कभी तुझको मुझसे गिला रहती है ,
कभी मुझको तुझसे शिकायत रहती है ,
फिर भी हमें साथ साथ रहना है …
क्योंकि, तुझको मेरी और मुझको तेरी ज़रुरत रहती है |

आज की कविता दिल और दिमाग के बीच की कशमकश का है, मुश्किल तो यही है कि दिल की सुनो या दिमाग की ? कुछ लोग रिश्ते दिल से निभाना चाहते है और कुछ दिमाग से।
आप क्या करते है, दिल की सुनते है या दिमाग की ? आप अपने विचार जरूर मेरे साथ शेयर कीजियेगा ।
दिल और दिमाग
कागज़ पर कलम दौड़ता दिखाई देता है
आज जख्म फिर हरा दिखाई देता है
यूँ तो किसी चीज़ की कमी नहीं है लेकिन.
दुःख आज अपना हँसता दिखाई देता है |
न जाने क्यूँ मन उदास होता है
तनहाइयों में बार बार खोता है
ज़िन्दगी जैसे नीरस हो चली हो
दिल अपना बार बार रोता है |.
बहुत समझाया ज़िन्दगी को …
“शांति” में ही आनंद होता है ,
दिल और दिमाग में द्वंद है
दिल कहता, आनंद में शांति होता है
पर दिमाग इसे नकारता है
और कहता है…
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