
मेघनाद वध
रामायण एक ऐसा महाकाव्य है जिसे जितनी बार सुना जाए, हर बार एक नयी उर्जा का एहसास होता है | इसने इस सोच को झूठा साबित किया है कि कहानियाँ समय से साथ पुरानी हो जाती है |
वैसे अन्य कहानियाँ जिसे एक बार सुन लिया जाए तो फिर दुबारा सुनने में वो उत्सुकता नहीं बनी रहती है | लेकिन रामायण में कुछ ऐसी बात है कि हजारों वर्षों से सुनने और सुनाने के बाद भी इससे जी नहीं भरता | जब कही भी रामायण की कहानियाँ चलती है हम बच्चो की तरह एकाग्र हो कर सुनने बैठ जाते है | हम यह भूल जाते है कि पहले भी कई बार सुन चुके है |
मुझे आज भी याद है जब रामयाण धारावाहिक के रूप में TV पर प्रसारित होता था तो लोग उनमे निभाए जाने वाले किरदार को ही भगवान् मान लेते थे | कुछ लोग तो कार्यक्रम शुरू होने से पहले विधिवत टीवी को प्रणाम और पूजा करते थे |
इसमें एक – एक पात्र अपनी विशेषता लिए हुए है | इसलिए तो हमने एक एक किरदार के बारे में कुछ न कुछ इस ब्लॉग के माध्यम से लिखने का बीड़ा उठाया है | आज उस कड़ी की शुरुआत मैं मेघनाथ-वध की चर्चा करने जा रहा हूँ |
वो एक ऐसा पराक्रमी योद्धा था जिसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए वह कम है | जी हाँ, रावण का पुत्र मेघनाथ संसार का सबसे बड़ा योद्धा था | जब वह पैदा हुआ था तो उसके रोने में बादल की गरजाना सुनाई दी थी, इसीलिए उसका नाम मेघनाथ रखा गया था |
जिसने देवराज इन्द्र को हरा कर स्वर्ग जीत लिया था इसलिए वह इन्द्रजीत कहलाया | ब्रह्मा ने उन्हें अविजित रहने का वरदान दिया था | उसने राम की वानर सेना को लगभग अकेले की समाप्त कर दिया था |
हनुमान और लक्ष्मण जैसे महाबली को परास्त किया था | वो ब्रह्माण्ड का अकेला ऐसा वीर था जिसने ब्रह्मास्त्र , पाशुपतास्त्र और वैष्णवास्त्र तीनो पर अधिकार प्राप्त कर लिया था |

मेघनाथ की पत्नी सुलोचना थी और वो शेषनाग की पुत्री थी | खुद मेघनाथ का विवाह भगवान् विष्णु ने करवाया था | वह राक्षस कुल में होते हुए भी देवता जैसी आचरण और प्रतिबद्धता दिखलाता था |
जब तक जिंदा रहा सुलोचना के अलावा किसी स्त्री को आँख उठा का नहीं देखा , उसे सुलोचना से असीम प्यार था | वह तो आचरण में राम की तरह ही था | जहाँ एक ओर राम ने पिता का मान रखने के लिए 14 वर्षों का का वनवास स्वीकार किया था वही मेघनाथ ने अपने पिता का मान रखने के लिए हँसते हँसते युद्ध में अपने प्राण न्योछाबर कर दिए | मेघनाथ को आभास था कि श्री राम कोई साधारण मनुष्य नहीं है |
मेघनाथ एक ऐसा योद्धा था जिसका वध करना साधारण मानव तो क्या स्वयं देवताओं, गंधर्व, दानवों इत्यादि के लिए भी असंभव था।
जब रावण प्रथम बार युद्धभूमि में गया था तब भगवान श्रीराम से पराजित होकर वापस लौटा था किंतु मेघनाथ ने तीन दिनों तक भीषण युद्ध किया था।
प्रथम दिन उसने स्वयं नारायण के अवतार श्रीराम व लक्ष्मण को नागपाश में बांध दिया था जिसे गरुड़ देवता के द्वारा मुक्त करवाया गया था।

