# मेरा सुसाइड नोट #

कभी कभी मन में ख्याल आता है कि जब मनुष्य का अंतिम समय आता है तो वह क्या सोचता होगा ?  वैसे मैंने सुना है कि मृत्यु सैया पर पड़ा इंसान जब अपने मौत का इंतज़ार करता है उसे पता नहीं होता कि वह कब संसार से विदा लेने वाला है | लेकिन उसके  मन में कुछ पश्चताप रहता है |

वह बस यही सोचता है कि काश, मैंने अपने लिए भी थोडा समय निकाल पाता | लेकिन सांसारिक मोह माया और परिवार की जिम्मेदारियों में कुछ इस तरह उलझ जाता है कि ज़िन्दगी कब निकल जाती है, पता ही नहीं चलता |

दूसरी तरफ एक ऐसा इंसान जिसे पता है कि उसे कब मरना है और कितनी देर में मरना है | जाहिर सी बात है कि वह सुसाइड करने वाला है | तो मरने के पहले उस इंसान की मनःस्थिति कैसी होती है | उस समय उसके दिमाग में क्या चल रहा था  ? उसी से सम्बंधित एक कहानी प्रस्तुत है |

सुबह का वक़्त,  करीब पांच बज रहे थे | तभी  एक शख्स की अचानक एक कार से टक्कर हो जाती है और कुछ ही देर में सड़क पर तड़पते हुए उसकी मौत हो जाती है |  संयोग से  पुलिस वाला  कार चालक को पकड़ लेती  है |

लेकिन ड्राईवर का कहना है कि उसने धक्का नहीं मारा है बल्कि वह शख्स जान बुझ कर उसकी गाडी के आगे कूद गया था | और कार स्पीड में होने के कारण समय पर रोक नहीं सका | हालाँकि उसने ब्रेक मारी थी जिसके निशान सड़क पर मौजूद थे | मरने वाला कुछ दूर गाड़ी के साथ घिसटता चला गया था जिसके कारण उसकी मौत हो गयी थी  | 

 पुलिस उस जगह की बारीकी से जांच किया तो  उसे ड्राईवर की बात  सही लग रही थी | तभी भीड़ में खड़े एक शख्स ने उस मृत व्यक्ति को पहचान लिया और पुलिस को  उसके छोटे  भाई का फ़ोन नम्बर दिया |

पुलिस की खबर पाते ही उसका भाई दौड़ता हुआ बदहवास कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुँच जाता है | उसने पुलिस को बताया कि यह उसका बड़ा  भाई  है | नाम है सुनील वर्मा और वह बैनर और पेन्टिंग की दूकान चलाता  है | उसकी उम्र करीब ४२  साल थी |  लेकिन तभी अचानक तहकीकात के दौरान उस मृत इंसान के पॉकेट से एक सुसाइडल नोट बरामद हुआ , जिसे पढ़ कर सभी लोग सकते में आ गए |

उस नोट में लिखा था — मैं सुनील वर्मा, नंगथला का रहने वाला हूँ |  अब मैं इस सांसारिक मोहमाया से बहुत दूर जा रहा हूँ | घर पर मेरी बीबी और तीन बच्चे है, लेकिन अब वो मेरा इंतज़ार नहीं करेंगे क्योंकि मैं उनलोगों को भी अपने साथ लिए जा रहा हूँ |

उसके  सुसाइड नोट पढ़ कर उसका भाई बुरी तरह घबरा जाता है और सभी लोग घर की तरफ भागते है | मुख्य दरवाज़ा को थोडा सा धक्का देते ही वह खुल जाता है और फिर अन्दर का जो मंज़र था वह  दिल दहला देने वाला था |

एक तरफ उसकी बीबी सीमा देवी (३८ वर्ष) की लाश खून से लथपथ फ़र्श पर पड़ी थी | और दुसरे कमरे में उसकी बड़ी बेटी 14 वर्ष, दूसरी बेटी १० वर्ष और सबसे छोटा बेटा 7 साल सभी का मृत शरीर पड़ा हुआ था | इस तरह चार लाशें वहाँ पड़ी थी |

हर तरफ फर्श पर खून बिखरे पड़े थे और पास में एक लोहे का सरिया पड़ा था | शायद लोहे के सरिये से वार कर उन लोगों की हत्या की गयी थी |

