# यादों के झरोखें से #

दोस्तों ,

कभी कभी हम अकेले में होते है तो  अपने अतीत में खो जाते है और फिर बीती कुछ घटनाएँ याद आने लगती है, जिसे याद कर  चेहरे पर एक मुस्कान बिखर जाती है |

मेरा प्रयास है कि उन सब यादों को समेत  कर आप के साथ शेयर करूँ | उन्ही प्रयासों को सार्थक करने की कोशिश है यह संस्मरण |

यह बात उन दिनों कि जब मैं इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था | मैं रांची में था और इंडस्ट्रियल एरिया होने की वजह से हम सभी क्वार्टर में रहते थे | मैं रोज अपने कमरे की खिड़की से देखता था कि हमारे बगल के क्वार्टर से एक ३० -३५ साल का युवक  दिन के  नौ बजे अपने घर से निकलता था |  बाएं हाथ में एक छोटा सा  बैग दबाये हुए तेज़ कदमो से वह जाता दिखाई देता | शाम के ठीक छ बजे वह अपने घर में प्रवेश करता हुआ मुझे दिख जाता था |

मैं सोचता था कि वह कौन सी नौकरी करता है ? जिसमे आने और जाने का समय बिलकुल फिक्स रहता है | उसके पिता जी उसी फैक्ट्री काम करते थे जिसमे मेरे  बड़े भाई भी काम करते थे , इसलिए हमलोग का क्वार्टर अगल बगल ही था |

मेरे मन में जिज्ञासा होती थी कि वह कौन सी नौकरी है जिसमे इतना  सुकून है | आदमी नौकरी  करते हुए अपने  जीवन को पूरी तरह  एन्जॉय कर सकता है |

संयोग से एक दिन मेरे बड़े भाई ने  मुझे बैंक से पैसा लाने के लिए एक चेक दिया | महीने के प्रथम सप्ताह में बैंक में बहुत  भीड़ होती थी और भुगतान के लिए घंटो वहाँ इंतज़ार करना पड़ता था |

मैंने  चेक जमा कर टोकन लिया और अपनी  बारी के आने का इंतज़ार करने लगा |

बैंक में काफी भीड़ होने के कारण मेरा नम्बर करीब एक घंटे के बाद आया | मेरा टोकन  no. 24 पुकारा जा रहा था | मैं भीड़ को चिडता हुआ किसी तरह काउंटर पर पहुँचा तो वहाँ बैठे शख्स को देख कर चौक उठा |

यह तो वही नौजवान है जिसे रोज बगल के क्वार्टर से जाते और आते देखता था | अब पता चला कि वह उस बैंक में केशियर है |

वह मुझे देख कर मुस्कुराया और पूछा ..कैसा नोट दूँ..?  मैं तो बस उसे देखता  ही रह गया | यह  बैंक का नौकरी तो लाजवाब होता है |  9 बजे बैंक  जाना और शाम के छः बजे तक घर में वापस आ जाना | मैंने देखा वह फर्राटेदार ढंग से नोट गिनता और सभी को पेमेंट कर रहा था |

मैं मन ही मन सोच रहा था , काश मेरी भी नौकरी बैंक में लग जाए तो ज़िन्दगी शानदार ढंग से गुज़रे |

लेकिन मैं तो इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा था .. इसमें बैंक की नौकरी का दूर दूर का कोई नाता नहीं था |

मैं अपने मन की  यह  इच्छा मन में ही छुपा कर रखा था |

लेकिन इसे संयोग ही  कहा जा सकता है कि मैं  इंजीनियरिंग की परीक्षा में सफल नहीं हो सका |  हाँ. मैं एग्रीकल्चर  ग्रेजुएट ज़रूर  बना | उन दिनों सारे एग्रीकल्चर ग्रेजुएट को बैंकों में  प्राथमिकता के आधार पर नौकरी मिल रही थी | मैं भी बैंक की नौकरी हेतु परीक्षा दी और मुझे बैंक की नौकरी  मिल गयी |

मेरे ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि मैंने अपने मन में जो इच्छा छुपा कर रखी थी वह हकीकत बन गया था  | उस नौजवान के सुकून भरी ज़िन्दगी को देख कर मुझे में बैंक की नौकरी की इच्छा जागृत हुई थी | शायद किसी ने ठीक ही कहा है कि अगर आप दिल से किसी चीज़ की इच्छा करते है तो भगवान् उसे हासिल करने का कोई न कोई मौका ज़रूर देता है |

उन दिनों शुरू शुरू में मेरी  पोस्टिंग राजस्थान के एक गाँव “रेवदर” में हुई थी | लेकिन वह करेंसी चेस्ट ब्रांच थी | उस शाखा में मैनेजर  के अलावा मैं ही  एक ऑफिसर था | इसलिए मुझे कैश खुलवाने के लिए हेड केशियर के साथ स्ट्रोंग रूम में जाना होता था |

