
हेलो फ्रेंड्स,
मुझे कोलकाता में रहते हुए करीब 15 साल हो चुके है और यहाँ की बहुत सारी यादें मुझसे जुडी हुई है | कुछ ऐसी घटनाये भी यादों में बसी है कि उसे याद करते ही चेहरे पर बरबस मुस्कराहट आ जाती है | आज के वर्तमान समय में जब हम सभी तनाव भरी ज़िन्दगी जी रहे है | ऐसे समय में वो पुरानी घटनाओं को याद कर थोडा खुश हो लेता हूँ |
आज भी एक ऐसे ही संस्मरण का ज़िक्र यहाँ कर रहा हूँ, मुझे आशा है कि आप सभी के चेहरे पर भी मुस्कराहट ज़रूर बिखर जाएगी |
बात उन दिनों की है, जब हमारी पोस्टिंग एन एस रोड, कोलकाता में थी | मैं कोलकाता के बांसद्रोणी इलाका में रहता था | ऑफिस आने जाने का सबसे सुविधा जनक साधन मेट्रो रेल ही था | लेकिन उसमे भी रोज़ रोज़ धक्का – मुक्की करते हुए भीड़ का हिस्सा बनना पड़ता था | और सच बताऊ तो, जिम के सारे कसरत मेट्रो की भीड़ करा देती थी |
उन दिनों हमारे बेटे की पोस्टिंग बर्दमान में थी और संयोग से मुझे एक माह के लिए बर्दमान से कोलकाता ऑफिस आना जाना करना पड़ा |
बर्दमान से कोलकाता का लोकल ट्रेन से एक घंटे का सफ़र था | मैं पहला दिन कोलकाता ऑफिस से करीब सात बजे निकला और वहाँ से बस के द्वारा हावडा स्टेशन पहुँचा | पहले मुझे बर्दमान के लिए टिकट लेनी थी | लेकिन टिकट काउंटर पर लम्बी लाइन थी | खैर किसी तरह लाइन में लग कर टिकट ले लिया | फिर announce हुआ कि प्लेटफार्म संख्या 6 से लोकल ट्रेन बर्दवान के लिए जाय्रेगी |

मैं प्लेटफार्म पर खड़ा ट्रेन के आने का इंतज़ार कर रहा था , तभी थोड़ी देर में ट्रेन आकर प्लेटफार्म पर लगी | जाहिर है जब यही से शुरुआत थी, इसलिए ट्रेन बिलकुल खाली आकर प्लेटफार्म पर रुकी | लेकिन ट्रेन स्टेशन पर खड़ी होते ही जैसे एक हुजूम उस पर सवार होने के लिए दौड़ पड़ा | यहाँ सभी लोकल ट्रेन का यही हाल था |
मैं चुपचाप भीड़ कम होने का इंतज़ार करने लगा तभी इंजन ने सिटी बजा दी और मैं हडबडा कर किसी तरह एक बोगी में सवार होकर उस भीड़ का हिस्सा बन गया | ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था, किसी तरह एक घंटे का सफ़र तय कर बर्दवान पहुँच गया |
लेकिन अब दूसरी चिंता सुबह सुबह बर्दमान से ऑफिस आने की थी | मुझे जल्दी बैंक के लिए निकलना होगा | ऐसा सोच कर मैं अगले दिन सुबह जल्दी उठा और तैयार होकर 8.00 बजे रेलवे स्टेशन पहुँच गया | लेकिन यह क्या ? यहाँ भी टिकट काउंटर पर बहुत लंबी लाइन थी | मैं किसी तरह हिम्मत जुटा कर टिकट लिया और बर्दमान स्टेशन के प्लेटफार्म संख्या 3 पर खड़ा हो गया |
थोड़ी देर में ही एक लोकल ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर रुकी | पूरा बोगी खाली था | मैं जल्दी से चढ़ गया, लेकिन सभी सीट पर किसी ने ताश के पत्ते बिछा रखे थे और कोई भी यात्री उस सीट पर नहीं बैठ रहा था |

