
हेलो फ्रेंड्स
यह सही है कि नौकरी करने के दौरान बहुत सारी सुखद और दुखद घटनाये घटित होती है, जो अपने दिलो दिमाग में घूमता रहता है | लोग कहते है कि सुखी जीवन जीना है तो दिमाग में भरे कचरे को साफ़ करते रहना चाहिए |
अब मैं रिटायर हो चूका हूँ इसलिए मैंने सोचा क्यों ना उन बातों को कलमबद्ध कर अपने दिमाग को कुछ हल्का किया जाए |
दूसरी बात यह कि जो सुखद यादें हमारे दिमाग में कैद है , उसे क्यों न अपने दोस्तों के साथ शेयर किया जाये | इन्ही सब बातों को ध्यान में रख कर मैंने अपने इस ब्लॉग के माध्यम से उन संस्मरणों को पोस्ट कर रहा हूँ |
मुझे ख़ुशी भी होती है कि आप लोग इसे पसंद कर रहे है | इससे आप सभी से जुड़ने का मौका भी मिलता है | आज का ब्लॉग उन्ही पुरानी यादों को समेटने का प्रयास है |
बात तो ३० साल पुरानी है लेकिन लगता है जैसे कल की ही बात हो | उन दिनों मैं पटना के अशोक राजपथ शाखा में पोस्टेड था | थोड़ी दूर पर ही हमारा क्षेत्रीय कार्यालय भी था | बराबर वहाँ आना जाना होता रहता था |
हमारे क्षेत्रीय प्रबंधक महोदय श्री एस के अग्रवाल साहब से काफी नजदीकियां थी | एक दिन अचानक फ़ोन करके मुझे अपने कार्यालय में बुलाया | मैं उनकी आज्ञा का पालन करते हुए शाम में उनके चैम्बर में उपस्थित था |
उन्हीने मुझे देखते ही सामने कुर्सी पर बैठने को कहा और फिर तुरंत चाय आ गयी | हम दोनों चाय पी रहे थे | तभी साहब ने कहा – तुम्हारे मित्र वाई के सिंह मुज़फ्फरपुर शाखा में है | उन्हें मुजफ्फरपुर का लीची भेजने को कहा है |

कल रविवार है और उसने कहा है कि एक पेटी लीची पेड़ से तुडवा कर तुम्हारे पास सुबह सुबह भेज देगा | मेरी फ्लाइट १.00 बजे दिन में है, तुम उस लीची को एअरपोर्ट लेकर आना, मैं उसे दिल्ली अपने घर लेता जाऊंगा | मुजफ्फरपुर का लीची बहुत प्रसिद्ध है,और स्वादिष्ट भी |
मैंने उनकी हाँ में हाँ मिलाई | वे बहुत प्रसन्न दिख रहे थे | मैं भी उनकी सेवा करने का मौका नहीं चूकना चाहता था | हमारे बड़े साहब है, उनका आशीर्वाद तो बने रहना ज़रूरी था |
अगला दिन रविवार था , इसलिए सुबह सुबह तैयार होकर मुजफ्फरपुर से लीची आने का इंतज़ार करने लगा ताकि उसे समय पर एअरपोर्ट पहुँचा सकूँ |
समय बीत रहा था | करीब दिन के 12 बज चुके थे लेकिन लीची अब तक नहीं पहुँच सका था | उन दिनों मोबाइल का ज़माना भी नहीं था और ना ही मेरे घर पर टेलीफोन की सुविधा थी, जिससे स्थिति की सही जानकारी ले सकूँ |
मैं सूट – बूट पहन कर पूरी तरह तैयार बैठा था ताकि जैसे ही लीची की पेटी आये, बिना समय गवाएं उसे गंतव्य स्थान पर पहुँचाया जा सके |
मैं इंतजार करता रहा और परेशान होता रहा | उधर एअरपोर्ट पर साहब भी लीची आने का पल पल राह देख रहे होंगे | मेरा तो दिल ही बैठ गया जब घड़ी ने दिन के एक बजाय | एयरपोर्ट से फ्लाइट उडान भर चुकी होगी | शायद साहब मन ही मन मुझे ही कोस रहे होंगे |