घर की तलाशी के दौरान पुलिस को एक और 11 पन्नो का नोट मिला जो उसी के द्वारा लिखा गया था | पुलिस और वहाँ मौजूद  लोगों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि हकीकत क्या है ? तभी उनलोगों की नज़र वहाँ दीवार पर टंगे बोर्ड पर  पड़ी | उस पर चाक से यह  लिखा हुआ था – सब सो रहे है, और अब शांति है | यह लिखावट सुनील वर्मा की ही थी क्योंकि वह लिखावट सुसाइड नोट के लिखावट से मिल रही थी |

फिर पुलिस की एक टीम बनाई गयी और  उस 11 पन्ने के नोट का बारीकी  से अध्ययन किया जाने लगा , जिसमे लिखा था —   

रात के 11 बज रहे है | अभी न दुःख है और न डर | ठण्ड भी महसूस नहीं हो रही है | कब 11 बज गए पता ही नहीं चला | मुझे सब कुछ निपटाने में करीब 2 घंटे लगे |

आज मुझे खीर खाने का बहुत मन कर रहा था इसलिए अपनी पत्नी सीमा को कहा – आज खीर बनाओ | उसने बहुत ही स्वादिष्ट खीर बनाई | हम सभी ने एक साथ खीर खाया |  लेकिन उससे पहले मैंने पत्नी और बच्चो के खीर में नींद की दवा मिला दिया था | वे लोग खीर खाते ही गहरी नींद में चले गये और इस तरह मेरा काम आसान हो गया |

आज मेरी लिखावट भी बदली बदली सी लग रही है |  हाथ भी थोडा काँप रहा है | मैंने जो भी किया यह अचानक हुआ, ऐसा नहीं है | ना कोई मन में बोझ है  और ना किसी का क़र्ज़ है, और न ही कोई मज़बूरी |

मैं महीने के ५०,००० रूपये तक कमा रहा हूँ | ज़िन्दगी मज़े से कट रही है | ज़िन्दगी के अपने सारे सपने पुरे कर चूका हूँ |

मैं बचपन से ही सभी भाई बहनों में सबसे अलग था | मेरी सोच अलग थी |  मेरे मन में एक सवाल बार बार उठता था कि मनुष्य सांसारिक मोह माया में  पड़ कर एक कोल्हु में बंधे बैल की तरह सारी ज़िन्दगी घिसता क्यों है ?

मैंने दर्शन शास्त्र में ग्रेजुएट हूँ |  जीवन का दर्शन कुछ इस तरह समझ पाया हूँ कि हमलोग सांसारिक मोह माया में बंधे हुए है | दिन रात लोग बस भाग रहे है, भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए |

लेकिन मुझे अब किसी  भौतिक वस्तु में कोई आनंद नहीं रहा | पहले  मेरे दिमाग का एक हिस्सा सांसारिक मोह माया में उलझा रहता था | लेकिन जब मेरे पिता मेरे आँखों के सामने गरीबी से लड़ते हुए अपनी जीवन की जंग हार गए और इस संसार को छोड़ कर चल बसे थे | तब मै सांसारिक मोह माया को छोड़ साधू बनना चाहता था |

लेकिन पिता की मृत्यु के बाद घर का बोझ मेरे ऊपर आ गया था | घर वालों ने  मेरे इच्छा के विरूद्ध मेरी शादी भी कर दी ताकि उनलोगों का परवरिश ठीक से कर सकूँ |  मैं सांसारिक मोह माया में बंध गया | पत्नी बहुत अच्छी थी , बच्चो से भी बहुत प्यार करता हूँ | | तभी अचानक  मेरे शांत और सुखी जीवन में भूचाल आया | जब मेरे भाई बहनों ने मुझे घर से अलग कर दिया था |  ज़मीन – जायदाद में कुछ भी नहीं दिया | मैंने उन लोगों को कुछ नहीं कहा |

लेकिन मैं एक कलाकार हूँ  और कलाकार भूखा तो नहीं ही मर सकता है | मैंने अपनी पेन्टिंग और बैनर की दूकान खोल ली  और फिर बहुत पैसे कमाया |  चुनाव के समय मेरा धंधा खूब चलता है | लाखों की आमदनी हो जाती है | मैंने अपना एक घर बनाया और सुख सुविधा के सारे सामान अपने परिवार को दिया |