मेरे जिज्ञासा को शांत करने के लिए पास में खड़े एक यात्री ने बताया कि ये सभी सीट डेली पेसंजर (daily office goar) वालों ने अपने लिए रिज़र्व कर रखा है | पहले कोई एक सहकर्मी आकर सभी सीट पर ताश के पत्ते बिछा देते है और बाकी के उसके सभी साथी ट्रेन स्टार्ट होने के समय आते है | अब उनसे पंगा कौन ले , इसलिए हमलोग इसी तरह रोज खड़े होकर सफ़र करने को मजबूर है |
मैं भी इसी तरह भीड़ में खड़ा था | गर्मी का मौसम, और उस भीड़ में पंखे की हवा भी रास्ते में ही गायब हो जाती थी | किसी तरह पसीने से लथ – पथ मैं हावडा प्लेटफार्म पर उतरा | हमारे धुले और साफ़ कपड़ो से अब डियो की खुशबु की जगह पसीने की बदबू निकल रही थी | खैर, फिर प्लेटफार्म से उस हुजूम के साथ ही बाहर आया | अब यहाँ से स्टीमर के द्वारा फेयरली घाट जाना था | क्योंकि अब बस में धक्के खाना नहीं चाहता था |
स्टीमर घाट पर पांच रूपये का टिकट लेकर वहाँ स्टीमर का इंतज़ार करने लगा | थोड़ी देर में ही स्टीमर आ गयी और यहाँ भी उस पर सवार होने के लिए धक्का – मुक्की हो रहा था |
किसी तरह स्टीमर पर सवार हो गया लेकिन नदी की सैर और हवा का झोका मन को तरोताज़ा कर दिया और मैं किसी तरह ऑफिस पहुँच गया |
करीब 2 घंटे के कष्टपूर्ण यात्रा और फिर यही क्रिया शाम को लौटते समय भी दुहराना था | ऐसा सोच कर ऑफिस में चाय पीते हुए मैं चिंतित मुद्रा में बैठा था | तभी मेरे एक मित्र ने आकर मुझसे पूछा — क्या बात है ? आप कुछ चिंतित नजर आ रहे हैं ?
मैंने कहा .. आज पहली बार लोकल ट्रेन का सफ़र कर ऑफिस आया हूँ | आज शाम को फिर हमें उसी लोकल ट्रेन से बर्दवान जाना है | एक दिन की बात होती तो ठीक था | मुझे अभी तो एक महिना इसी तरह यात्रा करना पड़ेगा | यही सोच कर चिंतिंत हो रहा हूँ |

उसने हंसते हुए मुझे देखा और बोला — आप मुझे देखो, मैं पिछले 11 सालों से इसी तरह से सफ़र कर रहा हूँ और मुझे तो बहुत मजा आता है | आप कभी ग्रुप में आओ उन लोगों के साथ, तो फिर देखना आप की सारी समस्या दूर हो जाएगी |
हाबड़ा शाखा का एक स्टाफ भी वर्दमान से आता है, मैं उसका फोन नंबर दे देता हूं | आप उससे बात कर लेना | आपका आरामदायक ट्रेन सफ़र का इंतज़ाम कर देगा |
मैंने सोचा .. क्या वह कोई रेलवे स्टाफ है जो मेरी समस्या दूर कर देगा ?..
खैर मैं उसी के सामने फ़ोन मिला दिया | प्रेमांशु नाम था, उसने मेरी समस्या को सुना और कहा – आप किसी बात की चिंता न करें | मैं आपकी सुखद यात्रा की कामना करता हूँ |
फिर शाम के करीब सात बजे ऑफिस से निकला और बस के द्वारा हाबड़ा स्टेशन पहुँच गया | मैं टिकट काउंटर की ओर बढ़ा लेकिन वहाँ लम्बी कतार को देख कर घबडा गया | तभी मुझे प्रेमांशु की याद आ गयी | मैंने उसे तुरंत फ़ोन लगा दिया | उसने मुझे प्लेटफार्म संख्या 6 पर आने को कहा | जैसे ही मैं वहाँ पहुँचा तो एक युवक मेरे पास आया और मुझसे पूछा.. Are you Mr. Verma?
