर के बारे में सुन कर हम सभी को लगा कि अब हमारे जितने भी कष्ट है ये पंडित जी सभी का निवारण कर देंगे | अब हमारे अच्छे दिन आ जायेंगे | वैसे भी सत्यनारायण भगवान् की पूजा की याद तभी आती है, जब हमारे ग्रह कुछ अच्छे नहीं चल रहे होते है |

फिर घर के कुछ सदस्य अपने जन्मपत्री लेकर पंडित जी के पास आये और उनको घेर कर सभी लोग बैठ गए |
पंडित बहुत खुश थे | उन्हें तो यहाँ बिज़नस का अच्छा स्कोप दिख रहा था | पहले जजमान का कुंडली देखते ही बोल पड़े – आपके भाग्य के घर में तो राहू और केतु दोनों कुंडली मार कर बैठे है | इसीलिए आपके सभी कार्यों में विघ्न उत्पन्न हो जाता है और आप हमेशा अपने को परेशानी में महसूस करते है |
यह तो सही है, कि आज हर आदमी किसी न किसी कारण से परेशान है | इसलिए पंडित जी की बात पर विश्वास करना लाज़मी था |
जजमान ने भावुक होकर अपने मन की सारी बातें पंडित जी को बता दी | उनको व्यक्तिगत ज़िन्दगी में क्या क्या कष्ट है वो सभी कुछ सुना दिए, बस आँखों से से आँसू नहीं बहाया |
जजमान की दुःख भरी बातें सुन कर पंडित जी ने कहा – आप के कष्ट का निवारण हो जाएगा | लेकिन इसके लिए महामृतुन्जय जाप करना पड़ेगा |
ज़ज़मान को लगा जैसे डॉक्टर साहेब ने रोग को पकड़ लिया है और दवा के एक गोली से रोग गायब हो जायेगा |
उन्होंने आशाभरी नज़रों से पंडित जी को देखा और उत्सुकतावश पूछा – इस पूजा में कितना खर्च आएगा ?

पंडित जी अपने आँखों को हवा में घुमाते हुए कुछ सोच विचार करने लगे और फिर confidence के साथ कहा – मुझे पांच पंडित को साथ लेकर 11 दिन तक आपके नाम से जाप हम अपने मंदिर पर करवा देंगे | वैसे तो इसका खर्च 55,000 रूपये लेता हूँ | लेकिन आपके दुःख तकलीफ को देखते हुए 35,000 रूपये में आपका कार्य पूर्ण करा दूंगा |
जजमान सुन कर बहुत खुश हो गए | वाह, पंडित जी तो भारी छुट के साथ ऑफर दिया है | हालाँकि, अभी – अभी सत्यनारायण कथा में अनुमान से दोगुना दक्षिणा ले लिया है |
तभी पंडित जी ने जोर दे कर कहा – आप इस कार्य में देरी नहीं करें, जितना जल्द हो सके पूर्ण करा लें |
उन्होंने आगे कहा — मुझे पता है आपके पास समय का अभाव, इसलिए सारा कार्य हम अपने मंदिर में ही आपका नाम लेकर कर देंगे | और आप देखेंगे कि आपका सारा दुःख -दर्द तुरंत छू मंतर हो जायेंगें |
इस सब बातों के बीच, गरम गरम पूड़ी – खीर हाज़िर हो गयी | घर की मालकिन अपने हाथो से बना कर लाई थी , जैसे कि भगवान् को ही भोग लगाया जा रहा हो | हालांकि घर का खाना तो घर की नौकरानी बनाती है, लेकिन पंडित जी को अपने हाथो से बना कर खिलाने से शायद बहुत पुण्य होता होगा |
पहले तो पंडित जी ने सिर्फ चाय पीकर जाने की बात कही थी, लेकिन अब पंडित जी भी एक मंझे खिलाडी की तरह पुड़ियाँ गिनने लगे और घर में जितनी पुड़ियाँ बनी थी सबों को डकार गए | भला हो पंडित जी का कि और पूड़ी की फरमाईस नहीं की |

