# खराब चाय #

कुछ दिनों पूर्व मैं कोलकाता से पटना अपने घर जा रहा था | मुझे साल में दो बार पटना जाना होता है | मैं सामान्यतः ट्रेन से ही सफ़र करना पसंद करता हूँ | इसका मुख्य कारण है कि इसका टाइमिंग  मुझे बहुत पसंद है |

आप रात का भोजन कर ट्रेन में आराम से सो जाएँ और यह ट्रेन अगले दिन सुबह हमें पटना रेलवे स्टेशन पर पहुँचा देता है |

कोलकाता स्टेशन से रात के १० बजे मेरी ट्रेन रवाना  हुई |

हम  अपने दो दोस्तों के साथ रिजर्वेशन  कोच में विराजमान थे | ट्रेन के कम्पार्टमेंट में ही हमलोगों ने डिनर किया जो घर वाले चलते वक़्त बना कर दे दिया था |

भोजन करने  के बाद ज़ाहिर सी बात है कि हमलोगों को नींद आने लगी | हमलोग कुछ देर ताश खेलते रहे फिर थोड़ी देर में सो गए |

सुबह के करीब पांच  बज रहे थे कि  मेरी नींद खुली |

हल्का ठंड  का मौसम था , इसलिए सुबह सुबह चाय की तलब हुई | खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो फतुहा  स्टेशन क्रॉस कर रहा था | तभी एक चाय वाला अपनी बोगी में आया |  वह जोर जोर से बोल रहा था … खराब चाय है, खराब चाय |

मैं अपने बर्थ में लेटे लेटे चौक कर चाय वाले को देखा,  बोगी में मामूली रौशनी थी , उसका चेहरा साफ़ साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था |

मैं बिस्तर पर लेटे लेटे ही उससे पूछ लिया – तुम अपनी चाय को खराब चाय,  खराब चाय क्यों बोल रहे हो ? इससे तो तुम्हारी चाय ही नहीं बिकेगी |

वह मेरे पास आया और  हँसते हुए कहा – सर जी,  खराब चाय, खराब चाय बोलने से मेरा चाय ज्यादा बिकता है |

मैं उसकी बातों से सहमत नहीं था | बातों  का सिलसिला चल ही रहा था कि उसने मिटटी के कुल्हड़ में गरमा  गर्म चाय हमलोगों के आगे पेश कर दिया  | मौसम में थोड़ी ठंडक थी इसलिए सुबह सुबह चाय की तलब हो ही रही थी |

इसलिए हमने उससे चाय लेकर ज़ल्दी से पहला सिप ही लिया कि मन प्रसन्न हो गया, चाय में अदरक का स्वाद और इलायची की खुशबु थी | चाय पीकर मज़ा आ गया |

मैंने  उससे अगला सवाल किया … तुम्हारी चाय जब इतना स्वादिष्ट है तो स्वादिष्ट चाय बोल कर भी चाय बेच सकते थे ?

इस पर उसने जो जबाब दिया उसे सुनकर मुझे थोडा आश्चर्य भी हुआ |

उसका कहना था कि ट्रेन में तरह तरह के लोगों से पाला पड़ता है | यहाँ कोई स्थाई ग्राहक (permanent customer) तो होता नहीं है | बस दो मिनट की मुलाकात और अपना सामान बेचना होता है |

कभी कभी तो लोग पूरी चाय पी लेते है और जब कुल्ल्हर में थोड़ी चाय बचती है तो उसे खिड़की के बाहर फेंक कर कहते है कि चाय बहुत खराब है और पैसे देने से मना कर देते है | इसलिए मैं अपनी चाय को  पहले ही खराब चाय कह देता हूँ ताकि वैसे लोगों को कोई बहाना नहीं मिल सके |

और दूसरी बात यह  कि जब आप कोई उलटी बात करते है तो लोगों का ध्यान उस ओर ज़रूर जाता है | यह हमारा  बिज़नेस का ट्रिक कह सकते है,  ताकि यह बात सुन कर ज्यादा से ज्यादा लोगों को उत्सुकता हो |

इसका मतलब तुम समझदार लगते हो और तुम्हारे व्यापार का मूल मंत्र है ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान अपनी ओर खीचना |

