आपको अकेले लड़नी पड़ेगी , ज़िन्दगी की लड़ाई ,
लोग सिर्फ तसल्ली देते है साथ नहीं…

गुज़र जाते है खुबसूरत लम्हें , यूँ ही मुसाफिरों की तरह..
यादें वही खड़ी रह जाती है, रुके रास्तों की तरह..
एक उम्र के बाद, उस उम्र की बातें उम्र भर याद आती है ,
पर वह उम्र फिर उम्र भर नहीं आती …||

याद आ रहा है वो गुज़रा हुआ ज़माना, जी हाँ आज हमारा बचपन फिर से याद आ रहा है | हमारे घर के पडोस में मिश्रा जी रहते थे | उन्होंने घर के पिछवाड़े में बहुत सुन्दर बगीचा लगा रखा था जिसमे लगे पेड़ से पपीता और अमरूद तोड़कर खाना आज भी नहीं भूला हूं।
खगौल एक छोटी सी जगह है जहाँ मेरा बचपन बीता था | मिश्रा जी का बगान जितना सुन्दर और बड़ा था, उनका दिल उतना ही छोटा था | वे हम बच्चो को कभी भी बुलाकर पपीता या अमरुद खाने को नहीं देते थे |
इसका मुख्य कारण शायद यह…
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