लेकिन सच कहूँ तो पिछले 15 सालों से मेरा मन सन्यासी ही रहा | दरअसल, मैं मोक्ष और मुक्ति चाहता था | लेकिन गृहस्थी के बंधन से मुक्त ही नहीं हो सका | मेरे अपने लोगों ने मुझे बहुत मानसिक कष्ट दिया,  फिर भी उनलोगों को माफ़ कर देना चाहता था | लेकिन मैं अपने गुस्से को काबू में न रख सका |  यही  मेरी सबसे बड़ी भूल थी |

न चाहते हुए भी मैं रूपये कमाने की मशीन बना रहा | और ज्यादा काम और ज्यादा रूपये | मैंने बहुत रूपये कमाए | लेकिन मेरा सन्यासी मन कहता — बस और नहीं , धन संचित कर क्या करना ? सभी को तो इसे छोड़ कर एक दिन जाना है | पिछले साल हुए एक्सीडेंट ने  मेरे शरीर को भी कमजोर कर दिया था | गले में असहनीय पीड़ा होती है |

मैंने अपनी पत्नी को कहा भी,  अब मुझे जाने दो | अब मैं सन्यासी का जीवन जीना चाहता हूँ | लेकिन बीबी ने जाने नहीं दिया | वो बोली — चाहे जैसे भी हालात  रहे,  जियेंगे साथ साथ और मरेंगे तो साथ साथ | तब मुझे लग गया कि अकेले तो इनलोगों को छोड़ कर जा नहीं पाउंगा |  तब मैंने यह निश्चय किया कि  सब लोगों को साथ लेकर जाऊँगा | इसलिए आज मैं उसे साथ लेकर जा रहा हूँ | क्योंकि  मुझे लोगों पर अब भरोसा नहीं है |

अब मेरे पीछे रोने वाला कोई नहीं है | मेरा मन अब बिलकुल शांत  है | अब अंत समय में मेरे साथ बुरा करने वाले सभी लोगों को मैंने माफ़ कर दिया है | अगर किसी को मैंने दिल दुखाया है तो मुझे माफ़ कर देना | अब मैं सन्यासी बन कर जा रहा हूँ | इस सांसारिक बेरहम दुनिया से और क्या कहना | कोई मेरे इस कार्य के लिए मुझे कायर न कहे | मेरा जो दौलत था यानी मेरे  बीबी  और बच्चो उन सबो को  साथ ले जा रहा हूँ | बाकि के सांसारिक वस्तु  मकान, रूपये – पैसे सब यही छोड़ कर जा रहा हूँ क्योकि इन सब चीजों में मुझे ख़ुशी नहीं मिलती है |  मेरा मन तो फकीरी में रहता है |

आज हर आदमी झूठ और फरेब में लिप्त है, जबकि पता है कि यह सब  यही रह जाना है |  आखिर  आज नहीं तो कल सभी को इस संसार को छोड़ कर जाना ही है | ….सांसारिक जीवन से मुक्ति पाना ही है | एक मेरे चले जाने से किसी को कोई फर्क नहीं पडेगा | ७२ घंटे बाद फिर सभी लोग उस भीड़ का हिस्सा बन जाएंगे, एक सांसारिक नकली दुनिया का |

खैर और ज्यादा क्या कहना | कभी अपने हाथो से चींटी तक को नहीं मारने वाला शख्स पूरा परिवार को ख़तम कर दे तो लोगों का गुस्सा होना लाज़मी है, गालियाँ  भी दे सकते है |  लेकिन अब इन सब बातों का मुझ पर असर नहीं होता |

 हाँ, मेरी अंतिम इच्छा है कि मुझे अस्पताल से सीधे शमशान घाट ले जाया जाए और मुझे और मेरी बीबी को एक ही चिता पर  जलाई जाए | मेरे राख को शमशान के आस पास पेड़ पौधों में डाल दी जाए | मुझे बस इतने से ही शांति मिल जायेगी |

अब मैं सड़क पर जा रहा हूँ , अपने शरीर का बोझ ख़तम  करना है | भोर के चार बज चुके है | मैं  घर से निकल चूका हूँ |

दोस्तों , सुनील वर्मा  के बारे में यह भी कहा जाता है कि वह इंसान ही नहीं  जानवरों से भी बहुत प्रेम करता था | इसलिए गौरैया पक्षी को लुप्त होने से बचाने के लिए इसने कितने ही वर्ष काम किया था | जगह जगह घोसला बनाता, और तरह तरह  के उपाय करता था |  कितनी बार अखबारों में उसके इस कार्य की सराहना की गयी | इसके लिए उसे बहुत सारे अवार्ड भी मिले थी | .. इतना कोमल दिल वाला इंसान आखिर ऐसा क्रूर हत्यारा क्यों बन गया ? — यह एक कठिन प्रश्न है |  ..