तुम इतना होशियार हो तो  कोई दूसरा और  अच्छा धंधा क्यों नहीं करते, जिसमे ज्यादा कमाई और अपने व्यापार  को बढाने की गुंजाइश हो |

इस पर वो चाय वाले ने कहा — मैं इस चाय के धंधे से भी अच्छी कमाई कर लेता था, जिससे घर का किराया, बच्चो की पढ़ाई और खाना पानी सब अच्छे से हो जा रहा था |

और मैंने यह प्लान कर रखा था कि किसी स्टेशन पर चाय का अपना स्टाल लगाऊंगा |

लेकिन किस्मत ने मेरे साथ ऐसा खेल खेला कि सब खेल उल्टा पुल्टा हो गया |

कोरोना की बिमारी ने  सबको प्रभावित किया है पर हम जैसे गरीब और रोज़ कमाने वाले लोगों के लिए तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है | लॉक डाउन में चाय बेचना बंद,  सब काम बंद तो फिर आमदनी  भी बंद |

जो कुछ पूंजी बचा रखी थी अपने व्यापर को बढाने  के लिए वो सब घर में बैठे – बैठे खर्च हो गए और फिर खाने के लाले पड़ गए |

किसी तरह रिश्तेदार  से मदद लेकर काम चलाया | अब कुछ ट्रेने तो शुरू हुई है लेकिन भीड़ कम है तो बिक्री भी कम है | बहुत मुश्किल से गुज़ारा चल रहा है |

देखिये कब तक ज़िन्दगी की गाडी खींच पाता हूँ ?  बोलते – बोलते उसके आँखों में आँसू आ गए |

हम तीनो दोस्त उसकी बातें सुन कर स्तब्ध रह गए |  कोरोना से होने वाली हमारी मुश्किलें उसकी मुश्किलों के आगे बहुत छोटी नज़र आने लगी | मुझे उसकी दयनीय स्थिति के बारे में सुन कर बहुत  दुःख हो रहा था |

इस बातचीत के क्रम में हमरी ट्रेन पटना स्टेशन पर पहुँच चुकी थी जहाँ मुझे और चाय वाले को  उतरना था |

हमने उस चाय वाले को  चाय की कीमत के अलावा कुछ अलग से पैसे देने चाहे,  

लेकिन उसने लेने से साफ़ मना कर दिया |

उसने फिर कहा –सर जी, अभी तक तो मैं मिहनत से कमा कर खा रहा हूँ आगे भगवान् की मर्ज़ी…..

उसकी बातों को सुन कर हमलोग भाव विभिर हो गए …. .सचमुच में अजीब खुद्दारी देखी उस चाय वाले में,  जो मिहनत में विश्वास करता है ||..

ज़हर मिलता रहा , ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
ज़िंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे |

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Categories: मेरे संस्मरण

16 replies

  1. वाह!! हर एक इन्सान का अलग अलग जीवन विधान , विधाता से निर्णय से किया गया है अपने अपने कर्मों के अनुसार। भगवान उस चायवाला के जीवन को खुश रखें।

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    • बिलकुल सही कहा आपने |
      यह सच है कि इस कोरोनाकाल में चाय वाले जैसे लोगों
      की स्थिति दयनीय हो गयी है /
      आपने विचार और भावना की क़द्र करता हूँ |

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  2. This is called negative marketing to draw attention of potential customers. Have you seen an apparel brand in the name of Bewakoof? It’s surprising how a tea-seller uses this strategy.

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  3. बहुत अच्छा चित्रण किया है आपने…)हमसब ईश्वर के आँगन के फूल है कोई छोटा कोई बड़ा..ईश्वर सबको प्रसन्नता दें!

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  4. अच्छी रचना।गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों पर होनेवाले दुष्परिणामों का अच्छा चित्रण।

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद डिअर /

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  6. जीवन की सच्चाई, वाह खराब चाई वाले वाह…

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  7. The person utilised his brain for marketing in odd way to draw the attention of customers. Corona not only spoiled the business of many,but also made many lives in miserable conditions. Story is nice combined sense of marketing and misery.

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  8. Interesting story.

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  9. Reblogged this on Retiredकलम and commented:

    Our prime purpose in this Life is to help others..
    If we can not help them, at least do not hurt them…
    Be cheerful….Stay safe and Healthy…

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