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी भीड़ में वो युवक मुझे कैसे पहचान लिया ?
उसने कहा – मैं प्रेमांशु का दोस्त हूँ | इतना कह कर वह लोकल ट्रेन के बोगी no. 6 में अपने साथ चढ़ा लिया | ट्रेन में उसी तरह भीड़ थी | ठीक से पैर रखने की भी जगह नहीं थी | लेकिन वह मुझे एक सीट पर बैठा दिया | मैं सीट पर बैठ कर राहत की सांस ली | ट्रेन चल चुकी थी और डेली पैसेंजर वाले लोग एक टोली बना कर आपस बातें कर रहे थे | सभी के चेहरे पर ख़ुशी के भाव थे, सभी मस्ती में बातें कर रहे थे और सफ़र का आनंद उठा रहे थे |
तभी एक ने अपने बैग से एक गमछा निकाला और वहाँ किसी तरह बिछा दिया और फिर ताश निकाल कर सब लोग खेलने लगे | इतने में झाल मुढ़ी वाला आया और सभी ने उसका आनंद लिया और मुझे भी दिया |
फिर थोड़ी देर में चाय वाला आया और सभी ने निम्बू वाला मसालेदार चाय का लुफ्त उठाया | एक बात जो मैंने नोटिस किया कि इन लोगों ने किसी को पैसे नहीं दिए |
मैं उन्हें पैसे देने लगा तो वे हंसते हुए बोला – यह रोज का काम है | हफ्ते में एक दिन पैसा पेमेंट करता हूं | वाह, सभी लोग चलती सफ़र में इस तरह आपस में जुड़े रहते है कि जैसे एक ही परिवार हो |
इन्ही सब बातों में एक घंटा कैसे निकल गया पता ही नहीं चला | मैं ख़ुशी ख़ुशी बर्दमान स्टेशन पर उन लोगों के साथ ही उतर कर बाहर जाने लगा, क्योंकि मेरे पास टिकट नहीं था |
तभी हमारे सामने टी टी आ गया और बोला – टिकट टिकट ?
मेरे साथ वाले ने कहा – पास है, और वह हमलोगों को जाने दिया | मैंने एक नए अनुभव के साथ सफ़र का आनंद लिया |
अगले दिन फिर सुबह 8 बजे ऑफिस जाने के लिए बर्दमान स्टेशन पर पहुँच गया | टिकट काउंटर पर वैसे ही भीड़ थी | मैंने फिर प्रेमांशु को फ़ोन किया और फिर लोकल ट्रेन में उनलोगों के साथ मौज मस्ती में हाबड़ा स्टेशन पहुँच गया |
फिर टी टी ने वहाँ टिकट माँगा और फिर वही ज़बाब — पास है | इतना बोल कर स्टेशन के बाहर आ गया | वाह, फ्री का सफ़र, वो भी मजेदार, अच्छा अनुभव हो रहा था |

लेकिन शाम में ऑफिस से निकलते हुए मुझे देर हो गयी और जब हाबड़ा स्टेशन पहुँचा तो वो जान पहचान वाले सहयात्री जा चुके थे | मैं ने पिछले अनुभव का लाभ उठाते हुए बिना टिकट लिए लोकल ट्रेन में दाखिल हो गया लेकिन बैठने की सीट नहीं मिली | मैं खड़े खड़े ही एक घंटे का दुखदाई सफ़र पूरा किया | मैं बर्दमान स्टेशन पर उतर कर अकेला ही बाहर निकल रहा था तभी सामने से टी टी ने कहा – टिकट, टिकट ?