क्या इसका कारण अंध विश्वास है या मोक्ष ? सांसारिक सुख का त्याग जो उसके दिमाग में इस तरह हावी हो गया कि उसे  जिंदगी का यही सच नज़र आया | और उसे पाने के लिए अपने  हँसता खेलता परिवार को अपने ही हाथों समाप्त कर खुद भी खुदकशी कर ले यह कहाँ तक उचित है ?

दोस्तों, मेरे समझ से तो ज़िन्दगी में चाहे कितनी भी परेशानी हो, हमें  ख़ुदकुशी करने के बारे में कभी सोचना भी नहीं चाहिए क्योंकि  खुदकशी तो खुद एक  समस्या है जिसे डॉक्टर लोग मानसिक विकृति कहते है .. और इंसान में यह मानसिक विकृति तब आती है  जब उसकी सोच पलायनवादी हो जाती है और मन बहुत कमज़ोर हो जाता है |

 सच, मन इतना कमज़ोर हो जाता है कि इंसान किसी मुसीबत से लड़ने के बजाए ज़िन्दगी से हार कर इस दुनिया से भाग जाना चाहता है और तब  वह आत्महत्या करता है | ऐसे अनेको उदहारण हैं |

यह सही है कि ख़ुदकुशी कोई समाधान नहीं है बल्कि खुद एक समस्या है .|..लेकिन  इस समस्या का समाधान आज के वैज्ञानिक युग में है | यानि , हम उसको सही समय पर और सही मनः चिकित्सक के द्वारा इलाज़ (counseling)  कराते तो वह मानसिक रूप से स्वस्थ हो सकता था और एक बेहतर ज़िन्दगी जी सकता … | आप भी अपनी भावना प्रकट करें |

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22 replies

  1. बहुत मार्मिक घटना का विवरण है सर । क्या कहें जो इंसान पूरे परिवार के साथ आत्महत्या कर ले निश्चित रूप से मानसिक बीमार हो सकता है । आपका ब्लाग सदा प्रेरक होता है ।

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    • आज के तनाव भरी ज़िन्दगी में यह देखने को मिल रहे है , जो विचारनीय है |
      हमें जागरूकता फैलाना होगा | आप के विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |

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  2. अत्यंत दुखद!

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  3. पढ़ कर लगा कि जिन्दगी सचमुच एक पहेली है।

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  4. Bahut hi Dukhad.

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  5. Person was a negative minded. He not only killed himself but also killed his wife and 3 innocent children.
    His desire to become sanyasi an useless thought.
    Pathetic story.

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  6. यह यदि सच्ची घटना पर आधारित है, तो इस तरह की घटना बहुत ही असहनीय पीड़ा देता है और सुनकर या पढ़कर एक नकारात्मक भाव मन में पैदा करता है।
    पोस्ट के अंत में दिए गये सलाह या सुझाव इस नकारात्मक भाव को दूर करेगा सराहनीय प्रयास है।

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    • यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है | इसके खामियों के बारे में जागरूक करना ज़रूरी है |
      अपने विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |

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  7. उफ्फ डिप्रेशन के कारण

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    • जी हाँ, जीवन से असंतोष हमें डिप्रेशन की ओर ले जाती है /
      हमें संतोष से रहना चाहिए |

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  8. कितनी दर्दनाक

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  9. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Believing others is easy but
    believing in yourself is the real challenge.
    Stay happy, stay blessed..

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  10. Seems a perfect case of some psychological disease…very tragic! Very well written. Readers can feel all sorts of emotions from extreme sadness to anger! Thanks for sharing. I could never imagine it to be a true story, but yes we do read such incidents or hear them on TV.

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  11. I hardly have written stories, but did try my hand at a few. If you find time do read this here on my blog:
    अन्ततः (Finally…!)

    Finally…!

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