# कौन राजा कौन भिखारी #

गीता में कहा गया है कि तुम कर्म करो फल की चिंता मत करो | अगर हमारा सारा ध्यान फल की तरफ लगा रहेगा तो कर्म पर ध्यान केन्द्रित करना मुश्किल ही जायेगा |

हम सबों को अपने काम पर ध्यान लगाना चाहिए , सफलता खुद ब खुद मिलेगी | लेकिन सच्चाई इसके उलट होता है, हम कोई भी काम करने से पहले दस बार सोचते है कि अगर मैं असफल हो गया तो लोग क्या कहेंगे | और इसी डर से हमें जो कार्य करना चाहिए उसके बारे में बस सोचते ही रह जाते है एक्शन नहीं ले पाते है |

मन में हमेशा एक लालच हडकंप मचाये रहता है | हमेशा कुछ न कुछ पाने की कोशिश में लगा रहता है | जो हमारे  पास है उस से हम संतुष्टि नहीं  होते  है | इसलिए हम हमेशा दुखी नज़र आते  है |

इसी सन्दर्भ में एक कहानी प्रस्तुत कर रहा हूँ , हमें आशा है कि आप ज़रूर पसंद करेंगे …यह कहानी है सिकंदर और डायोजिनिस की |

सिकंदर और  डायोजिनिस

सिकंदर कई मुल्को को जीतते हुए जब वह भारत की ओर आ रहा था , तो रास्ते  में उसे एक फ़क़ीर से मुलाकात हो गई |  उस समय डायोजिनिस  बिलकुल नग्न अवस्था में एक नदी के तट पर सुबह का धुप ले रहा था |

सिकंदर ने कहा —  डायोजिनिस, तुम बहुत  भाग्यशाली हो, क्योकि आज सिकंदर महान खुद तुमसे मिलने आया है |

डायोजिनिस उसे देख कर हंसने लगा  और  बोला — जो खुद को महान कहता हो वो पागल है | मैं तो कहता हूँ पागल ही नहीं महान पागल है |

सिकंदर उसकी बात सुन कर चकित रह गया | वो सोचने लगा –   क्या बोल रहा है यह नंगा फ़क़ीर ?

उसने आश्चर्य चकित हो कर उससे पूछा — लगता है  तू मुझे पहचान नहीं  पा रहा है,  मैं विश्व विजेता सिकंदर हूँ,  सर्वशक्तिमान और अथाह सम्पदा का स्वामी हूँ |

डायोजिनिस उसकी ओर देख कर बोला – स्वामी ?  तुझसा बड़ा दरिद्र मैंने अपनी ज़िन्दगी में नहीं देखा | और तू खुद को अथाह सम्पदा का स्वामी कहता है ?

ये जो तुम महान होने का दावा कर रहा है , हकीकत में  यह तुम्हारे अन्दर की दरिद्रता को छुपाने के लिए ही तो है |

तुम्हारे ये आभूषण, राजसी वस्त्र , ये फ़ौज और दौलत , यह सब तो बाहरी दिखावा है | लेकिन अंदर से तो तू बिलकुल खोखला है |

तू लाख उपाय कर ले पर ऐसे ना तू इस खालीपन को न भर पायेगा  ,.. इससे उबर  नहीं पाएगा  |

बात तो वो सच ही कह रहा था | सिकंदर को पता था , वह मुर्ख नहीं था | उस फ़क़ीर की बात उसके दिल पर लग गई  | इतनी चोट देकर और इतनी निडरता से वो बात कही गयी थी |  सचमुच इतनी सच्चाई से कही गई थी और जिस आदमी ने कही थी उसकी बेफिक्री सामने दिख रही थी | उसकी निडरता से वह हैरान था |

सिकंदर का चेहरा  शर्म से झुक गया | वह उस फ़क़ीर की ओर देख कर बोला – मानता हूँ डायोजिनिस,  तुम दुनिया के अकेले आदमी हो जिसके सामने मुझे भी दीनता का अनुभव हो रहा है |

जिसके सामने मैं सचमुच खुद को दरिद्र पा रहा हूँ | वैसे देखा जाए तो तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है | तुम्हारे तन पर वस्त्र तक  नहीं है | फिर भी तुम में कुछ बात तो है जिसके सामने मेरा एश्वर्य फीका लग रहा है |