इन्ही सब बातों में खोया हुआ था तभी दरवाजे का बेल बज उठा | मैंने ज़ल्दी से दरवाज़ा खोला तो देखा मुजफ्फरपुर शाखा का दफ्तरी था और उसके हाथ में लीची का पेटी था |
उसे देखते ही मेरे मुँह से निकला – इतना देर आने में क्यों लगा दी ? साहब का फ्लाइट तो चला गया होगा |
उसने भी दुखी मन से कहा – रास्ते में जीप खराब हो गयी थी | उसे मरम्मत कराने में देर हो गई और आपको सूचित करने का कोई साधन भी तो नहीं था |
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए ? वो तो लीची की पेटी हमारे हवाले कर वापस जा चूका था |
रात भर लीची की खुशबू कमरे में फ़ैल रही थी लेकिन हमलोगों को उसे छूने की हिम्मत नहीं हो रही थी | कभी ख़ुशी कभी गम वाली स्थित हो गयी थी |
किसी तरह रात गुज़र गयी और अगले दिन सोमवार को मैं अपने ब्रांच में पहुंचा | तभी मुजफ्फरपुर के शाखा प्रबंधक श्री सिंह साहब का फोन आया |
मेरे फ़ोन पकड़ते ही उन्होंने पूछा — वह सामान साहब को दे दिया था ना ?
मैंने कहा — कौन सा सामान ?
अरे भाई मैं लीची की बात कर रहा हूँ | सुबह सुबह लीची के बगीचे से तुड़वाकर कर बहुत ही स्वादिस्ट लीची भेजे है |

मैंने कल की सारी घटना उनको बताई तो उन्होंने अपना सर पकड़ लिया और फिर पूछा – आपने उस लीची का क्या किया ?
मैंने ज़बाब दिया – अभी तो उसी तरह पेटी में पैक है | मैं उसका क्या करूँ ?
उन्होंने ज़ल्दी से कहा – आप ज़ल्दी से पेटी खोल दो , वर्ना सारे लीची खराब हो जायेंगे |
मैंने पूछा – उसके बाद लीची का क्या करूँ ?
उन्होंने लगभग चिढ़ते हुए कहा – आपलोग के खाने के अलावा भी कोई विकल्प है क्या ?
सचमुच, लीची बहुत स्वादिस्ट थे | मैं और मेरा पूरा परिवार लीची खाया ही, साथ में पड़ोसियों को भी मज़ा आ गया |
तभी मुझे याद आया यह मुहाबरा – – दाने दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम |
क्यों, आप का क्या ख्याल है ?
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Categories: मेरे संस्मरण
सही कहा। दाने दाने पर लिखा होता, खानेवाले के नाम। 😊
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यहाँ कहावत इस घटना पर बिलकुल फिट बैठता है |
जब भी याद आती है , मुस्कुरा देता हूँ मैं |
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रोचक और लीची की खुशबू से भरपूर।
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बहुत बहुत धन्यवाद डिअर।
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अच्छी बात यह है कि जब तक आपको परमिशन नहीं मीली, आपने लीची को हाथ नहीं लगाया। बहुत खुब 👍
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हाहाहाहा.. सर्, रात भर इंतज़ार में काटे ।
सब्र का फल मीठा था।
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😇😇😇beautiful. The litchi is watering my mouth. Well shared.🙂👍
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Yes dear,
That litchi was so tasty and the incidence was true ,
that makes me laugh whenever I memoire ..
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Yes 👍 some memory makes us laugh .
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Absolutely correct .
That is why I am writing my memoire, I hope you all enjoying.
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Yes, sure. Stay happy 🙂😊👍
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Thank you dear..
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🙂☺
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Sometimes situation becomes so embarrassing happiness turns to sorrow. Nice experience “Kabhi khusi kabhi gum”
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yes dear ,
that is a great memoire.. thanks for reading this blog..
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सच में आपकी “कभी ख़ुशी, कभी ग़म”पढ़कर मज़ा आ गया।सच है दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम 😋😋😋😋 मेरे मुंह में पानी आ गया।
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कभी कभी कुछ घटनाये ऐसी होती है ,
जिसे याद करते ही चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है |
वैसी घटनाओं को कलमबद्ध करने की कोशिस कर रहा हूँ |
अपने विचार साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् |
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Reblogged this on Retiredकलम and commented:
Every little smile can touch somebody’s heart.
No one is born happy, but all of us born with
the ability to create HAPPINESS…
Stay Happy…Stay blessed…
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