मैंने कहा – पास है |
उसने कहा – दिखाओ ?
मुझे ऐसे जबाब की उम्मीद नहीं थी | अब मैं क्या करता ?
मैंने पॉकेट में हाथ डालकर ढूँढने का नाटक किया | और फिर खिसियानी बिल्ली की तरह हंसते हुए बोला- शायद घर पर छुट गयी है |
उसने कहा – तब तो फाइन देना होगा , 550 रूपये |
मैंने किसी तरह 200 रूपये में मामला सेटल किया और पैसे देकर ओवर ब्रिज पर चढ़ कर बाहर की ओर जा रहा था और सोच रहा था —मुझसे कहाँ चुक हुई ?
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Categories: मेरे संस्मरण
You had very interesting train rides.
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ha ha ha ..
Thanks for your words of appreciation .
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वाह! सफर का आनन्द वह भी समूह में बड़े मजे थे।फिर,तो पास बनवा के ही चले होंगे! वो क्या कहते हैं ……ठो….कर से बुद्धि बढ़ती है न🤣
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सही कहा डिअर / वो मंथली पास आज भी मेरे पास है …हा हा हा ,,
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रोचक सफर पर डरावना आंनद मज़ा आया
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हा हा हा ..सही कहा ,
लोकल ट्रेन का अलग ही मजा है |
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बहुत रोचक और प्रेरक सफर की याद है सर । बहुत सुंदर रचना है । धन्यवाद सर ।
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर |
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Bohot achchaa lga padhke! Train safar apne aap Mei hamesha anokha hota hai.. aur aap k inn rochak safar Mei hum bhi padhte padhte yaatri hee bann gye thhe!
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आपके हौसलाअफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
आप लोगों के लेखनी से बहुत कुछ सीखता हूँ |
आप का ब्लॉग पढना मुझे अच्छा लगता है …आप लिखते रहिये |
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That’s so kind of you sir!! Khushi Hui jaanke ki aapko Meri likhi cheezey pasand aayee.. bs shokh se likhti hu Jo Dil Mei aata hai.. ap sbke himmat aur pyaar prerit krte hai wo saari likhi cheezey post krne mei
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सही है,
जब हम मिहनत से कुछ लिखते है तो उम्मीद होती है कि इसे लोग पढ़े |
और पसंद आने पर दिली ख़ुशी होती है | मैं तो बैंकर हूँ ,अच्छा लिखना नहीं जानता |
लेकिन आपलोग के ब्लॉग पढ़ कर सचमुच तारीफ़ करना चाहता हूँ | लिखते रहिये |
मैं समय निकाल कर सभी आर्टिकल पढूंगा | बधाई |
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Ekdm Sach bole sir aap..jo Khushi hoti hai yeh dekhke ki koi apni likhi Hui cheezo ko padhke khush horha hai..wo kaafi keemti hai..
Nhi aata professionally likhna..jitna likhi hu yahee likhte likhte improve kr rhi hu bs.
Mujhe aapke likhe huye saare blogs abtak Jo Maine padhe hai aur padh rhi hu bohot pasand aa rhe hai..
Dilse bohot shukriya aapke saare samay aur baato k liye 🙏thanks for being so kind
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Thank you …All the Best..
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मजेदार संस्मरण।पढ़ कर अच्छा लगा
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर।
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बहुत अच्छा संस्मरण है सर…💐
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर |
उन दिनों को याद कर आज भी हंस लेता हूँ |
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Very nicely written the story of journey by local train.The story has been completed with the penalty. During interrogation by TT,the position might be embarrassing.
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Yes, dear, TT was so experienced that he can find the customer
after seeing their face…ha ha ha ..
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Everything is temporary,…thoughts, emotion, people, and scenery..
Do not become attached, just flow with it…
Stay happy… Stay blessed.
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