वहाँ अलमारियों में नए नए नोटों की गद्दियाँ भरे पड़े थे | मैं रोज़ सुबह हेड केशियर चारण साहब के साथ कैश खोलने जाता और रोज उनके निवेदन करता कि मुझे अलमारी  खोल कर  नए नए नोटों की  गद्दियाँ दिखाएँ |  मुझे इतने सारे नोट देख कर बहुत मज़ा आता था |

चारण साहब  हँसते हुए कहते —  आप इसे नोट मत समझिये बल्कि इसे कागज़ की गड्डियाँ  समझे |  इन्हें रुपया  समझने की भूल न करें |

उन दिनों एक, दो और पांच के खूब नए नए गद्दियाँ हुआ करते थे |  चूँकि मैं वहाँ अकेला ही रहता था और खर्चे भी कम थे अतः मैं पूरी सैलरी  के पैसे नए नोट के रूप में निकाल लेता था और उसे अपने घर में संजोय कर रखता था | मैं रोज़ उन नए नोटों को देख कर खुश होता था ||

चूँकि नए नोट को खर्च करने का मन नहीं करता था इसलिए थोडा कंजूस भी बन गया था और इसी कंजूसी में काफी पैसे जमा कर लिए थे |

हमारे ब्रांच के सारे स्टाफ को मेरे नए नोटों के प्रति दीवानगी के बारे में पता था |

अपने घर काम करने वाली  नौकरानी और दूकानदरों को नए नए नोट देता तो  नया नोट लेकर खुश हो जाते  और उन लोगों के बीच  मेरा रुतबा काफी बढ़ गया था |

फिर एक ऐसा समय ऐसा भी आया कि नए नोट आने एक दम बंद हो गए और चेस्ट में पुराने नोट ही उपलब्ध हो पा रहे थे |

एक दिन ब्रांच में अपनी सीट पर बैठा काम कर रहा था तभी अपने चैम्बर से मैनेजर साहब ने मुझे पुकारा |  मैं जब उनके चैम्बर में पहुँचा  तो पाया कि वे किसी से बात कर रहे है |   मुझे देखते ही वे बोले..- लो  बड़े साहब आप से बात करना चाह रहे है |

बड़े साहब का नाम सुनते ही मैं एकदम से घबरा गया | मैंने धड़कते दिल से फ़ोन पकड़ा |  मुझे पता नहीं चल रहा था कि मुझसे क्या गलती हो गयी जो क्षेत्रीय कार्यालय, उदयपुर से  बड़े साहब  मुझसे बात करना चाहते है | ..

 मैंने फ़ोन पकड़ के पहले उन्हें नमस्कार किया | ..

तभी उधर से आवाज़ आयी .. वर्मा जी,  मुझे आप से मदद की ज़रुरत है |

मैं चौक उठा,  भला उनको मुझसे क्या मदद की ज़रुरत पड़  गयी ?

तभी उधर से उनकी आवाज़ आयी .. नाहर सिंह जी हमारे बैंक के एक अच्छे ग्राहक है और उनका काफी डिपाजिट हमारे बैंक में है | उनकी बेटी की शादी हो रही है और  उन्हें नए नोट की आवश्यकता है |  ..मुझे पता चला कि आप नए नोट के  शौक़ीन हो | आप के पास हर समय नए नोट उपलब्ध रहते है | नाहर सिंह जी आपके पास बस पहुँच ही रहे होंगे ..कृपया उन्हें नए नोट की व्यवस्था कर देंगे | ..

और इस तरह हमारे सारे नए नोट मुझसे विदा  हो गए और उनकी जगह पुरानी  नोट आ गए | भला मैं पुराने नोट को घर में क्यों रखता, सो उन्हें अपने खाते में जमा करा दिया ताकि कुछ ब्याज तो मिल सके |  ..और इस तरह दो साल के नए नोट इकट्ठा करने का मेहनत  बेकार चला गया  |…

उसके बाद मैंने यह प्रण कर लिया कि घर में अब नए नोट रखूँगा ही नहीं |

आज मैं बैंकिंग से रिटायर भी हो गया हूँ लेकिन आज भी जब मैं नए नोट को देखता हूँ तो मुझे अपने पुराने दिनों की याद  आ जाते है जब मैं नए नोटों का दीवाना हुआ करता था | …

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Categories: मेरे संस्मरण

11 replies

  1. बहुत अच्छा एवम मजेदार अनुभव।

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  2. I am also fond of new notes but I did not get enough chance to possess the same.

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  3. I had the same experience so I decided not to use fresh currency notes.Sometimes,it has created problem for us.

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  4. so nice👌👌

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  5. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    कौन कहता है कि बड़ी गाड़ियों में ही सफ़र अच्छा होता है ,
    सच्चे रिश्ते और अच्छे मित्र साथ हो तो ज़िन्दगी पैदल भी मजेदार होती है |
    स्वस्थ रहें …मस्त रहे,..

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