दुसरे दिन उसने लक्ष्मण को शक्तिबाण से मुर्छित कर दिया था जिसके बाद संजीवनी बूटी के कारण उनके प्राणों की रक्षा हो पायी थी। अंतिम दिन मेघनाथ की मृत्यु हुई थी। आखिर मेघनाथ का वध किस प्रकार हुआ, आइए जानते हैं।
- इंद्रजीत का निकुंबला यज्ञ विफल होना
मेघनाथ को इंद्रजीत की उपाधि स्वयं भगवान ब्रह्मा ने दी थी व साथ ही एक वर दिया था। उसी वर के फलस्वरूप वह निकुंबला देवी का यज्ञ कर रहा था जिसके संपूर्ण होने के पश्चात उसे हराना असंभव था। इसलिए लक्ष्मण ने उसका यह यज्ञ विफल कर दिया था। भगवान ब्रह्मा ने मेघनाथ को वर देते समय बताया था कि जो कोई भी उसका यज्ञ पूर्ण होने से पहले विफल कर देगा उसी के हाथों उसकी मृत्यु होगी।
- मेघनाथ के तीनों शक्तिशाली अस्त्रों का विफल होना
मेघनाथ को त्रिदेव से तीन शक्तिशालती अस्त्र प्राप्त थे जिसके कारण वह ब्रह्मांड में अजेय था। उसके पास तीन अस्त्र थे ब्रह्मा का दिया हुआ सबसे बड़ा अस्त्र ब्रह्मास्त्र, भगवान् शिव का सर्वोच्च पाशुपाति अस्त्र और भगवान् विष्णु का नारायण अस्त्र । जब मेघनाथ ने लक्ष्मण पर यह तीनों अस्त्र एक-एक करके चलाए तो तीनों ही लक्ष्मण का कुछ नही बिगाड़ पाए क्योंकि लक्ष्मण स्वयं भगवान विष्णु के शेषनाग का अवतार थे जिन पर इनका कोई प्रभाव नही पड़ता था।

- मेघनाथ व लक्ष्मण का अंतिम युद्ध
इसके बाद भी मेघनाथ लक्ष्मण के साथ भीषण युद्ध कर रहा था। उसके पास कई मायावी शक्तियां थी और हवा में उड़ने वाला रथ भी था , जिसकी सहायता से वह लक्ष्मण पर दसों दिशाओं से आक्रमण कर रहा था। लक्ष्मण भी उससे लगातार तीन दिन तक युद्ध कर रहे थे किंतु उसकी माया व तीव्र गति के कारण उसे हरा नही पा रहे थे ।
अंत में लक्ष्मण ने एक बाण उठाया व उसे मेघनाथ पर छोड़ने से पहले उस बाण को प्रतिज्ञा दी कि यदि श्रीराम उसके भाई व दशरथ पुत्र है, यदि श्रीराम ने हमेशा सत्य व धर्म का साथ दिया है, यदि श्रीराम अभी धर्म के लिए कार्य कर रहे है, यदि मैंने श्रीराम की सच्चे मन से सेवा की है तो तुम मेघनाथ का गला काटकर ही वापस आओगे | यह कहकर लक्ष्मण ने मेघनाथ पर तीर छोड़ दिया था ।
यदि वह तीर मेघनाथ की गर्दन बिना काटे वापस आ जाता तो भगवान श्रीराम के चरित्र पर लांछन लगता। अतः उस तीर के द्वारा मेघनाथ का संहार हुआ व उसका मस्तिष्क धड़ से काटकर अलग हो गया । इस प्रकार अत्यंत पराक्रमी योद्धा मेघनाथ के जीवन का अंत हो गया।
इस प्रसंग पर एक बार अगस्त मुनि ने श्री राम से कहा था – बेशक रावण और कुम्भकर्ण प्रचंड वीर थे , लेकिन सबसे बड़ा वीर तो मेघनाद ही था |
उसने स्वर्ग में देवराज इन्द्र से युद्ध किया और उन्हें बांधकर लंका ले आया था | ब्रह्माजी ने इन्द्रजीत से दान के रूप में इन्द्र को माँगा तब इन्द्र मुक्त हुए थे |
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Categories: infotainment
Essa criança linda ✨✨❣️
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Sim querida, ela é minha neta ..
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Parabéns, abençoados sejam!🦋✨🌷
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Obrigado, querido,,
Como você está ?
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Muito obrigado,
Você pode compartilhar sua foto de família ..?
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Bom dia, amigo ✨ Prefiro não compartilhar, gosto assim.
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ok obrigado querida,
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Gratidão por compreender 🦋😊
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Boa noite querida..
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🌃🙏✨
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हरि अनंत हरि कथा अनंता
बहु विधि कहहि सुनहि सब संता
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वाह वाह , बिलकुल सही है |
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रोचक एवम जानकारी से युक्त।
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Beautiful story of Ramayana. Nice video clip of exercise in the tune of Hare Krishna Hare Ram.
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Yes dear,
All episode of Ramayana is beautiful ..I am trying to share it through Blog..
Thanks for sharing your views..
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