मैं  दीनहीन  मालूम पड़ रहा हूँ , जब कि मेरे पास सब कुछ है |

डायोजिनिस ने कहा – तेरे पास सब कुछ है फिर भी तुझे और कुछ चाहिए | मेरे पास कुछ भी नहीं है फिर भी मुझे और कुछ नहीं चाहिए | इस वक़्त इसीलिए तू भिखारी है और मैं सम्राट हूँ |

सिकंदर ने सिर झुका कर कहा – आज आपसे मिल कर ख़ुशी हुई | अगर ईश्वर ने मुझे दुबारा ज़न्म  दिया तो मैं उससे कहूँगा, कि इस बार मुझे सिकंदर न बना, बल्कि  मुझे डायोजिनिस बना कर पैदा करना |

ये सुनते ही डायोजिनिस और जोर से हँसा और बोला – पागल है तू ! अरे,  अभी डायोजिनिस क्यों नहीं हो जाता ?

अगले जनम  का क्या भरोसा ?  परमात्मा को बातें  याद रहे न रहे,  वो  तुम्हारी बातों से राज़ी हो ना हो |  अगला जनम  हो न हो |

जब कल का ही  भरोसा नहीं है और तू अगले जनम की बात कर रहा है ?

अगर मेरे जैसा होना है तो आ लेट जा तू भी इस नदी के तट पर |   यह नदी का  तट बहुत बड़ा है तेरे और मेरे लिए पर्याप्त ज़गह है | आ जा और विश्राम कर  | तू  ने बहुत दौड़ लिया,  बहुत राज्य  जीत  लिया | अब तू थक  गया होगा |  आ यहाँ लेट जा |

आओ  सिकंदर तू फिर से बच्चा बन जा | तू भूल जा कि तू सिकंदर है | भूल जा वो आक्रमणकारी  जो हाथो में तलवार लिए नगर नगर घूमता रहता है | थम जा सिकंदर, अब बस कर |  

अब डायोजिनिस  हो जा | भेज दे अपनी फौजे वापस,  कह दे अपने सेनापतियों से कि तुम सब अब वापस जाओ, मेरी विजय यात्रा अब समाप्त हो गयी है  | मुझे जहाँ पहुँचना था वहाँ पहुँच गया हूँ  | यही नदी का तट अब मेरा साम्राज्य है | मुझे अब और कुछ नहीं चाहिए |

भिखारी की बात सुनकर सिकंदर कुछ देर सोचा और फिर उसकी ओर देख कर कहा – डायोजिनिस, ये मुश्किल है, आज मुश्किल है, और अभी मुश्किल है |

डायोजिनिस ने पलट कर ज़बाब दिया— सिकंदर , अगर ये आज मुश्किल है तो हमेशा मुश्किल रहेगा | जो आज हो सकता है वही हमेशा हो सकता है |

सिकंदर ने भिखारी की आँखों में देख कर कहा — आप से मिल कर मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ |

इतना कह कर वहाँ  से चल दिया |  इतिहास में इबारत लिखी हुई है कि लौटते समय रास्ते में सिकंदर की मौत हो गई और वो विश्व विजेता को दफनाने के लिए बस दो गज ज़मीन  की ज़रुरत पड़ी , उससे एक इंच भी  ज्यादा नहीं  ….ज़िन्दगी की यही हकीकत है |

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Categories: motivational

17 replies

  1. Those who show superiority over others, actually suffer from inferiority complex. To hide their inferiority, they talk big. This fact has been illustrated well in this story. Good one 👌

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  2. Good story

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  3. बहुत ही सुंदर एवं प्रेरणादायक।

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  4. हम यह सब जानते हुए भी सच्चाई से मुंह मौडे रहते है, यही सबसे बड़ी विडंबना है। हमारे आसपास बुना हुआ खुद का तानाबाना हमें सताता रहता है। क्या करें…..

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  5. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Life is not about being rich, being popular, being highly
    educated or being perfect…It is about real, humble and kind…

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  6. बहुत ही सारगर्भित कथा। हम सभी जिस तरह अंधी-दौड़ की गुलामी में जी रहे हैं वह सिकन्दर की इस कहानी से कम नहीं है। इस समय हर किसी को इस कहानी से सीख लेनी चाहिए। सुन्दर पोस्ट!

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