लेकिन घर के बाकी सदस्यों के लिए तो पूड़ी बनानी ही होगी | अब घर की मालकिन फिर रसोई घर में पुड़ियाँ तलने में व्यस्त हो गयी |
इस बीच पंडित जी पूजा की सामग्री, अपना पोथी आदि अपने थैला में डाल कर अगले जजमान के यहाँ चल दिए |
वैसे उन्होंने अपना फ़ोन नम्बर दिया भी और जजमान का फ़ोन नम्बर लिया भी | भाई, बिज़नस की बात है | पंडित जी के लिए तो जजमान ही भगवान् होते है |
पंडित जी के जाने बाद घर के बाकी सदस्य ने भी भोजन ग्रहण किया | मैं भी उसमे शामिल था | फिर प्रसाद बांटने का काम शुरू करना था | जब उस ओर नज़र गया तो सभी लोग स्तब्ध रह गए | जितना भी फल और मिठाई पूजा हेतु आया था वो सभी गायब थे | ज़ज़मान ने सोच रखा था कि पूजा के बाद सभी फल को काट कर और प्रसाद बनाकर पुरे मोहल्ले में बांटेंगे | जितने ज्यादा लोग प्रसाद ग्रहण करेंगे, उतना पुण्य होगा |
लेकिन पंडित जी तो चोरी नहीं बल्कि डकैती कर गए | उन्होंने एक भी फल और मिठाई नहीं छोड़ा | उन्होंने शायद सोचा होगा – करोनाकाल में लोग न किसी के यहाँ आते है और न किसी के पास जाते है तो फिर प्रसाद का यहाँ क्या ज़रुरत होगी |
अब तो जजमान को पंडित जी पर बहुत गुस्सा आ रहा था | यह तो बेइज्जती वाली बात हो गयी कि पूजा हुआ और प्रसाद ही नदारत |
पंडित जी के इस व्यवहार से जजमान के विश्वास को बहुत ठेस लगा | वे बाज़ार से दोबारा फल और मिठाई लाकर और उसी का प्रसाद बना कर सभी लोगों में बाँट रहे थे और सोच रहे थे कि महा-मृतुन्जय का जाप कराना उचित रहेगा या नहीं ?
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Categories: मेरे संस्मरण
कड़वी सच्चाई। इसी लिए तो लोगो का धर्म कर्म में बिश्वास घट रहा है।
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बिलकुल सच कहा है आपने |
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वाकई आजकल पंडिताई मात्र एक छलावा बनकर रह गया है। कुछ इसी प्रकार की घटनाएँ पंडितों द्वारा हर जगह देखने को मिलती हैं। यह हमारी श्रद्धा और विश्वास को दीमक की तरह कुतरने लग गया है। वह दिन दूर नहीं जब पंडिताई एक पाखंड के सिवा कुछ और कहलाने के लायक नहीं रह जाएगा।
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बिलकुल सही कहा आपने |
यह एक सच्ची घटना है | इसे देख कर श्रद्धा और विश्वास को ठेस लगती है |
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संसार में जब तक आलसी और मुर्ख रहेंगे चालाक भूखे नहीं मरेंगे ।
जहां तक पंडितों की बात है उनमें भक्ति भाव लेश मात्र भी नहीं रहता है।अब हम स्वयं की बात करें ।हम स्वयं पूजा पाठ जप भजन कीर्तन नहीं करके इसका ठीका किसी और को दे देते हैं और स्वयं पुण्य लाभ की निरर्थक चतुराई करते हैं । भला पैसे से भी कभी भक्ति और पुण्य अर्जित किया जा सकता है ? जब आप भगवान को के साथ साथ स्वयं को भी ठगते हैं तो कोई दूसरा आपको अवश्य ठगेग ।
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आपने बिलकुल सही कहा | हम आस्था का काम भी दुसरे से कराना चाहते है और
खुद फल की उम्मीद करते है | हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी और
भक्ति की शक्ति को महसूस करना होगा |
अपने विचार शेयर करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
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हमलोग सभी अपने अपने घरों में आए दिन भगवान सत्यनारायण की कथा करवाते हैं । कभी ध्यान से उक्त कथा सुनने का प्रयास किया है आपने ? नहीं । उक्त कथा में दूर दूर तक सत्य की कोइ चर्चा तक नहीं है। वस्तुतह सत्य ही नारायण अर्थात परमेश्वर है । कब थोड़ा अपना निरीक्षण कीजिए। सत्यवादिता को हम अपने जीवन में कितना प्रतिशत उतार पाते हैं ? सत्य से हम दूर दूर तक कोई ताल्लुक नहीं रखते और सत्यनारायण भगवान की कथा करवाते हैं । हमारी कथनी और करनी में कितना फर्क है । दुनिया में दोष निकालने से पहले हमें खुद को परिष्कृत करना होगा ।
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आपने बिलकुल सटीक प्रश्न उठाया है | हमलोग कथा को ध्यान से नहीं सुनते है |
परमेश्वर की सच्चाई को जानते हुए भी हम पाप करने से नहीं चुकते |
हमें अपनी कथनी और करनी पर ध्यान देने की ज़रुरत है |
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पंडित जी की लालच अलग चीज है, पर महामृत्युंजय के जाप का अंतर तो पड़ता है, यह मैं ने आंखों से देखा है।
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सर, यह ज़रूरी है कि हम पूजा सही विधि विधान से करते है |
इसका प्रभाव तो ज़रूर है , लेकिन हम नियम से भटक जाते है |
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गज़ब के पंडित जी😝😝😝
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हहाहाहा ..आज के पंडित ऐसे भी होते है |
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
Good morning Friends..
You cannot hug yourself. You cannot cry on your own shoulder,
Life is all about living for one another…
so live with those who Love you most.
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