यह भी एक ज़माना देख लिया है हम ने ,
दर्द जो सुनाया अपना तो , तालियाँ बज उठी |

आज पुरानी यादों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा ….धीरे धीरे मानस पटल पर एक तस्वीर उभरती है …वर्ष १९८५ और मेरी पोस्टिंग शिवगंज के एक छोटे से कसबे में | मेरा स्टाफ मदन …जिसकी धुंधली तस्वीर आँखों से सामने उभरती हैं और उसकी याद ने चेहरे पर फिर मुस्कान बिखेर दी |
बेचारा मदन , हमारी शाखा का सबसे होशियार स्टाफ, बहुत ही मिलनसार और हंसमुख था |हमलोग चार पाँच स्टाफ हम उम्र और नई नई नौकरी में लगे थे | इसलिए हमलोगों में अपनापन बहुत था |
यह उस वक़्त की यह घटना है | ..हुआ यूँ कि रविवार का दिन था और दिन के करीब दो बजे मदन खाना खाकर आराम करने बिस्तर पर गया ही था कि पेट में हल्का हल्का दर्द महसूस हुआ | वो अकेला ही अपने मकान में रहता था जो हमारे मकान से थोड़ी दूर ही थी |
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