# मुस्कुरा देता हूँ मैं #

मिली है तो, तू ज़िन्दगी को जी ,

उसे समझने की कोशिश न कर

सुन्दर सपनों के ताने बाने बुन

उसमे उलझने की कोशिश न कर |

बात उन दिनों है जब हमारी नौकरी बैंक में लगी थी | स्टेट बैंक ग्रुप में ऑफिसर बनते ही मैं महसूस करने लगा था कि मेरा  स्टेटस  थोडा ऊँचा  हो गया |

बैंक का जोइनिंग लेटर  मिला तो पता चला कि राजस्थान के एक  गाँव में पोस्टिंग हुई है | जगह का नाम ” रेवदर” था जो माउंट आबू के पास स्थित था | मुझे इस बात का संतोष हुआ कि छुट्टी के दिनों में गाँव से निकल कर माउंट आबू  घुमने का मौका तो मिलेगा |

 बैंक ज्वाइन करते ही तरह तरह के अनुभव होने लगे थे |

फील्ड विजिट के  दौरान मैं जब भी शाखा के जीप से  आस पास के गाँव में जाता तो कुछ अजीब इत्तिफाक से सामना करना पड़ता | जाते समय तो रोड सही सलामत मिलता लेकिन  लौटते समय वह रोड गायब हो जाता था और उसके जगह पर बड़े बड़े रेत के टीले  नज़र आते थे  |

दरअसल उस एरिया में रेत की आंधी के कारण सड़क रेत से ढक जाती थी  और चारो तरफ रेत ही रेत दिखाई पड़ता | वो तो हमारे शाखा का जीप और उसका ड्राईवर राजू सिंह जी उस एरिया से वाकिफ था , वर्ना मैं अगर अकेला होता  तो शायद रास्ता ही न ढूंढ पाता |

खैर, जीवन के नए नए अनुभव ले रहा था | तभी मुझे दो सप्ताह के ट्रेनिंग के लिए बीकानेर जाने का आदेश मिला | मुझे खबर पाकर थोड़ी रहत मिली कि चलो बीकानेर शहर घुमने का मौका मिलेगा |

गर्मियों का समय था, मेरे शाखा प्रबंधक महोदय चपरासी को २६ किलोमीटर दूर आबू रोड स्टेशन भेज कर मेरे टिकट का प्रबंध कराया | नयी नयी नौकरी थी और मैं वहाँ अकेला ही रहता था | इसलिए बेफिक्र होकर सही समय पर आबू रोड स्टेशन से ट्रेन  पकड़ा जो सुबह भोर में बीकानेर पहुँचाता था |

ट्रेन अपनी गति से चल रही थी और मैं अपने बोगी में खिड़की से राजस्थान के इलाके को उत्सुकता से देख रहा था | मुझे यह देख कर आश्चर्य हो रहा था कि कही भी पेड़ पौधे और हरियाली नहीं दिखती थी ,– दिखती थी तो बस रेत ही रेत |

खैर ,  सुबह ठीक छः बजे बीकानेर स्टेशन उतरा और एक रिक्शा पकड़ लिया |

रिक्शा वाले ने मुझे सीधा ट्रेनिंग सेंटर के गेट पर उतार दिया | चूँकि दो सप्ताह की ट्रेनिंग थी इसलिए मेरे हाथ में एक  ब्रीफ केस  और एक हैण्ड बैग था  | तभी गेट के अन्दर से एक बंदा निकल कर मेरे पास आया | उसने रूपा की गंजी और ब्लू रंग की लुंगी पहन रखी थी | बाल भी बिखरे हुए थे , शायद अभी अभी सो कर उठा होगा |

वो मेरे पास आते ही अपना  दायाँ हाथ बढाया | मैंने समझा वो यहाँ का चपरासी है जो हम जैसे ऑफिसर की खातिरदारी के लिए हाज़िर हुआ है | वो कुछ बोलना चाह  रहा था, उससे पहले ही मैंने  अपना ब्रीफ केस उसके हाथ में थमा दिया | वह ब्रीफकेस अपने पास रख कर फिर अपना दायाँ हाथ बढाया फिर वो कुछ बोलना चाहता था लेकिन तब तक मैंने  अपना हैण्ड बैग उसके हाथ में थमा दिया |

वो परेशान हो कर मेरी ओर देखा और एक बार फिर  अपना दायाँ हाथ बढाया  तो मुझे कुछ  समझ नहीं आया और मैंने कहा — अब कोई सामान मेरे पास नहीं है | फिर उसने मेरा हाथ जबदस्ती अपने हाथ में ले कर बोला —आई ऍम राम कुमार सिंह |

मैं उसकी ओर आश्चर्य से देखा तो वो फिर बोला –  मैं भी ट्रेनिंग  में आया हूँ और आप का   बैच -मेट हूँ  |  तब मुझे आभास हुआ कि जिसे मैं यहाँ का चपरासी समझ रहा था वो हमारे  ही बैच का  ऑफिसर है लेकिन हुलिया ऐसी बना रखी  थी कि कोई भी धोखा खा जाता |

मुझे अपने गलती पर पछतावा होने लगा और मैं जल्दी से बोला – आई ऍम सॉरी यार , मुझसे बड़ी भूल हो गयी |

उसने मेरे द्वारा  अफ्सोस जताने पर बोला – अरे, कोई बात नहीं,  मेरी सूरत और मेरा हुलिया देख कर लोग धोखा खा जाते है | छोडो इस बातों को और चलो अन्दर, वही बैठ कर बातें करेंगे |

आज भी जब मुझे उस घटना की याद आती है तो बरबस ही मैं मुस्कुरा देता हूँ |

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Categories: मेरे संस्मरण

17 replies

  1. एक सुखद संस्मरण!

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  2. हाहा सिर अति रोचक और प्यारी सी यादें

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  3. मजेदार संस्मरण।

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  4. Very nice.My senior brother Kartik Sahoo and Chittaranjan Parida have chosen to join SBBJ with you and my self joined SBS.

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  5. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Pain is one of the emotions that creates the best work.
    If your soul is in pain, that is when you should
    write the most , because that is when there is
    a true connection between you and your hands,

    Like

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