
दोस्तों ,
आज कल हमारे देश में एक किसान आन्दोलन चल रहा है | मैं समझता हूँ कि भारत के इतिहास में अब तक का यह सबसे लम्बा आन्दोलन है | करीब साल भर होने को है और पता नहीं यह कब समाप्त होगा |
आम जनता की बात करें तो सभी लोग किसान भाई से हमदर्दी रखते है क्योंकि वे हमारे अन्न दाता है |
मुझे भी किसानों से बहुत हमदर्दी है क्योंकि मुझे भी अपने नौकरी के दौरान उनको नजदीक से जानने का मौका मिला था | सचमुच वे अन्न पैदा कर हमलोग का पेट पालने वाले अन्न दाता है लेकिन उनकी खुद की आर्थिक हालत कभी भी नहीं सुधर सकी | ऐसा क्यों है यह एक अलग विषय है |
आज मुझे अपना वो दिन याद आ रहा है जब किसानो के बीच उनकी भलाई के लिए , उनकी खेती के लिए उन्हें ऋण देने और सलाह देने का काम करते थे |
उन्ही दिनों की एक घटना मुझे याद आ गयी जिसे यहाँ आप सब लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूँ |

मेरी नयी नयी नौकरी बैंक में लगी थी | तब मैं बैंक ऑफ़ इंडिया में ज्वाइन किया था और जगह थी झुमरी तिलैया | झुमरी तिलैया उन दिनों बहुत प्रसिद्ध थी, क्योंकि बिनाका गीत माला में यहाँ के लोगों की फरमाईस की गीत ज्यादा बजती थी |
मुझे आस पास के गाँव में कृषि से सम्बंधित ऋण देना और उसकी क़िस्त की उगाही करना होता था |
एक गाँव था बेकोबार, जो हमारी शाखा से करीब १० किलोमीटर दूर था और वहाँ चावल और मूंग की खेती होती थी | लेकिन वहाँ सिच्चाई का अभाव था, इसीलिए दूसरी फसलों की खेती नहीं हो पाती थी |
मैं नौकरी में नया नया था इसलिए मेरे अन्दर कुछ अच्छा करने का जोश था | इसलिए मैंने उस इलाके के किसानो की सभा की और २० कुआँ खुदवाने हेतु उन किसानो को ऋण स्वीकृत किया |
काम भी शुरू हो गया, और उन्हें पैसो को क़िस्त में कुआँ खुदाई हेतु दिए जाने लगे | वह पथरीली इलाका था इसलिए खुदाई में ज्यादा समय औए मेहनत लगता था |
अचानक कुछ दिनों की छुट्टी लेकर मुझे अपने घर जाना पड़ गया | मैं लगभग एक माह के बाद शाखा ज्वाइन किया और फिर उस गाँव का विजिट करने की सोची ताकि काम की प्रगति का जायजा लिया जा सके |

फील्ड विजिट करने के लिए हमारी शाखा में एक बुलेट मोटर-साइकिल थी जिससे मैं अकेला ही गाँव में विजिट करता था |
सोमवार का दिन था मैं अपनी मोटरसाइकिल उठाई औए चल पड़ा उस गाँव की ओर |
वहाँ सभी किसान तो मिल गए लेकिन एक अजीब बात दिखी | सभी किसान मिलकर बैंक के द्वारा दिए पैसों से चार – पांच ईंटों का भट्टा लगा लिया था और कुएं की खुदाई का काम बंद था |
मैं ने उनसे पूछा – आप के कुएं में इतने सारे ईंट तो लगेगा नहीं, फिर आप ने यह ईंटो का भट्ठा क्यों लगाया ? इतने ईंटो का आप क्या करेंगे ?
वे लोग ज़बाब देने से पहले मुझे सामने बरगद का पेड़ था उसकी ठंडी छांव में एक खाट बिछा दी और मुझ से बैठने के लिए निवेदन किया |
दोपहर का समय , गर्मी के मारे बुरा हाल था ही, इस पर ईंटों का भट्ठा देख कर और भी मेरा दिमाग गरम हो रहा था |
क्योंकि उन लोगों ने कुएं की खुदाई का काम बंद कर दिया था और ऋण के पैसों से भट्ठा लगा लिया था | मैं जानने को उत्सुक था कि उनके मन में क्या है ?
मैं खाट पर विराजमान हो गया तभी किसी ने लोटा में पीने को ठंठा पानी दिया और फिर एक ने छांछ लाकर दिया |

मैं नाराज़ होते हुए बोला – आपने बैंक के पैसों का योजना के तहत उपयोग नहीं किया है, मैं तो बैंक को रिपोर्ट कर दूंगा | आपका गाँव “बेकोबार” नहीं बेकार गाँव है |
वहाँ उपस्थित सभी ऋणी किसान हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और अपनी मनसा प्रकट कर दी |
उन्होंने कहा – हमारा यह ज़मीन पथरीला है | छेनी – हथौड़ी टूट जाते है लेकिन यह पत्थर नहीं टूटता है | ऐसी स्थिति में कुएं की खुदाई में पैसा डालना बेकार है | इसलिए हमलोगों ने मिल कर तय किया कि इंटों का भट्ठा लगाया जाए |
हमारे झोपड़े हर साल बारिस में टूट जाते है जिसे हर साल मरम्मत करना पड़ता है | इसलिए हमलोग उस इंटों से घर की पक्की दीवार बना लेंगे और बरसात के परेशानी से निजात पा लेंगे |
हाँ, ऋण का क़िस्त समय पर जमा करते रहेंगे, यह हमलोग आप से वादा करते है .., हम किसानों की हालत तो आप देख ही रहे है |
उनकी बात सुन कर मैं ने मन ही मन सोचा – बैंक का पैसा योजना बदल कर खर्च किया है , लेकिन उसे घर खर्च में तो नहीं लगाया | वैसे वे लोग काफी मिहनती थे और ईमानदार भी |
मेरा गुस्सा शांत हो गया और मैं वहाँ से ख़ुशी ख़ुशी अपनी शाखा वापस आ गया | मुझे यह एहसास हो रहा था कि चलो जैसे भी हो किसानो की हमने मदद की है |
कुछ दिनों के बाद, हमारे कुछ शुभ चिन्तक मेनेजर साहब को “बेकोबार” वाली बात की शिकायत कर दी और कहा कि बैंक के पैसे का दुरूपयोग हुआ है और इसमें वर्मा जी की भी सहमती थी |
फिर क्या था , मेनेजर साहब ने मुझे अपने चैम्बर में बुलाया और उस गाँव का निरिक्षण करने की इच्छा प्रकट कर दी |
मेरे दिमाग में अनेकों सवाल घुमने लगे , अगर मेनेजर साहब हकीकत देखेंगे तो पता नहीं मेरी क्या हालत करेंगें ?
फिर आगे की कहानी क्या बताऊँ यारों , आप खुद ही अनुमान लगा लीजिये |
यहाँ तो वही वाली कहावत चरितार्थ हुई – खेत खाए गधा और मार खाए जोलहा ?
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Categories: मेरे संस्मरण
बहुत अच्छा।
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बहुत बहुत धन्यवाद ।
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Nicely presented.
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Thank you dear..
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
Struggles and problems are part of life…
but, to solve these problems and face them
with self-confidence is called the Art of life…
Stay positive…Stay blessed..
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