
जब मैं बच्चा था तो कुछ ज्यादा ही शरारती था और जब हम बूढ़े हो गए है तो फिर से बचपन को जीने की इच्छा होती है |
बच्चे तो हम बन नहीं सकते है परन्तु बचपन के दिनों की बीती घटनाओं को याद कर अपने बचपना को जिंदा रख सकते है | वैसे ही कुछ घटनाओ को मैं अपने ब्लॉग के माध्यम से शेयर कर रहा हूँ, जिसे पढ़ कर आप को मज़ा आ रहा होगा |
आज उसी कड़ी में बचपन की एक और घटना का ज़िक्र करना चाहता हूँ |
उस समय मैं कोई सात आठ साल का था और मन में कोई न कोई शरारत चलते रहता था क्योंकि हमारे दोस्तों का ग्रुप ही कुछ ऐसा था |
उन दिनों मैं सिनेमा का बहुत शौक़ीन था लेकिन घर से सिनेमा देखने की सख्त मनाही थी | खगौल जैसे छोटे कसबे में एक ही सिनेमा हॉल था , रेलवे सिनेमा, खगौल |
उसमे ज्यादातर धार्मिक किस्म की फिल्मे लगा करती थी |
हमारा एक दोस्त किशोर घर से भाग कर खूब सिनेमा देखता था | वह देवानानद के पिक्चर तो कभी भी मिस नहीं करता था |
वह पिक्चर देख कर आता और हमें पूरी कहानी सुनाता | उसके द्वारा सुनाई गयी फ़िल्मी कहानियों को सुन कर हम भी देवानानद के फेन हो गए |
जब भी कोई पिक्चर हॉल में लगने को होती तो उसके पोस्टर जगह जगह चिपकाए जात थे | छोटा क़स्बा था इसलिए सभी लोग एक दुसरे को जानते थे | वो पोस्टर चिपकाने वाला भी जाना पहचाना था |
एक दिन जब वह पोस्टर लेकर जगह जगह चिपकाने निकला तो हम भी उसके पीछे पीछे चलने लगे | राजेश खन्ना की कटी पतंग का पोस्टर उसके हाथ में था | वो मेरी तरफ देख कर समझ गया और फिर फोटो वाला एक पोस्टर हमें दे दिया |
मैं ख़ुशी ख़ुशी पोस्टर घर ले आया और बड़े प्यार से अपने रूम के दीवार पर चिपका दिया | उसे देख कर घर के लोगों ने गुस्से में कहा – क्या यह सिनेमा हॉल है ? इतना बोल कर उन लोगों ने मिल कर मेरी पिटाई कर दी | फिल्म देखना तो दूर पोस्टर भी देखने की इज़ाज़त नहीं थी |

लेकिन मैं तो फिल्म की कहानी सुन सुन कर देवानंद का फैन हो चूका था | तभी एक फिल्म “प्रेम पुजारी “ रेलवे सिनेमा में लगा | अब मैं उस फिल्म को देखने के लिए व्याकुल हो उठा, लेकिन हमारे साथ एक नहीं दो दो मुसीबतें थी | एक तो फिल्म देखने की इज़ाज़त नहीं थी और दुसरे पैसे भी हमारे पास नहीं हुआ करते थे |
हमारे मन में भयंकर प्लानिंग चल रही थी | अपनी सारी बुद्धि झोक दी | तभी एक आईडिया मेरे खुराफाती दिमाग में आया | रेलवे सिनेमा में फर्स्ट क्लास के सवा रूपये लगते थे |
हमने अपने दोस्त किशोर से कहा – मैं भी फिल्म देखना चाहता हूँ लेकिन तीन घंटा घर से बाहर नहीं रह सकता हूँ, | पकडे जाने पर मेरी कुटाई हो जाएगी | इसलिए इंटरवल तक तुम फिल्म देखना और तुम इंटरवल – पास मुझे दे देना तो बाकी का फिल्म मैं देख लूँगा | तुम मुझे इंटरवल तक की कहानी सुना देना, उसके बाद की कहानी मैं तुम्हे सुना दूंगा |
बात तय हुई, लेकिन टिकट के आधे पैसों का जुगाड़ करना पड़ेगा |
तभी मुझे घर से पैसे मिले कि बाज़ार से हरी सब्जी खरीद कर लाना है | मैं तुरंत किशोर को कांटेक्ट किया और मुझे मिले पैसे के आठ आने उसे दे दिया और कहा – तू मैटिनी शो (तीन से छह ) का टिकट लेकर इंटरवल तक फिल्म देखना मैं इंटरवल के समय हाल के बाहर मिलूँगा |
बात तय हो गयी | ठीक चार बजे सब्जी लेने के बहाने मैं घर से निकला और सीधे सिनेमा हॉल पहुँचा |
अभी इंटरवल होने में समय बाकी था | मैं बाहर देवानंद की प्रेम पुजारी का पोस्टर देख देख कर उत्साहित हो रहा था कि चलो आज तो फिल्म देख ही लेंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा |

इंटरवल होते ही किशोर बाहर निकला और मुझे इंटरवल पास देकर तेज़ कदमो से अपने घर की ओर चल पड़ा ताकि हम दोनों के घर वालों को शक न हो |
मैं ख़ुशी ख़ुशी पास लेकर फर्स्ट क्लास के गेट पर पहुँचा तो गेट कीपर मेरे घर वाले को पहचानता था, इसलिए मुझे देखते ही बोला — तुम घर से भाग कर फिल्म देखने आये हो ?
चल भाग जा यहाँ से वर्ना तुम्हारे बड़े भाई को बतला दूंगा | मैंने बहुत मिन्नतें की लेकिन उसने एक न सुनी और इस तरह मुझे फिल्म देखने से उस दिन भी वंचित होना पड़ा |
मैं दुखी मन से घर लौटा | चूँकि मैं सब्जी लेकर घर आया नहीं था इसलिए मैंने बहाना बनाया कि पैसे रास्ते में गुम हो गए है |
मैं सोच रहा था कि शायद जान बच जाए पर ऐसा नहीं हो सका | घर वालों को सारी हकीकत पता चल चूका था .. और मेरी जम कर कुटाई हुई | उस समय जो शरीर में पीड़ा हुई थी उसे आज भी महसूस करता हूँ और अपनी नादानी पर मुस्कुरा देता हूँ |
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Categories: मेरे संस्मरण
Happy yourself today! No one knows tomorrow.
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Absolutely correct dear,,
Life is unpredictable , Stay happy always..
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🙏🙏🙏
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Stay blessed..
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Amen
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Hahaha, good one 👌
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hahaha…
Yes Sir, childhood moments are also like this.
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बचपन की बाते जब याद आती है तो आज भी होठों पे मुस्कान आ जाती है। पढ़ कर अच्छा लगा।
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सही कहा..बचपन की यादें ऐसी ही होती है ।
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Samaya ki baat hai. Hum Log vahi karte the,kyonki vahi samayame film ek manoranjan ki Bahut Badhia jaria tha.Maa baap sochate the film dekhane se bachha bigad jaataa hai .Samaya badal gaya.Bahut sundar varnan.
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hahahah…
That is right..
we all made so many fun during our childhood..
that gives us immense pleasure on memoire..
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लगता था कि बडे नौटी शुरू से ही होंगे….. 😜😜
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हहाहाहा…
अब तो मैं शरीफ दीखता हूँ |
क्या मैं सच कह रहा हूँ ?
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👍👍
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बहुत बहुत धन्यवाद सर जी |
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